‘दलित के राष्ट्रपति बनने से दलितों को उतना ही लाभ होगा, जितना नकवी के मंत्री बनने से मुसलमानों को हुआ है’

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राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(NDA) की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का सोमवार (19 जून) को एलान कर दिया गया। राष्ट्रपति चुनाव से पहले सोमवार को भारतीय जनता पार्टी संसदीय बोर्ड की बैठक हुई है। जिसके बाद भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) ने सबको चौंकाते हुए बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद को सर्वोच्च संवैधानिक पद के लिए राजग का उम्मीदवार बनाने का एलान कर दिया।

फोटो: @narendramodi

दलित-शोषित समाज की आवाज बुलंद करके बीजेपी में ऊंचा मुकाम हासिल करने वाले रामनाथ कोविंद को बीजेपी-नीत एनडीए ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर एक ‘मास्टर स्ट्रोक’ खेला है। ऐसा इसलिए, क्योंकि ज्यादातर विपक्षी दल देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर किसी दलित को बैठाने का विरोध नहीं करना चाहेंगे।

अपने लंबे राजनीतिक जीवन में शुरू से ही अनुसूचित जातियों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों तथा महिलाओं की लड़ाई लड़ने वाले कोविंद इस समय बिहार के राज्यपाल हैं। बीेजपी द्वारा साफ-सुथरी छवि और दलित बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना एक तरह से ‘मास्टर स्ट्रोक’ है।

दरअसल, लगभग सभी दलों के सियासी गुणा-भाग में दलितों का अलग महत्व है। ऐसे में देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर दलित बिरादरी के व्यक्ति के चयन का विरोध करना किसी भी दल के लिए सियासी लिहाज से मुनासिब नहीं होगा। बीजेपी दलित मोर्चा तथा अखिल भारतीय कोली समाज के अध्यक्ष रह चुके कोविंद बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता के तौर पर भी सेवाएं दे चुके हैं।

बीजेपी को उम्मीद है कि कोविंद यदि राष्ट्रपति बनते हैं तो आगामी चुनावों में उसे इसका फायदा मिल सकता है, क्योंकि कई राज्यों में दलित समुदाय की चुनाव में अहम भागीदारी है। इतना ही नहीं लोकजनशक्ति पार्टी के सुप्रीमो रामविलास पासवान ने तो इतना तक कह दिया कि रामनाथ कोविंद के नाम का विरोध करने वाले दलित विरोधी माने जाएंगे।

हालांकि, सोशल मीडिया पर रामनाथ कोविंद को दलित के रूप में पेश करने को लेकर भारतीय जनता पार्टी की आलोचना हो रही है। एक यूजर्स ने ट्वीट किया, ‘हमारा दुर्भाग्य तो देखिये देश की सर्वोच्च संवैधानिक पद के चयन हेतु व्यक्ति की योग्यता से ज्यादा उसका दलित होना प्रचारित किया जा रहा है।’

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