इस साल कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत समुदाय की अलग धर्म की मांग को लेकर बड़ा फैसला लिया है। कर्नाटक सरकार ने नागमोहन दास कमेटी की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए लिंगायत समुदाय के लोगों को अलग धर्म का दर्जा देने के सुझाव को मंजूरी दे दी है। कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इस फैसले को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
सरकार के इस फैसले के बाद लिंगायत समुदाय के लोग अब अलग धर्म का पालन कर सकते हैं। इससे पहले लिंगायत समुदाय के लोगों ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से मुलाकात करके उनके धर्म को अलग मान्यता देने के साथ उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग की थी। बता दें कि राज्य सरकार ने लिंगायतों की लंबे समय से चली आ रही इस मांग पर विचार के लिए हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस नागामोहन दास की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था।
इस समिति ने लिंगायत समुदाय के लिए अलग धर्म के साथ अल्पसंख्यक दर्जे की सिफारिश की थी, जिसे कैबिनेट की तरफ से अब मंजूरी मिल गई है। अब यह सिफारिश केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के पास भेजा जाएगा, जिसे राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील माने जाने वाले इस मामले पर अंतिम फैसला करना होगा। बता दें कि लिंगायत समाज को कर्नाटक के अगड़ी जातियों में गिना जाता है। कर्नाटक में करीब 18 प्रतिशत लिंगायत समुदाय के लोग हैं।
दरअसल लिंगायत समुदाय राज्य में काफी प्रभावशाली माना जाता है और लंबे समय से इसका झुकाव भारतीय जनता पार्टी की तरफ देखा जा रहा था। बीजेपी के मौजूदा मुख्यमंत्री उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। बीजेपी और तमाम हिंदू संगठन ने हमेशा इसका विरोध किया और लिंगायत व वीरशैव को अलग धर्म देने की खिलाफत की। ऐसे में इस साल होने वाले चुनाव के लिहाज से मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने का यह फैसला काफी अहम फैसला माना जा रहा है।