वकील और जानी-मानी आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद जाति हिंसा मामले में तीन साल से अधिक समय तक जेल में बिताने के बाद गुरुवार सुबह रिहा हो गईं। बता दें कि, भारद्वाज को 28 अगस्त 2018 को गिरफ्तार किया गया था।

विशेष एनआईए अदालत ने बुधवार भारद्वाज की जमानत की 16 शर्तें तय कीं। बॉम्बे हाई कोर्ट ने भारद्वाज को एक दिसंबर को डिफॉल्ट जमानत देने के बाद उनकी जमानत शर्तों पर फैसला करने के लिए विशेष अदालत के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया था।
विशेष अदालत ने उन्हें 50,000/- रुपये के निजी मुचलके और 50,000/- रुपये की नकद जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया। साथ ही उन्हें इतनी ही समान राशि के एक या अधिक जमानतदार की व्यवस्था करने के लिए तीन महीने का समय दिया गया।
एनआईए अदालत द्वारा कल जमानत की शर्तें तय करने के बाद भारद्वाज को भायखला महिला जेल से रिहा कर दिया गया। वह इस मामले में डिफॉल्ट जमानत पाने वाली पहली शख्स हैं।
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एसआर भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने उनकी रिहाई को मंजूरी देते हुए कहा था, “हमें उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता है। इसलिए याचिका खारिज की जाती है।”
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