इस साल कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत समुदाय की अलग धर्म की मांग को लेकर बड़ा फैसला लिया है। कर्नाटक सरकार ने नागमोहन दास कमेटी की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए लिंगायत समुदाय के लोगों को अलग धर्म का दर्जा देने के सुझाव को मंजूरी दे दी है। सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक दर्जा देने की केंद्र से सिफारिश की है। अब इस पर अंतिम फैसला केंद्र सरकार को करना है।
कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इस फैसले को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस बीच कर्नाटक की सरकार द्वारा लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के मामले में सियासी टकराव बढ़ता जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने सिद्धारमैया सरकार के इस फैसले की निंदा की और इसे हिंदुओं को बांटने वाला फैसला करार दिया है। कर्नाटक बीजेपी के महासचिव सीटी रवि ने ट्वीट राज्य के सत्तारूढ़ कांग्रेस पर “विभाजन और शासन” नीति का आरोप लगाया है।
The idea of #BreakingIndia by dividing Hindu Religion is the brainchild of Sonia Gandhi which has been cunningly executed by @siddaramaiah who is an expert in "Divide & Rule" policy.
As #CongressDividesHindus to install an Incompetent Dynast as PM the Nation continues to suffer.
— C T Ravi ???????? ಸಿ ಟಿ ರವಿ (@CTRavi_BJP) March 20, 2018
वहीं कर्नाटक कांग्रेस के सोशल मीडिया इंचार्ज होने का दावा करने वाले श्रीवास्ता ने ट्वीट कर बीजेपी के आरोपों को खारिज करते हुए एक लेटर जारी कर दावा किया है कि बीजेपी के मौजूदा मुख्यमंत्री उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा खुद राज्य में लिंगायत समाज के बड़े नेता हैं और उन्होंने लिंगायत समाज को अलग धर्म का दर्जा देने की मांग पर हस्ताक्षर किए थे।
Even Karnataka BJP President Yeddyurappa had signed on the demand to accord Lingayats an independent religion status. True to his nature, he has done an u-Turn now. pic.twitter.com/CyfVX0JHhp
— Srivatsa (@srivatsayb) March 19, 2018
कांग्रेस समर्थक द्वारा जारी किए दस्तावेजों के मुताबिक साल 2013 में बीजेपी के कर्नाटक के नेता बीएस येदियुरप्पा ने इसी तरह की मांग करने वाले एक ज्ञापन पर दस्तखत किए थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भेजे गए ज्ञापन में यह मांग की गई है कि जनगणना फॉर्म में वीरशैव-लिंगायत धर्म के लिए अलग कोड/कॉलम बनाया जाए, यानी वीरशैव-लिंगायत को अलग धर्म माना जाए।
बता दें कि लिंगायत समाज मुख्य रूप से दक्षिण भारत में है। लिंगायत समाज को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है। कर्नाटक की जनसंख्या में लिंगायत समुदाय की हिस्सेदारी करीब 18 प्रतिशत है। इस समुदाय को बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है। यहां तक कि बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार बीएस येदियुरप्पा भी इसी समुदाय से आते हैं।
अब कर्नाटक में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले सत्तारूढ़ दल कांग्रेस ने वीरशैव लिंगायत को अलग धर्म की मान्यता देकर बड़ा दांव खेल दिया है। कांग्रेस के इस दांव से बीजेपी के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है। क्योंकि अब बीजेपी के इसी वोटबैंक में कांग्रेस सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। उनका यह फैसला बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। लिहाजा इस मामले पर सियासी वार-पलटवार शुरू हो गया है।
बता दें कि राज्य सरकार ने लिंगायतों की लंबे समय से चली आ रही इस मांग पर विचार के लिए हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस नागामोहन दास की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। इस समिति ने लिंगायत समुदाय के लिए अलग धर्म के साथ अल्पसंख्यक दर्जे की सिफारिश की थी, जिसे कैबिनेट की तरफ से अब मंजूरी मिल गई है। अब यह सिफारिश केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के पास भेजा जाएगा, जिसे राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील माने जाने वाले इस मामले पर अंतिम फैसला करना होगा।