सुप्रीम कोर्ट ने शिवराज सरकार से पूछा- ‘क्या रेप की कीमत 6500 है’?

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जहां एक तरफ मध्य प्रदेश में महिलाओं से रेप के मामले कम होने का नाम ही नहीं ले रहीं है वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने रेप के मामलों के प्रति मध्य प्रदेश सरकार के रवैये पर हैरानी जाहिर करते हुए गुरुवार(15 फरवरी) को सवाल किया कि, ‘क्या एक रेप की कीमत 6500 है’?

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एजेंसी के हवाले से एबीपी न्यूज़ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि यौन उत्पीड़न के पीड़ितों को इतनी कम राशि देकर क्या आप ‘खैरात’ बांट रहे हैं? शीर्ष अदालत ने कहा कि वह हतप्रभ है कि मध्य प्रदेश, जो निर्भया कोष योजना के तहत केन्द्र से अधिकतम धन प्राप्त करने वाले राज्यों में है, प्रत्येक रेप पीड़ित को सिर्फ 6000-6500 रूपये ही दे रहा है।

गौरतलब है कि, दिल्ली में 16 दिसंबर, 2012 को हुए सामूहिक रेप और हत्याकांड की घटना के बाद महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकारों और गैर सरकारी संगठनों को आर्थिक मदद देने के लिए केन्द्र ने 2013 में निर्भया कोष योजना की घोषणा की थी।

एबीपी न्यूज़ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस मदन बी. लोकूर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने मध्य प्रदेश सरकार के हलफनामे का अवलोकन करते हुए कहा, आप (मप्र) और आपके चार हलफनामों के अनुसार आप रेप पीड़ित को औसतन छह हजार रूपए दे रहे हैं। आप की नजर में रेप की कीमत 6500 रूपए है? पीठ ने नाराजगी जाहिर करते हुए सवाल किया, ‘मध्य प्रदेश के लिए यह बहुत ही अच्छा आंकड़ा है, मध्य प्रदेश में 1951 रेप पीडित हैं और आप उनमें से प्रत्येक को 6000-6500 रूपये तक दे रहे हैं। क्या यह अच्छा है, सराहनीय है? यह सब क्या है? यह और कुछ नहीं सिर्फ संवदेनहीनता है’। पीठ ने कहा कि निर्भया कोष के अंतर्गत सबसे अधिक धन मिलने के बावजूद राज्य सरकार ने 1951 रेप पीड़ितों पर सिर्फ एक करोड़ रूपए ही खर्च किए हैं।

ख़बर के मुताबिक, हरियाणा सरकार को भी सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी का सामना करना पड़ा क्योंकि उसने निर्भया कोष के बारे में विवरण के साथ अपना हलफनामा दाखिल नहीं किया था। शीर्ष अदालत ने पिछले महीने ही सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को हलफनामे दाखिल करने का निर्देश दिया था। उन्हें इसमें यह भी बताना था कि निर्भया कोष के अंतर्गत पीडि़तों के मुआवजे के लिए कितना धन मिला और कितनी पीडि़तों में कितनी राशि वितरित की गई, कम से कम 24 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को अभी भी अपने हलफनामे दायर करने हैं।

ख़बर के मुताबिक, सुनवाई के दौरान जब हरियाणा के वकील ने कहा कि वे अपना हलफनामा दाखिल करेंगे तो पीठ ने टिप्पणी की, ‘अगर आपने हलफनामा दाखिल नहीं किया है तो यह बहुत ही स्पष्ट संकेत है कि आप अपने राज्य मे महिलाओं की सुरक्षा के बारे में क्या महसूस करते हैं’। न्यायालय के निर्देश के बावजूद 24 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा हलफनामे दाखिल नहीं किए जाने पर पीठ ने कहा, आप अपना समय लीजिए और अपने राज्य की महिलाओं को बताइए कि आपको उनकी परवाह नहीं है।

एक याचिकाकर्ता के वकील ने जब पीठ से कहा कि उन्हें अभी तक सिक्किम की ओर से ही एक हलफनामा मिला है तो पीठ ने सवाल किया, ‘क्या यह मजाक हो रहा है? अगर आपकी इस मामले में दिलचस्पी नहीं है तो हमसे कहिए। आप किस आधार पर कह रहे हैं कि सिर्फ एक राज्य ने ही हलफनामा दाखिल किया है, आप ऑफिस रिपोर्ट तक नहीं देखते हैं? मेघालय के वकील ने कहा कि उन्होनें यौन उत्पीड़न की 48 पीड़ितों को करीब 30.55 लाख रूपये दिए हैं।

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि लैंगिक न्याय के बारे में लंबी चौड़ी बातों, विचार विमर्श और मंशा जाहिर करने के बावजूद 24 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों ने अपने हलफनामे दाखिल नहीं किए हैं। अगर वे रंच मात्र भी महिलाओं की भलाई में दिलचस्पी रखते हैं तो चार सप्ताह के भीतर हलफनामे दाखिल करें। दिसंबर, 2012 की घटना के बाद महिलाओं की सुरक्षा को लेकर शीर्ष अदालत में कम से कम छह याचिकाएं दायर की गई हैं।

गौरतलब है कि, हाल ही में आए राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में देश में 28,947 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना दर्ज की गई। इसमें मध्यप्रदेश में 4882 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना दर्ज हुई।

रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं के साथ बलात्कार के मामले में एक बार फिर से देश के सभी राज्यों में मध्यप्रदेश सबसे पहले स्थान पर दर्ज किया गया है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश इस मामले में गत वर्ष भी देश में पहले स्थान पर ही था।

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