असम में सोमवार (30 जुलाई) को बहुप्रतीक्षित नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) के दूसरे और अंतिम मसौदे को जारी कर दिया है। जिसके मुताबिक कुल 3.29 करोड़ आवेदन में से इस लिस्ट में 2.89 करोड़ लोगों को नागरिकता के योग्य पाया गया है, वहीं करीब 40 लाख लोगों के नाम इससे बाहर रखे गए हैं। बता दें कि एनआरसी का पहला मसौदा 31 दिसंबर और एक जनवरी को जारी किया गया था। पहली लिस्ट में असम की 3.29 करोड़ आबादी में से 1.90 करोड लोगों को शामिल किया गया था।
इस अंतिम मसौदे के आने के बाद से राजनीति भी शुरू हो गई है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एनआरसी लिस्ट से 40 लाख लोगों के नाम बाहर किए जाने में लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है। एक फेसबुक पोस्ट में उन्होंने कहा है कि 1200 करोड़ रुपये खर्च के बाद भी इतने संवेदनशील मामले में सरकार ने लापरवाही बरती है। राहुल गांधी ने एनआरसी के मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकार पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि इस संकट के समाधान के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए।
इसके साथ ही गांधी ने कांग्रेस सदस्यों का आह्वान किया कि वे राज्य में शांति बनाए रखने में मदद करें और एनआरसी के संदर्भ में जिन लोगों के खिलाफ नाइंसाफी की गई है उनकी मदद करें चाहे उनका किसी भी धर्म, जाति, लिंग, भाषायी समूह या राजनीतिक जुड़ाव हो। कांग्रेस अध्यक्ष ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा कि संप्रग सरकार और मनमोहन सिंह जी के तहत एनआरसी की शुरुआत की गई थी ताकि 1985 के असम समझौते में किए गए वादे को पूरा किया जा सके।
उन्होंने कहा, ‘असम के सभी कोनों से ऐसी खबरें आ रही हैं कि भारतीय नागरिकों को एनआरसी के मसौदे में अपना नाम नहीं मिल रहा है जिससे राज्य में भारी असुरक्षा का भाव है।’ राहुल ने आगे लिखा है, ‘1200 करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद यह पूरी प्रक्रिया सुस्त रही। सरकार को इस संकट के समाधान के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए।’ राहुल ने आगे कहा, ”असम के कोने-कोने से खबर आ रही है कि भारतीय नागरिक एनआरसी ड्राफ्ट में अपना नाम खोज रहे हैं। जिससे राज्यभार में असुरक्षा का माहौल है। सरकार को इस संकट से सावधानी से निपटना चाहिए।”
ममता ने भी साधा निशाना
वहीं इस अंतिम मसौदे के आने के बाद से राजनीति भी शुरू हो गई है। टीएमसी सांसदों के हंगामे की वजह से एक बार राज्यसभा स्थगित करना पड़ा गया तो पार्टी की मुखिया ममता बनर्जी ने प्रेस कांन्फ्रेंस कर जमकर खरी-खोटी सुनाई। बनर्जी ने कहा कि क्या अब इन लोगों को जबरदस्ती निकाला जाएगा। बनर्जी ने कहा कि सरकार की नीति बांटो और राज करो है। मुख्यमंत्री ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह से संशोधन लाने की मांग करते हुए कहा कि जिन 40 लाख लोगों के नाम डिलीट कर दिए गए हैं वे कहां जाएंगे? क्या केंद्र के पास इन लोगों के पुनर्वास के लिए कोई कार्यक्रम है? अंतत: पश्चिम बंगाल को ही इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। ये बीजेपी की वोट राजनीति है।
उन्होंने कहा कि ऐसे भी लोग हैं, जिनके पास आधार कार्ड, पासपोर्ट आदि हैं, लेकिन उनका नाम मसौदे में नहीं है। लोगों के नाम उनके उपनाम (सरनेम) के आधार पर हटाए गए हैं। क्या सरकार जबरदस्ती लोगों को निकालना चाहती है? असम में एनआरसी के मुद्दे पर सोमवार (30 जुलाई) को संसद में जमकर हंगामा हुआ। राज्यसभा में कांग्रेस, सपा और तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों के हंगामे की वजह से राज्यसभा की बैठक एक बार के स्थगन के बाद दोपहर दो बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई।
राजनाथ सिंह बोले- घबराने की जरूरत नहीं
केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि असम के लिए एनआरसी का मसौदा पूरी तरह ‘निष्पक्ष’ है। जिनका नाम इसमें शामिल नहीं है उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि उन्हें भारतीय नागरिकता साबित करने का मौका मिलेगा। लोकसभा में बोलते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इसमें केंद्र की कोई भूमिका नहीं है। मैं विपक्ष से पूछना चाहता हूं कि इसमें केंद्र की क्या भूमिका है? यह सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुआ है। ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, “यह ड्राफ्ट सूची है, अंतिम सूची (फाइनल लिस्ट) नहीं है। अगर किसी का नाम फाइनल लिस्ट में भी नहीं आता है, तो भी वह विदेशी न्यायाधिकरण में जा सकता है। किसी के भी विरुद्ध बलपूर्वक कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी, इसलिए किसी को भी घबराने की जरूरत नहीं है।”
केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा है कि किसी को भी घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जिनका नाम सूची में नहीं है, उनके खिलाफ किसी भी तरह की दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। सिंह ने कहा, “कुछ लोग अनावश्यक रूप से डर का माहौल पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। यह पूरी तरह निष्पक्ष रिपोर्ट है। किसी भी तरह की गलत सूचना नहीं फैलाई जानी चाहिए। यह एक मसौदा है ना कि अंतिम सूची।’’