वरिष्ठ पत्रकार और निजी न्यूज चैनल NDTV के सह-संस्थापक व कार्यकारी सह-अध्यक्ष प्रणय रॉय के आवास और कार्यालयों पर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा की गई छापेमारी का मामला थमने का नाम नहीं ले रहा है। मंगलवार (27 जून) को NDTV ने अपने वेबसाइट पर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी कर सरकार द्वारा लगाए गए सभी आरोपों का सिलसिलेवार तरीके से जवाब दिया है।
साथ ही NDTV ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि राजनैतिक दबाव और किसी भी सबूत के बिना सीबीआई को अपने ही दिशानिर्देशों के विरुद्ध काम करने के लिए बाध्य किया गया। चैनल का दावा है कि सीबीआई के राजनैतिक आकाओं ने देशभर के मीडिया को डराने की खुल्लमखुल्ला कोशिश के तहत NDTV के पत्रकार-संस्थापकों के खिलाफ छापा डलवाया।
NDTV ने अपने चैनल के वेबसाइट पर लिखा है, ‘5 जून, 2017 को, कथित रूप से त्वरित कार्रवाई करने के लिए डाले गए राजनैतिक दबाव, तथा किसी भी सबूत के बिना सीबीआई को अपने ही दिशानिर्देशों के विरुद्ध काम करने के लिए बाध्य किया गया।
सीबीआई के राजनैतिक आकाओं ने देशभर के मीडिया को डराने की खुल्लमखुल्ला कोशिश के तहत NDTV के पत्रकार-संस्थापकों के खिलाफ छापा डलवाया। ये छापे ऐसे वक्त में मारे गए हैं, जब देश के विभिन्न हिस्सों में मीडिया पर हमले हो रहे हैं।’
चैनल ने आगे लिखा है, ‘ये छापे एक ऐसे मामले में डाले गए हैं, जिसका कोई आधार नहीं है, और जिसे NDTV कोर्ट में चुनौती देगा। एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि वर्ष 2009 में आईसीआईसीआई बैंक, देश में निजी क्षेत्र का सबसे बड़ा बैंक ने एक कर्ज को री-स्ट्रक्चर किया (कर्ज का स्वरूप बदला) तथा, इस स्वरूप परिवर्तन के चलते, ब्याज की रकम 48 करोड़ रूपये घटा दी गई।’
NDTV ने कहा कि, ‘वास्तव में, यह स्वरूप परिवर्तन कर्ज के एक हिस्से के लिए किया गया, जिसे न सिर्फ चुका दिया गया था, बल्कि NDTV के संस्थापकों, जो दोनों ही पत्रकार हैं, ने निर्धारित समय से पहले इसका भुगतान किया था। स्वरूप बदलाव के तहत तय की गई नई शर्तों में ब्याज को घटाया जाना (यह सामान्य व्यापारिक प्रक्रिया है, जिसे भारत और दुनियाभर के बैंक व्यवहार में लाया करते हैं, विशेष रूप से वर्ष 2008 के विश्वव्यापी आर्थिक संकट के काल में)’
सीबीआई पर गलत तथ्य के आधार पर FIR दर्ज करने का आरोप लगाते हुए NDTV ने कहा, ‘अपने राजनैतिक आकाओं के दबाव में सीबीआई ने अपनी एफआईआर में आधारभूत तथ्य ही गलत कर लिए हैं। इन्हें देखिए:-‘
1. सबसे पहले, कुल छह करोड़ रुपये की रकम का स्वरूप बदला गया, 48 करोड़ रुपये का नहीं।
निष्पक्ष गैर-राजनैतिक हालात में सीबीआई बेहद आसानी से अपने फर्ज़ी मामले के आधार की जांच सिर्फ दस्तावेज़ की जांच से कर सकती थी, कर सकती है।
2. सीबीआई की नियमावली में 15 चरण तय किए गए हैं, जिनका पालन किए जाने के बाद ही छापे की कार्रवाई की जा सकती है। प्रतीत होता है, तुरंत छापा मारने के राजनैतिक दबाव की वजह से जल्दबाज़ी में सीबीआई ने इन सभी अनिवार्य चरणों को अनदेखा कर दिया।
3. इस घटना से यह पता चलता है कि राजनैतिक दबाव में आकर जल्दबाज़ी में काम करने से सीबीआई की छवि को भारी नुकसान हो सकता है। सीबीआई ने एक बार फिर चौंका देने वाली ‘गलती’ की – या उनके राजनैतिक आकाओं ने उन्हें ऐसा करने के निर्देश दिए थे, या वे इसे प्रोत्साहित कर रहे थे? एफआईआर में कहा गया है कि संस्थापकों ने आईसीआईसीआई बैंक को 3,666 करोड़ रुपये चुकाने थे। लेकिन कर्ज की वास्तविक रकम 350 करोड़ रुपये थी।
4. सीबीआई और उसके राजनैतिक आका जानते हैं (इस बात के साफ रिकॉर्डेड सबूत और ईमेल मौजूद हैं) कि इस कर्ज की मंज़ूरी और फिर भुगतान व स्वरूप बदलाव देश के दो बेहतरीन, सबसे ईमानदार और सबसे सम्माननीय वित्त विशेषज्ञों की सीधी देखरेख में हुआ- केवी कामत तथा चंदा कोचर।
NDTV ने आगे लिखा है, वर्ष 2008 में केवी कामत की देखरेख में इस ऋण को मंज़ूर किया गया था। श्री कामत देश के सबसे महान तथा सबसे सम्मानित अधिकारियों में से एक हैं। अब वह ब्रिक्स (BRICS) बैंक (एनडीबी) के प्रमुख हैं। सीबीआई द्वारा उन्हें इस मामले में घसीटा जाना हैरान करने वाला है, और देश की छवि के लिए बुरा है।
वर्ष 2009 में सुश्री चंदा कोचर, जो देश की सबसे सम्मानित बैंकर हैं और जिन्हें देश और दुनिया में उनकी सत्यनिष्ठा के लिए जाना जाता है, की देखरेख में इस कर्ज का भुगतान तथा स्वरूप बदलाव किया गया था। सीबीआई को देश के इन महान लोगों की सत्यनिष्ठा पर सवाल उठाने के लिए शर्म आनी चाहिए।
5. इन राजनैतिक हालात के तहत सीबीआई ने आईसीआईसीआई बैंक पर भी गलत आरोप लगाया कि उनके द्वारा इस कर्ज का किया गया स्वरूप बदलाव गलत था। कर्जों के भुगतान के दौरान ब्याज दर का स्वरूप बदले जाने के बैंकों के फैसलों को आरबीआई स्पष्ट रूप से बार-बार मंज़ूरी देता रहा है, उन्हें सत्यापित करता रहा है।
चैनल ने आगे लिखा, आईसीआईसीआई बैंक ने आरबीआई के दिशानिर्देशों का पालन किया है, और कुछ भी गलत नहीं किया है। उसके वार्षिक लेखा के अनुसार, आईसीआईसीआई बैंक ने उसी साल, यानी 2009 में, बिल्कुल इसी तरह अन्य कंपनियों के 2,000 करोड़ रुपये के कर्जों का पूरी तरह कानूनी तरीके से स्वरूप बदलाव किया था (एसबीआई ने भी इसी कानूनी तरीके से बहुत-से कर्जों का स्वरूप बदला है)।