राफेल विमान सौदे पर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के सनसनीखेज दावे के बाद भारत में सियासी घमासान जारी है। राफेल सौदे में ‘ऑफसेट साझेदार’ के संदर्भ में फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के कथित बयान को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विपक्ष लगातार हमला बोल रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी राफेल मामले की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच की मांग कर रहे हैं। उनका आरोप है कि यह ‘स्पष्ट रूप से भ्रष्टाचार का मामला’ है।
इस बीच सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने राफेल सौदे की जांच की मांग को लेकर गुरुवार (4 अक्टूबर) को सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा से मुलाकात की। दोनों ने राफेल लड़ाकू विमान सौदा तथा ऑफसेट निविदा में कथित भ्रष्टाचार की जांच की मांग की। भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत ‘विस्तृत’ शिकायत के साथ भूषण और शौरी ने जांच की जरूरत के पक्ष में दस्तावेज सौंपे। उन्होंने एजेंसी के निदेशक से कहा कि कानून के मुताबिक जांच की शुरुआत करने के लिए सरकार से अनुमति हासिल करें।
बताया जा रहा है कि प्रशांत भूषण और अरुण शौरी ने सीबीआई को भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत ‘विस्तृत’ शिकायत के साथ जांच की जरूरत के पक्ष में कुछ दस्तावेज भी सौंपे हैं। खबरों के मुताबिक उन्होंने सीबीआई निदेशक से कहा है कि वह कानून के मुताबिक जांच की शुरुआत करने के लिए सरकार से अनुमति ले। सीबीआई मुख्यालय से बाहर निकलते हुए प्रशांत भूषण ने संवाददाताओं को बताया, ‘सीबीआई निदेशक ने कहा है कि वे इस पर गौर करेंगे और उपयुक्त कार्रवाई करेंगे।’
साथ ही इन्होंने सीबीआई डायरेक्टर से इस मामले में जांच के लिए मोदी सरकार से इजाजत लेने का भी आग्रह किया है।दूसरी ओर कांग्रेस के सीनियर नेताओं ने गुरुवार को राफेल डील मामले में कैग का रुख किया है और ‘फोरेंसिक ऑडिट’ की मांग की। पार्टी ने कहा कि इससे जुड़े सभी तथ्य रिकॉर्ड पर लाए जाएं ताकि संसद में जवाबदेही तय हो सके। वहीं, सीबीआई मुख्यालय से बाहर निकलते हुए भूषण ने कहा,‘सीबीआई निदेशक ने कहा कि वह इस पर गौर करेंगे। हम उपयुक्त कार्रवाई करेंगे।’
33 पन्नों की शिकायत
पीटीआई के मुताबिक, सीबीआई को दी गई 33 पन्ने की शिकायत में भूषण और शौरी ने दावा किया कि अनिल अंबानी के रिलायंस समूह ने पेरिस में सौदे पर दस्तखत होने से कुछ दिन पहले ही अपनी सहायक कंपनी रिलायंस डिफेंस बनाई थी। इसमें कहा गया है कि सौदे पर हस्ताक्षर होने के महज दो महीने बाद रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) 2013 में संशोधन किया गया और संशोधन में कहा गया कि केवल ऑफसेट शर्तों के साथ सौदा होगा।
इसमें आरोप लगाया गया है,‘अगस्त 2015 में जब मुख्य खरीद निविदा पर हस्ताक्षर होना था, सरकार में कोई ऑफसेट को लेकर काफी चिंतित था। इसके बाद उक्त संशोधन को डीपीपी, 2016 में यथारूप शामिल कर लिया गया जो एक अप्रैल 2016 से प्रभावी हुआ।’ शिकायत में ‘36 हजार करोड़ रुपये के घोटाले’ के आरोप लगाते हुए दावा किया गया कि सौदे को ‘अनुचित, बेईमानी, बदनीयती और आधिकारिक पद के दुरुपयोग’ के साथ किया गया।
आपको बता दें कि इसके पहले राफेल विमानों के निर्माता दसॉ ने सौदे के ऑफसेट दायित्व को पूरा करने के लिए रिलायंस डिफेंस को अपना साझेदार चुना था। लेकिन बीते दिनों फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने यह कहकर तहलका मचा दिया था कि मोदी सरकार ने ही उससे अनिल अंबानी की इस कंपनी का नाम आगे बढ़ाने के लिए कहा था। उधर, सरकार कहती रही है कि दसॉ द्वारा ऑफसेट साझेदारी चुनने में उसकी कोई भूमिका नहीं है।