मुसलमानों के पाकिस्तान जाने की बात पर पहलू खान के बेटे ने कहा- मैं इस देश में पैदा हुआ था और इस देश का हूं

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55 वर्षीय पहलू खान का नाम तो आपको याद ही होगा अगर नहीं याद है तो आइए हम आपको याद दिला देते है। पहलू खान वह शख्स थे जिन्हें राजस्थान के अलवर के बहरोड़ थाना क्षेत्र में कथित गौरक्षकों ने गोतस्करी का आरोप लगाकर उनकी पीट-पीटकर हत्या कर दी थी।

फोटो- जनसत्ता (पहलू खान का बेटा अरशद खान)

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, शुक्रवार(7 जुलाई) को पहलू खान के बेटे अरशद ने कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में कृषि संकट, काऊ पॉलिटिक्स और लिंचिंग (हत्या) पर बोलते हुए उसने कहा कि, मुसलमानों को कुछ लोग बोलते हैं पाकिस्तान जाने को पर मैं इस देश में पैदा हुआ था और इस देश का हूं।

साथ ही उन्होंने कहा कि, डेयरी उत्पादन कोई नया पेश नहीं है हमारे पास सभी दस्तावेज थे। साथ ही पहलू खान के बेटे अरशद ने कहा कि हमारे लिए भी (मुस्लिमों) गाय माता है, लेकिन इसके लिए आपको किसी भी इंसान की जान नहीं लेनी चाहिए। मेरे पिता की हत्या को तीन महीने हो गए लेकिन न्याय के आसपास कोई भी बातचीत नहीं हुई।

जनसत्ता की ख़बर के मुताबिक, इस चर्चा के दौरान प्रख्यात इतिहासकार प्रोफेसर डी एन झा, जिन्होंने “द माइथ ऑफ द होली काऊ” लिखी और जेएनयू के प्रोफेसर मौजूद रहे। झा ने अपनी पुस्तक में दिए गए तर्कों को संक्षेप में बताते हुए कहा कि हमारे पूर्वज गोमांस खाने के पक्ष में थे। वैदिक काल में बलिदान हाथों से होता था। भारत माता, गोमाता और हिदुत्व 19वीं सदी की अवधारणा है, हमें इसकी पुरातनता पर सवाल करना चाहिए।

गौरतलब है कि, राजस्थान के अलवर के बहरोड़ थाना क्षेत्र में कथित गोरक्षकों की भीड़ द्वारा गाय लेकर जा रहे मुस्लिम समुदाय के 15 लोगों पर किए गए हमले में बुरी तरह जख्मी 55 वर्षीय पहलू खान नाम की मौत हो गई थी। मेवात जिले के नूंह तहसील के जयसिंहपुर गांव के रहने वाले पहलू खान एक अप्रैल को अपने दो बेटों और पांच अन्य लोगों के साथ जब गाय खरीदकर लौट रहे थे, तब राजस्थान के बहरोड़ में कथित गोरक्षों ने गो-तस्करी का आरोप लगाकर उन लोगों की जमकर पिटाई की थी।

भीड़ के हमले में अन्य लोगों के साथ बुरी तरह से पिटाई के शिकार हुए 55 साल के पहलू खान ने 3 अप्रैल को अस्पताल में दम तोड़ दिया। जबकि, बाद में मिले दस्तावेजों से साफ होता है कि उनके पास गाय ले जाने के दस्तावेज भी थे। इन रसीदों में इन लोगों द्वारा जयपुर नगर निगम और दूसरे विभागों को चुकाए गए पैसों की रसीद है, जिसके तहत वे कानूनी रूप से गायों को ले जाने का हक रखते थे।
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