टीम इंडिया के पूर्व सलामी बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग ने निजी कारणों का हवाला देते हुए आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रस्ताव से इंकार कर दिया है। दिल्ली इकाई के एक वरिष्ठ नेता ने यह जानकारी दी है। हालांकि, उन्होंने दावा किया कि सहवाग की टीम के पूर्व खिलाड़ी गौतम गंभीर राजनीति में कदम रखने और दिल्ली से चुनाव लड़ सकने को लेकर ‘गंभीर’ हैं।
समाचार एजेंसी पीटीआई (भाषा) की रिपोर्ट के मुताबिक, नेता ने बताया कि सहवाग का नाम पश्चिम दिल्ली सीट के लिए चल रहा था जिस पर इस समय बीजेपी के प्रवेश वर्मा सांसद हैं। हालांकि सहवाग ने निजी कारणों का हवाला देते हुए प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उन्होंने कहा, ‘‘सहवाग ने कहा कि वह राजनीति या चुनाव लड़ने में दिलचस्पी नहीं रखते हैं।’’
दरअसल, पिछले साल जुलाई में दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी और केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने वीरेंद्र सहवाग से मुलाकात की थी। जिसके बाद से ऐसी अफवाहें उड़ने लगी थीं कि शायद सहवाग 2019 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर अपना हाथ आज़मा सकते हैं।
पिछले कुछ दिनों से यह चर्चाएं भी थी कि वीरेंद्र सहवाग बीजेपी के टिकट पर हरियाणा की रोहतक लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकते है। कयास लगाए जा रहे थे कि हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बेटे व कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा के खिलाफ बीजेपी वीरेंद्र सहवाग को मैदान पर उतार सकती है।
हालांकि, भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व खिलाड़ी ने ट्विटर पर कहा था, ‘‘कुछ चीजें कभी नहीं बदलती, जैसे इस तरह की अफवाह। 2014 में भी ऐसा हुआ था और 2019 की अफवाह में भी कोई नयापन नहीं है। ना तो तब दिलचस्पी थी, ना अब है। बात खत्म’’
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी के दिल्ली इकाई के वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘लोकसभा चुनाव के लिए हो रही बैठकों में गंभीर ने भाग लेना शुरू कर दिया है। इस सप्ताह के शुरु में डिफेंस कॉलोनी में रेसिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा आयोजित इस तरह की एक बैठक में उन्होंने हिस्सा लिया था।’ संपर्क करने पर गंभीर ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘इसके बारे में मुझे कोई संकेत नहीं है। अभी तक, ये अफवाहें हैं।’
बता दें कि दिल्ली की सातों लोकसभा सीट पर 12 मई को मतदान होना है। राष्ट्रीय राजधानी की सात संसदीय सीटों के लिए बीजेपी अपने उम्मीदवारों की घोषणा अप्रैल के पहले सप्ताह में कर सकती है। बता दें कि बीते लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने दिल्ली की सभी सातों सीटों पर कब्जा किया था, वहीं उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में उसे 70 में से महज तीन सीटें मिली थीं।