सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) जैसी जांच एजेंसियों के पास भी काम का भार है और उन्हें भी न्यायपालिका की तरह श्रमशक्ति एवं उचित अवसंरचना की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
समाचार एजेंसी पीटीआई (भाषा) की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमण के नेतृत्व वाली पीठ ने इस स्थिति की निन्दा की कि सांसदों और विधायकों से जुड़े अधिकतर मामले जांच एजेंसियों के पास जांच के चरण में लंबित हैं। न्यायालय ने हालांकि एजेंसियों के लिए कड़े शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया और कहा कि उन्हें भी उन्हीं मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है जिनका सामना न्यायपालिका कर रही है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘हम जानते हैं कि श्रमशक्ति असल मुद्दा है। हमें व्यावहारिक रुख अपनाना होगा। हमारी तरह ही, जांच एजेंसियां भी श्रमशक्ति की कमी का सामना कर रही हैं। आप देखिए, आज हर कोई सीबीआई जांच चाहता है।’
उन्होंने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘श्री मेहता मुद्दे पर हमें आपका सहयोग चाहिए। आप हमें जांच एजेंसियों में श्रमशक्ति के अभाव के बारे में अवगत कराएं।’
शीर्ष अदालत जघन्य अपराधों में दोषी सांसदों और विधायकों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध और उनके खिलाफ मामलों का जल्द निपटारा करने संबंधी अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट सलाहकार ने रिपोर्ट पेश कर बताया गया कि 122 एमपी और एमएलए के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का केस है और मामले में ईडी जांच कर रही है।