सोशल मीडिया: “ये इत्तेफाक है या साजिश? 8 नवंबर (नोटबंदी दिवस) को ही ‘ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान’ रिलीज हुई है” 

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देश में नोटबंदी लागू किए जाने की आज यानी बुधवार (8 नवंबर) को दूसरी सालगिरह है। आज ही के दिन 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को प्रचलन से बाहर करने की घोषणा की थी। उस वक्त बाजार में चल रही कुल करेंसी का 86 प्रतिशत हिस्सा यही नोट थे। विपक्ष और जानकारों ने तभी नोटबंदी के फैसले के कारण अर्थव्यवस्था की हालत बुरी होने, बेरोजगारी बढ़ने और सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी कम होने की आशंका जताई थी और नोटबंदी के बाद जितने भी रिपोर्ट आए उसमें यह साबित भी हुआ।

File Photo: PTI

इस बीच आज ही के दिन यानी 8 नवंबर को ही अमिताभ बच्‍चन और आमिर खान स्‍टारर फिल्म ‘ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान’ रिलीज हुई है। अमिताभ बच्चन और आमिर खान पहली बार एक साथ किसी फिल्म में नजर आए हैं। इस फिल्म में इन दोनों के अलावा कैटरीना कैफ और फातिमा सना शेख भी मुख्य भुमिकाओं में हैं। ठग्स ऑफ हिंदोस्तान को दर्शकों ने नकार दिया है। किसी ने इसे महा बोरिंग तो किसी ने इसे साल की सबसे बड़ी फ्लॉप फिल्म बताया है। ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’ एक अंग्रेजी उपन्यासकार के उपन्यास पर आधारित है जो आजादी के पूर्व आजादी के दीवानों को आतंकवादी ठग आदि शब्द कहते थे।

‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’ में 1795 की घटना दिखाई गई है। हालांकि, फिल्म में फिरंगी के किरदार में नजर आए आमिर खान ने ट्विटर पर एक पोस्ट शेयर की है जिसमें उन्होंने फिल्म की पूरी टीम का आभार जताया है और पूरी टीम की जमकर तारीफ की है। इस बीच सोशल मीडिया यूजर्स ठग्स ऑफ हिंदोस्तान के रिलीज डेट को लेकर एक नया एंगल जोड़कर जमकर मजा ले रहे हैं। दरअसल, लोग तंज कसते हुए सवाल पूछ रहे हैं कि यह इत्तेफाक है साजिश? 8 नवंबर (नोटबंदी दिवस) को ही ‘ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान’ रिलीज हो रही है।

देखिए, सोशल मीडिया पर लोगों ने कैसे लिए मजे:-

कांग्रेस ने बताया आजादी के बाद सबसे बड़ा ‘घोटाला’

कांग्रेस ने नोटबंदी के दो साल पूरा होने के मौके पर गुरुवार को मोदी सरकार पर हमला बोला और दावा किया कि आठ नवंबर, 2016 को उठाया गया कदम ‘आजाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला’ है। पार्टी ने यह भी कहा कि अब नोटबंदी की जवाबदेही सुनिश्चित करने का समय आ गया है और प्रधानमंत्री को जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्त रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा, ‘‘नोटबंदी आज़ादी के बाद सबसे बड़ा घोटाला है। नोटबंदी से कालाधन रखने वालों की हुई ऐश, रातों रात ‘सफेद’ बनाया सारा कैश! न काला धन मिला, ना नक़ली नोट पकड़े गए, ना ही आतंकवाद व नक्सलवाद पर लगाम लगी।’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘120 लोग मारे गए, अर्थव्यवस्था को 3 लाख करोड़ का नुकसान, लाखों नौकरियाँ गयी। मोदी जी, देशवासियों को अब तक ‘अर्थव्यवस्था तहस-नहस दिवस’ यानी नोटबंदी की दूसरी बरसी की बधाई नहीं दी? कोई विज्ञापन भी नहीं? आप भूल गए होंगे लेकिन देशवासियों को याद है। तैयार रहिए, पश्चात्ताप का समय अब दूर नहीं।’’ सुरजेवाला ने कहा, ‘‘जनता नोटबंदी का बदला भाजपा के ख़िलाफ़ वोट की चोट से लेगी। वक़्त आ गया है कि प्रधानमंत्री मोदी इस तबाही की ज़िम्मेदारी लें, जिसके कारण आम जनता ने लगातार दर्द सहा। वक़्त आ गया है नोटबंदी की जवाबदेही सुनिश्चित करने का। वक़्त आ गया है नोटबंदी घोटाले की जाँच का, ताकि दोषी पकड़े जाएं। देश कभी नहीं भूलेगा।’’

सरकार के दावों की खुली पोल

आपको बता दें कि ठीक दो बरस पहले प्रधानमंत्री मोदी ने आठ नवंबर को रात आठ बजे दूरदर्शन के जरिए देश को संबोधित करते हुए 500 और 1000 रुपए के नोट बंद करने का ऐलान किया था। नोटबंदी की यह घोषणा उसी दिन आधी रात से लागू हो गई। इससे कुछ दिन देश में अफरातफरी का माहौल रहा और बैंकों के बाहर लंबी-लंबी कतारें नजर आईं। बाद में 500 और 2000 रुपए के नये नोट जारी किए गए।

सरकार ने ऐलान किया था कि उसने देश में मौजूद काले धन और नकली मुद्रा की समस्या को समाप्त करने के लिए यह कदम उठाया है। लेकिन आरबीआई की रिपोर्ट ने सरकार के दावों पोल खोलकर रख दी है। आरबीआई के अनुसार अब तक कुल 15 लाख 31 हजार करोड़ रुपए के पुराने नोट वापस आ गए हैं। जबकि नोटबंदी से पहले कुल 15 लाख 41 हजार करोड़ रुपए की मुद्रा प्रचलन में थी। इसका मतलब है कि बंद नोटों में सिर्फ 10,720 करोड़ रुपये ही बैंकों के पास वापस नहीं आए हैं।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने वित्त वर्ष 2017-18 के एनुअल रिपोर्ट में कहा है कि 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी लागू होने के बाद 1000 और 500 रुपए के पुराने नोट तकरीबन वापस आ गए हैं। आरबीआई के मुताबिक नोटबंदी लागू होने के बाद बंद किए गए 500 और 1,000 रुपये के नोटों का 99.3 प्रतिशत बैंको के पास वापस आ गया है। इसका तात्पर्य है कि बंद नोटों का एक काफी छोटा हिस्सा ही प्रणाली में वापस नहीं आया। देश में इससे पहले 16 जनवरी 1978 को जनता पार्टी की गठबंधन सरकार ने भी इन्हीं कारणों से 1000, 5000 और 10,000 रुपये के नोटों का विमुद्रीकरण किया था।

 

 

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