राफेल सौदा विवाद: PM मोदी के इस्तीफे की मांग को लेकर 27 सितंबर को मार्च निकालेगी कांग्रेस

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राफेल विमान सौदे पर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के सनसनीखेज दावे के बाद भारत में सियासी घमासान जारी है। राफेल सौदे में ‘ऑफसेट साझेदार’ के संदर्भ में फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के कथित बयान को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगातार हमला बोल रहे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि पीएम मोदी इस मामले में सफाई दें और खुद को पाकसाफ साबित करें क्योंकि यह प्रधानमंत्री पद की गरिमा और देश के जवानों के भविष्य का सवाल है।

राहुल गांधी ने राफेल मामले की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच की मांग दोहराते हुए शनिवार को कहा कि यह ‘स्पष्ट रूप से भ्रष्टाचार का मामला’ है।’ दरअसल फ्रांस्वा ओलांद ने मीडियापार्ट को दिए इंटरव्यू में कहा कि राफेल सौदे में रिलायंस का नाम खुद भारत सरकार ने सुझाया था। उनके इस बयान के बाद विपक्षी पार्टियों के आरोपों को बल मिला और उन्होंने सरकार पर हमलावर तेवर अख्तियार कर लिए है।

इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस्तीफे और राफेल लड़ाकू विमान सौदे की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति की मांग को लेकर महाराष्ट्र कांग्रेस 27 सितंबर को मुंबई में विरोध मार्च निकालेगी। महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख अशोक चव्हाण ने शनिवार को संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए मोदी पर प्रहार किया और दावा किया मोदी के लिए देश हित से ऊपर दोस्तों का व्यापारिक हित है।

उन्होंने आरोप लगाया कि राफेल सौदे से जुड़े ब्यौरे को राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर दबाया जा रहा है। उन्होंने दावा किया कि यह घोटाला है। चव्हाण ने दावा किया, ‘‘मोदी और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण लोगों को गुमराह कर रहे हैं और धोखा कर रहे हैं। दोनों को तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए। घोटाले के कारण मोदी का भ्रष्ट चेहरा उजागर हो गया है।’’

एक अन्य घटनाक्रम में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की महाराष्ट्र इकाई के प्रमुख जयंत पाटिल ने शनिवार को दावा किया कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद के बयान के बाद राफेल विमान सौदे पर मोदी सरकार के स्पष्टीकरण का कोई मतलब नहीं रह गया है। पाटिल ने दावा किया, ‘‘मोदी सरकार का पूरी तरह भंडाफोड़ हो गया है।’’

ओलांद के बयान से राजनीतिक भूचाल

आपको बता दें कि राफेल विमानों की खरीद को लेकर फ्रांसीसी अखबार ‘मीडियापार्ट’ में छपी फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के एक बयान ने भारत में राजनीतिक भूचाल ला दिया है। दरअसल, फ्रांसीसी मीडिया के मुताबिक ओलांद ने कथित तौर पर कहा है कि भारत सरकार ने 58,000 करोड़ रुपए के राफेल विमान सौदे में फ्रांस की विमान बनाने वाली कंपनी दसाल्ट एविएशन के ऑफसेट साझेदार के तौर पर अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस का नाम प्रस्तावित किया था और ऐसे में फ्रांस के पास कोई विकल्प नहीं था।

ओलांद के सनसनीखेज बयान से इस विवाद में एक नया मोड़ आ गया है, क्योंकि उनके हवाले से किया गया यह दावा मोदी सरकार के बयान से उलट है। भारत सरकार कहती रही है कि फ्रांसीसी कंपनी दसाल्ट एविएशन ने खुद अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस का चुनाव किया था। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार अब तक यही कहती रही है कि उसे आधिकारिक रुप से इस बात की जानकारी नहीं थी कि दसाल्ट एविएशन ने इस करार की ऑफसेट शर्त को पूरा करने के लिए भारतीय साझेदार के तौर पर किसे चुना है।

मुश्किल में फंसी मोदी सरकार

ओलांद का बयान सामने आने के बाद विपक्षी पार्टियों ने राफेल करार को लेकर मोदी सरकार पर हमले तेज कर दिए हैं। वे करार में भारी अनियमितता और रिलायंस डिफेंस लिमिटेड को फायदा पहुंचाने के आरोप लगाते रहे हैं। उनका कहना है कि एयरोस्पेस क्षेत्र में रिलायंस डिफेंस लिमिटेड को कोई अनुभव नहीं है, लेकिन फिर भी सरकार ने अनुबंध उसे दे दिया। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अप्रैल 2015 को पेरिस में फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति ओलांद के साथ वार्ता करने के बाद 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के करार की घोषणा की थी।

कांग्रेस का आरोप है कि सरकार इस सौदे के माध्यम से रिलायंस डिफेंस को फायदा पहुंचा रही है। रिलायंस डिफेंस ने इस सौदे की ऑफसेट जरुरतों को पूरा करने के लिए दसाल्ट एविएशन के साथ संयुक्त उपक्रम स्थापित किया है। विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया है कि रिलायंस डिफेंस 10 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से राफेल करार की घोषणा किए जाने से महज 12 दिन पहले बनाई गई। रिलायंस ग्रुप ने आरोपों को नकारा है।

‘जनता का रिपोर्टर’ ने किया था खुलासा

‘जनता का रिपोर्टर’ ने राफेल सौदे को लेकर तीन भागों (पढ़िए पार्ट 1, पार्ट 2 और पार्ट 3 में क्या हुआ था खुलासा) में बड़ा खुलासा किया था। जिसके बाद कांग्रेस और राहुल गांधी यह आरोप लगाते आ रहे हैं कि मोदी सरकार ने फ्रांस की कंपनी दसाल्ट से 36 राफेल लड़ाकू विमान की खरीद का जो सौदा किया है, उसका मूल्य पूर्ववर्ती यूपीए सरकार में विमानों की दर को लेकर बनी सहमति की तुलना में बहुत अधिक है। इससे सरकारी खजाने को हजारों करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।

कांग्रेस का आरोप है कि सरकार हर विमान को 1670 करोड़ रुपये से अधिक की कीमत पर खरीद रही है, जबकि संप्रग सरकार के दौरान 526 करोड़ रुपये प्रति विमान की दर से 126 राफेल विमानों की खरीद की बात चल रही थी। साथ ही पार्टी ने यह भी दावा किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सौदे को बदलवाया जिससे एचएएल से ठेका लेकर रिलायंस डिफेंस को दिया गया।

 

 

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