उत्तर प्रदेश में भारी जीत दर्ज करने वाली भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) ने राज्य की कमान गोरखपुर से सांसद आदित्यनाथ योगी को सौंप दी है। लेकिन योगी द्वारा सीएम बनने से पहले दिए गए विवादित बयान उनके साथ साया बनकर साथ-साथ चल रहे हैं। एक अंतरराष्ट्रीय संस्था ने नवनिर्वाचित सीएम आदित्यनाथ को सलाह दी है कि उन्हें मुसलमानों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ पूर्व में दिए गए अपने भड़काऊ बयान को सार्वजनिक तौर पर वापस ले लेना चाहिए।
दरअसल, संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यकारी निदेशक अकर पटेल ने कहा कि, “योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के सबसे ध्रुवीकरण वाले राजनीतिज्ञों में से एक हैं जो अल्पसंख्यक समूहों, विशेषकर मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव और शत्रुता भड़काने वाले घृणात्मक लफ्फाजी के लिए दिया गया है।” उन्होंने कहा कि भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में, उनकी और उनकी पार्टी का यह सुनिश्चित करने का दायित्व है कि उनकी स्थिति सरकारी नीति नहीं बनें।
इसलिए यह जरूरी है कि वह किसी भी वक्तव्य को वापस ले लें जो अन्य लोगों के लिए मानव अधिकारों का दुरुपयोग करने का लाइसेंस प्रदान कर सकते हैं।” संस्था का कहना है कि वह(सीएम योगी) कई मामलों में आपराधिक आरोपों का सामना करना पड़ता है, जिसमें हत्या का प्रयास, आपराधिक धमकी, दंगे, विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना और पूजा की जगह को अशुद्ध करना शामिल है।
संस्था का कहना है कि 2007 में गोरखपुर में कथित तौर पर दंगों को उकसाने के लिए उन्हें(सीएम योगी) 15 दिनों के लिए हिरासत में भी लिया गया था। साथ ही साल 2014 में आदित्यनाथ को चुनाव आयोग द्वारा भड़काऊ भाषण देने को लेकर चेतावनी भी दिया गया था।
2014 में लव जिहाद को लेकर एक वीडियो में कथित तौर पर कहते हुए दिखे कि अगर वे (मुस्लिम) एक हिंदू लड़की का धर्म परिवर्तन कराएंगे तो हम 100 मुस्लिम लड़कियों का धर्मांतरण कराएंगे साथ ही उन्होंने कहा था कि,यदि वे एक हिंदू को मारते हैं, तो हम 100 मुसलमानों को मार देंगे।’ बता दें कि, योगी आदित्यनाथ एक हिंदू युवा वाहिनी नाम का संस्था भी चलाते हैं जिसके वह संस्थापक हैं।
‘आदित्यनाथ के जहरीले विचारों को उनके शासन का हिस्सा नहीं बनना चाहिए। मुसलमानों को राक्षस करके उन्होंने धार्मिक विभाजन बढ़ा दिए हैं और आम लोगों को भेदभाव शत्रुता और हिंसा के जोखिम में डाल दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख के रूप में उन्हें अपने जहरीले बयानों से इनकार करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका प्रशासन सभी धर्मों के लोगों के अधिकारों का सम्मान करता है।’