जजों की नियुक्ति में सरकार की भूमिका हुई खत्म, सुप्रीम कोर्ट

0

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक एतिहासिक फैसला सुनते हुए न्यायिक नियुक्ति आयोग को असंवैधिक करार कर दिया है। इस के तहत जजों की नियुक्ति में और तबादलों में सरकार की भूमिका भी खत्म हो गयी है।

पांच सदस्यों की बेंच ने न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनएजेसी) को असंवैधिक घोषित कर दिया है और इस मामले को बड़ी बेंच में भेजने की याचिका को भी खारिज कर दिया है।

एनएजेसी सुप्रीम कोर्ट तथा हाई कोर्ट के न्यायधीश पद हेतु उस व्यक्ति की नियुक्ति की सिफारिश नहीं करेगा, जिसके नाम पर काम से काम दो सदस्यों ने सहमति न जताई हो। इस आयोग को लेकर विवाद के कारण सुप्रीम कोर्ट में और भी कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं। इस मामले में आयोग में कानून मंत्री की मौजूदगी पर भी याचिकाकर्ता ने सवाल उठाए हैं। यह तक कहा गया है कि भ्रष्ट सरकार भ्रष्ट न्यायपालिका ही चाहेगी और भ्रष्ट जजों की ही नियुक्ति करेगी। जजों की नियुक्ति में नेताओं को शामिल नहीं होना चाहिए। नेताओं के हितों का टकराव हमेशा रहता है और यह सिस्टम पूरी तरह से न्यायपालिका को दूषित करेगा।

अब तक न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण का निर्धारण एक कोलेजियम व्यवस्था के तहत होता रहा है। जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सहित चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश भी शामिल होते हैं। यह प्रक्रिया वर्ष 1993 से लागू की गई थी। जिसके तहत कोलेजियम सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति की अनुशंसा करता था। जिसकी सिफारिश विचार और स्वीकृति के लिए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजी जाती थी और इसकी राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद संबंधित नियुक्ति की जाती थी।

इसी तरह से उच्च न्यायालय के लिए संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश कोलेजियम से सलाह मशविरे के बाद ही प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजते थे। फिर यह प्रस्ताव देश के प्रधान न्यायाधीश के पास जाता था। उसके बाद में इसे विचार और स्वीकृति के लिए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास भेजा जाता था।

सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग एक्ट बनाया था जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति और तबादले किये जाते थे।

आयोग में केवल छह सदस्य रखने की बात थी और इसमें भारत के प्रधान न्यायाधीश  (सीजेआई) इसके अध्यक्ष और सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश इसके सदस्य होंगे। यही नहीं केंद्रीय कानून मंत्री को इसका पदेन सदस्य बनाए जाने का प्रस्ताव भी था। दो प्रबुद्ध नागरिक भी इसके सदस्य होंगे, जिनका चयन प्रधानमंत्री, प्रधान न्यायाधीश और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सहित तीन सदस्यों वाली समिति करेगी। यदि लोकसभा में नेता विपक्ष नहीं होगा तो सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता ही चयन समिति में होगा।

Previous articleJolt to Modi govt, Supreme Court scraps rule for picking judges
Next articleअभिनेता रवि किशन की बेटी लापता, शिकायत दर्ज