निजी अस्पतालों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी- पैसे कमाने की मशीन बन गए हैं अस्पताल, मानवता की सेवा की बजाए रियल एस्टेट उद्योग की तरह कर रहे काम

0

सुप्रीम कोर्ट ने निजी अस्पतालों को लेकर सोमवार को सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने सोमवार को कहा कि अस्पताल बड़े उद्योग बन गए हैं और यह सब मानव जीवन को संकट में डालकर हो रहा है। निजी अस्पतालों को छोटे आवासीय भवनों से संचालित करने की अनुमति देने के बजाय राज्य सरकारें बेहतर अस्पताल प्रदान कर सकती हैं।

file photo

समाचार एजेंसी आईएएनएस की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह की पीठ ने कहा कि अस्पताल बड़े उद्योग बन गए हैं। हम उन्हें जीवन की कीमत पर समृद्ध नहीं होने दे सकते। बेहतर होगा ऐसे अस्पतालों को बंद कर दिया जाए। पीठ ने भवन उपयोग अनुमति के संबंध में अस्पतालों के लिए समय सीमा बढ़ाने के लिए गुजरात सरकार की खिंचाई की।

दरअसल, शीर्ष अदालत गुजरात के अस्पतालों में आगजनी के मामले पर सुनवाई कर रही थी। शीर्ष अदालत ने भवन उपयोग अनुमति के संबंध में अस्पतालों के लिए समय सीमा जून, 2022 तक बढ़ाने को लेकर गुजरात सरकार की जमकर खिंचाई की। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार से अस्पतालों को छूट देने वाली इस अधिसूचना को वापस लेने को कहा।

पीठ ने कहा कि एक मरीज जो कोविड से ठीक हो गया था और उसे अगले दिन छुट्टी दी जानी थी, परंतु आग लगने से उसकी मौत हो गई और दो नर्सें भी जिंदा जल गईं। पीठ ने कहा कि ये मानवीय त्रासदी हैं, जो हमारी आंखों के सामने हुआ। फिर भी हम इन अस्पतालों के लिए समय बढ़ाते हैं।

पीठ ने कहा कि अस्पताल एक रियल एस्टेट उद्योग बन गए हैं और संकट में मरीजों को सहायता प्रदान करने के बजाय यह व्यापक रूप से महसूस किया गया कि वे पैसे कमाने की मशीन बन गए हैं। न्यायूमूर्ति चंद्रचूड़ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि नसिर्ंग होम की खामियों को माफ करने का कोई मतलब नहीं है।

एक सरकारी अधिसूचना का उल्लेख करते हुए कि अस्पतालों को जून 2022 तक मानदंडों का पालन नहीं करना है, पीठ ने कहा कि एक बार जब परमादेश जारी कर दिया गया हो तो उसे इस तरह की एक कार्यकारी अधिसूचना द्वारा ओवरराइड नहीं किया जा सकता है। आपका कहना है कि अस्पतालों को जून, 2022 तक आदेश का पालन नहीं करना है और तब तक लोग मरते और जलते रहेंगे।

शीर्ष अदालत ने अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा के मुद्दे पर एक आयोग की रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में दायर करने पर भी नाराजगी जताई। न्यामूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि सीलबंद लिफाफे में आयोग की यह कौन सी रिपोर्ट है? यह कोई परमाणु रहस्य नहीं है।

पिछले साल दिसंबर में, अदालत ने केंद्र को अस्पतालों में किए गए अग्नि सुरक्षा ऑडिट पर सभी राज्यों से डेटा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। अदालत ने उल्लेख किया कि हालांकि विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने उपाय किए हैं और निरीक्षण किए हैं, मगर फिर भी आगे के ऑडिट की आवश्यकता है और राज्य सरकार को प्रत्येक जिले में महीने में कम से कम एक बार प्रत्येक कोविड अस्पताल का अग्नि ऑडिट करने के लिए एक समिति गठित करने के लिए कहा। पीठ ने मामले को दो सप्ताह बाद आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।

न्यायालय राजकोट और अहमदाबाद में हुई आगजनी की घटनाओं के बाद देश भर के कोविड-19 अस्पतालों में आग की त्रासदियों से संबंधित एक स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई कर रहा था।

Previous articleमुंबई की मेयर किशोरी पेडनेकर के निधन की फर्जी ख़बर चलाने के लिए इंडिया टुडे ने मांगी माफी
Next articleपेगासस स्पाइवेयर मामला: BJP सांसद सुब्रमण्यम स्वामी बोले- भारतीय “ऑपरेशन” के लिए अगर केंद्र सरकार ने नहीं तो किसने दिए पैसे? लोगों को बताना मोदी सरकार का कर्तव्य