राफेल विमान की कीमत को लेकर सवाल उठाने वाले रक्षा मंत्रालय के अधिकारी को सरकार ने छुट्टी पर भेजा! राहुल गांधी ने PM मोदी पर बोला हमला

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राफेल विमान सौदे पर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के सनसनीखेज दावे के बाद भारत में सियासी घमासान जारी है। राफेल सौदे में ‘ऑफसेट साझेदार’ के संदर्भ में फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के कथित बयान को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विपक्ष लगातार हमला बोल रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी राफेल मामले की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच की मांग कर रहे हैं। उनका आरोप है कि यह ‘स्पष्ट रूप से भ्रष्टाचार का मामला’ है।

दरअसल, फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने मीडियापार्ट को दिए इंटरव्यू में कहा कि राफेल सौदे में रिलायंस का नाम खुद भारत सरकार ने सुझाया था। ओलांद का इंटरव्यू दुनिया के कई टीवी चैनलों पर प्रसारित होने के बाद राफेल सौदे को लेकर सरकार और विपक्ष दोनों की तरफ से प्रतिदिन आरोप-प्रत्यारोप जारी हैं। उनके इस बयान के बाद विपक्षी पार्टियों के आरोपों को बल मिला और उन्होंने सरकार पर हमलावर तेवर अख्तियार कर लिए है।

राफेल विमान की कीमत को लेकर अधिकारी ने जताई थी आपत्ति

इस बीच राफेल विमान सौदे को लेकर एक नया मोड़ आ गया है। दरअसल मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक राफेल विमान की कीमत को लेकर रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने आपत्ति जताई थी, लेकिन उनकी आपत्ति को खारिज कर दिया गया। वहीं कीमत को लेकर सवाल उठाने वाले अधिकारी को छुट्टी पर भेज दिया गया और जिसके बाद सरकार ने सौदे को हरी झंडी दे दी।

दरअसल, अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने राफेल विमान की कीमत पर आपत्ति जताई थी। अखबार के मुताबिक अधिकारी ने कहा कि यूरोफाइटर ने इसी तरह का विमान 20 फीसदी कम कीमत पर देने की पेशकश की है और ऐसे में फ्रांस से कहा जाए कि वह राफेल के लिए 20 फीसदी कम कीमत ले। इसके बाद संयुक्त सचिव को छुट्टी पर जाना पड़ा।

अखबार के मुताबिक, राफेल विमान की खरीद को लेकर दिल्ली में भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और फ्रांस के उनके समकालीन के बीच सितंबर 2016 में हस्ताक्षर से करीब एक महीना पहले रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने इसके मानक कीमत को लेकर आपत्ति जताई थी। वे अधिकारी उस वक्त रक्षा मंत्रालय में ज्वाइंट सेक्रेटरी और एक्यूशन मैनेजर (एयर) और कांट्रैक्ट निगोशिएशन कमिटी में शामिल थे।

अधिकारी ने इससे संबंधित कैबिनेट को एक नोट भी लिखा था। सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस को पुष्टि की है कि उनके आपत्तियों की वजह से कैबिनेट द्वारा इस सौदे को मंजूरी देने में देरी भी हुई और इसे तब मंजूरी दी गई जब उनकी आपत्तियों को रक्षा मंत्रालय के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने खारिज कर दिया। रक्षा मंत्रालय के अधिकारी द्वारा रफाल सौदे को लेकर दर्ज की गई आपत्ति अभी कैग के पास है और राजनीतिक विवाद शुरू होने के बाद इसका अध्ययन किया जा रहा है।

अखाबर के मुताबिक, इसके बाद अापत्ति दर्ज करवाने वाले अधिकारी को एक महीने की छुट्टी पर भेज दिया गया और सितंबर 2016 के पहले सप्ताह में डीएसी द्वारा 36 रफाल विमान सौदे को मंजूरी दे दी गई। सूत्रों के अनुसार, दिसंबर माह में संसद के शीतकालीन सत्र में कैग इस रिपोर्ट को प्रस्तुत कर सकता है। कैग रिपोर्ट में रफेल डील को लेकर दर्ज की गई आपत्ति और उस आपत्ति को खारिज करने से जुड़ी विस्तृत जानकारी हो सकती है।

राहुल गांधी ने बोला हमला

इंडियन एक्सप्रेस की इस खबर को शेयर कर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुरुवार (27 सितंबर) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर एक बार फिर हमला बोला है। राहुल ने लिखा, ‘मोदी-अंबानी का देखो खेल, HAL से छीन लिया राफेल, धन्नासेठों की कैसी भक्ति, घटा दिया सेना की शक्ति, जिस अफसर ने चोरी से रोका, ठगों के सरदार ने उसको ठोका, पिट्ठुओं को मिली शाबाशी, सेठों ने उड़ती चिड़िया फांसी, जन-जन में फैल रही है सनसनी, मिलकर रोकेंगे लुटेरों की कंपनी।’

ओलांद के बयान से राजनीतिक भूचाल

आपको बता दें कि राफेल विमानों की खरीद को लेकर फ्रांसीसी अखबार ‘मीडियापार्ट’ में छपी फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के एक बयान ने भारत में राजनीतिक भूचाल ला दिया है। दरअसल, फ्रांसीसी मीडिया के मुताबिक ओलांद ने कथित तौर पर कहा है कि भारत सरकार ने 58,000 करोड़ रुपए के राफेल विमान सौदे में फ्रांस की विमान बनाने वाली कंपनी दसाल्ट एविएशन के ऑफसेट साझेदार के तौर पर अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस का नाम प्रस्तावित किया था और ऐसे में फ्रांस के पास कोई विकल्प नहीं था।

ओलांद के सनसनीखेज बयान से इस विवाद में एक नया मोड़ आ गया है, क्योंकि उनके हवाले से किया गया यह दावा मोदी सरकार के बयान से उलट है। भारत सरकार कहती रही है कि फ्रांसीसी कंपनी दसाल्ट एविएशन ने खुद अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस का चुनाव किया था। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार अब तक यही कहती रही है कि उसे आधिकारिक रुप से इस बात की जानकारी नहीं थी कि दसाल्ट एविएशन ने इस करार की ऑफसेट शर्त को पूरा करने के लिए भारतीय साझेदार के तौर पर किसे चुना है।

मुश्किल में फंसी मोदी सरकार

ओलांद का बयान सामने आने के बाद विपक्षी पार्टियों ने राफेल करार को लेकर मोदी सरकार पर हमले तेज कर दिए हैं। वे करार में भारी अनियमितता और रिलायंस डिफेंस लिमिटेड को फायदा पहुंचाने के आरोप लगाते रहे हैं। उनका कहना है कि एयरोस्पेस क्षेत्र में रिलायंस डिफेंस लिमिटेड को कोई अनुभव नहीं है, लेकिन फिर भी सरकार ने अनुबंध उसे दे दिया। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अप्रैल 2015 को पेरिस में तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद से बातचीत के बाद 36 राफेल विमानों की खरीद का ऐलान किया था। करार पर अंतिम मुहर 23 सितंबर 2016 को लगी थी।

कांग्रेस का आरोप है कि सरकार इस सौदे के माध्यम से रिलायंस डिफेंस को फायदा पहुंचा रही है। रिलायंस डिफेंस ने इस सौदे की ऑफसेट जरुरतों को पूरा करने के लिए दसाल्ट एविएशन के साथ संयुक्त उपक्रम स्थापित किया है। विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया है कि रिलायंस डिफेंस 10 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से राफेल करार की घोषणा किए जाने से महज 12 दिन पहले बनाई गई। हालांकि, रिलायंस ग्रुप ने आरोपों को नकारा है। इन विमानों की आपूर्ति सितंबर 2019 से शुरू होने वाली है।

‘जनता का रिपोर्टर’ ने किया था खुलासा

गौरतलब है कि ‘जनता का रिपोर्टर’ ने राफेल सौदे को लेकर तीन भागों (पढ़िए पार्ट 1पार्ट 2 और पार्ट 3 में क्या हुआ था खुलासा) में बड़ा खुलासा किया था। जिसके बाद कांग्रेस और राहुल गांधी यह आरोप लगाते आ रहे हैं कि मोदी सरकार ने फ्रांस की कंपनी दसाल्ट से 36 राफेल लड़ाकू विमान की खरीद का जो सौदा किया है, उसका मूल्य पूर्ववर्ती यूपीए सरकार में विमानों की दर को लेकर बनी सहमति की तुलना में बहुत अधिक है। इससे सरकारी खजाने को हजारों करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।

कांग्रेस का आरोप है कि सरकार हर विमान को 1670 करोड़ रुपये से अधिक की कीमत पर खरीद रही है, जबकि संप्रग सरकार के दौरान 526 करोड़ रुपये प्रति विमान की दर से 126 राफेल विमानों की खरीद की बात चल रही थी। साथ ही पार्टी ने यह भी दावा किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सौदे को बदलवाया जिससे सरकारी उपक्रम हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) से ठेका लेकर रिलायंस डिफेंस को दिया गया।

 

 

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