सरकारी आवास में जगह थी और मन मे इच्छा और संस्कार दोनों। तो घर में दो गाय पाल ली गईं। दो गाय और उनके दो बच्चे। एक बछड़ा और एक बछिया। बरसों बाद दिल्ली के मंत्री आवास में किसी ने गाय पाली थी। शायद साहब सिंह वर्मा जी के आवास पर गाय जरूर होती थी।
जब लगभग डेढ़ बरस पहले इन गायों को घर लाया गया तब चुटकियों में सब हो गया। गाय और उनके बच्चे कैसे आएंगे ये कोई मुद्दा नहीं था।’
पर आज घर खाली करते समय गायों को लेकर जाना एक विकट समस्या बन चुका है। कोई टेम्पो वाला ले जाने को तैयार नहीं। पुलिस से स्पेशल लेटर लिखवाना, पशु पालन विभाग से भी एक पत्र कहते हैं जरूरी होगा। सब हो जाने के बाद भी सब के सब डरे हुए।
एक भाई जो गाय की पूरी देखभाल करता था, उसकी इच्छा थी गाय को अपने घर ले जाने की। हमें भी लगा की यही सही होगा। गाय इनसे परिचित भी है ये देखभाल भी पूरे मन से करते है। पर वो भी लेकर जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे।
पता नहीं, इस प्रकार के डर से गाय का भला होगा या बुरा। ये सही है या गलत। शायद गाय का गैर कानूनी व्यापार करने वाले भी डर गये होंगे तो अच्छा है। पर ऐसे महौल में कोई गाय रखने या पालने की हिम्मत कैसे करेगा?
एक तरीका किसी ने सुझाया, गाय को ले जाते हुए, खूब भजन कीर्तन करते हुए, रास्ते में जो भी मिले उसे गौ माता का आशीर्वाद दिलवाने व बदले में चंदा लेते हुए लेकर जाया जाए तो शायद कोई डर न हो।
खैर गौ माता के जाने की कोई न कोई व्यवस्था तो हो ही जाएगी, आज उनके पैर छूकर इतने दिनों में उनके मन सम्मान में कोई कमी रह गई हो तो उसकी माफी भी मांगनी बाकि है।
इसी बीच में मेरी विधानसभा से कुछ लोगों के फोन आये है, शायद आज फिर किसी परिवार की बच्ची को कोई उठा कर ले गया है। पुलिस में शिकायत करवाने जाने होगा।
यह लेखक दिल्ली के करावल नगर से विधायक हैं।