“क्या आप CBI, ED, कोर्ट कचहरी से परेशान है? तो आइए BJP में शामिल हो जाइए, पाला बदलने से काला भी सफेद हो सकता है”

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कोलकाता पुलिस के प्रमुख राजीव कुमार से सारदा चिटफंड घोटाले में केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई द्वारा पूछताछ करने की कोशिशों के खिलाफ रविवार (3 फरवरी) शाम से ही धरने पर बैठीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आखिरकार मंगलवार (5 फरवरी) रात अपना धरना समाप्त कर दिया। धरने को तीसरे दिन खत्म करते हुए ममता ने कहा कि वह ऐसा विपक्षी की अहम पार्टियों के नेताओं के साथ सलाह-मशविरे और सुप्रीम कोर्ट से अनुकूल आदेश आने के बाद कर रही हैं।

(Indian Express File Photos)

बता दें कि बनर्जी पोंजी घोटाला मामले में नगर पुलिस प्रमुख से पूछताछ की सीबीआई की कोशिश के खिलाफ धरना दे रही थीं। वह रविवार रात से एस्प्लेनेड इलाके के मेट्रो चैनल में धरने पर बैठी थीं। यह वही स्थान पर है जहां उन्होंने 2006 में सिंगुर में टाटा मोटर्स के लिए किसानों की भूमि अधिग्रहण के खिलाफ 26 दिन का अनशन किया था। तेदेपा के चंद्रबाबू नायडू, द्रमुक की कनिमोझी और राजद के तेजस्वी यादव जैसे विपक्षी नेताओं ने धरना स्थल का दौरा किया था।

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कोलकाता के पुलिस आयुक्त राजीव कुमार को निर्देश दिया कि वह सीबीआई के समक्ष पेश हों और शारदा चिट फंड घोटाले से संबंधित मामलों की जांच में सहयोग दें। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय पीठ ने हालांकि स्पष्ट किया कि कुमार के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई फिलहाल नहीं की जाएगी, न ही उन्हें गिरफ्तार किया जाएगा। ममता बनर्जी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ‘नैतिक जीत’ करार दिया था।

बीजेपी पर लगा भ्रष्टाचार पर दोहरे मापदंड का आरोप

ममता सहित विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि मोदी सरकार सीबीआई का दुरुपयोग कर विपक्ष को डराने की कोशिश कर रही है। ममता की पार्टी ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी सरकार जानबूझकर उन्हें निशाना बना रही है। टीएमसी का आरोप है कि अगर केंद्र सरकार अगर इतनी निष्पक्ष है तो टीएमसी छोड़कर बीजेपी में शामिल होने वाले सारदा चिट फंड घोटाले के दो मुख्य आरोपियों मुकुल रॉय और हेमंत बिस्वा शर्मा के खिलाफ जांच क्यों नहीं हो रही है?

सोशल मीडिया पर मुकुल रॉय और हेमंत शर्मा को लेकर काफी चर्चा हो रही है। लोग केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी पर भ्रष्टाचार को लेकर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगा रहे हैं। लोगों ने सवाल उठाया है कि आखिर सारदा घोटाले के दो मुख्य आरोपियों पूर्व टीएमसी नेता मुकुल रॉय और असम के मंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा के बीजेपी में शामिल होते ही एक महीने के भीतर सीबीआई जांच की आंच कैसे कम हो गई?

देखिए, लोगों की प्रतिक्रियाएं:-

वरिष्ठ पत्रकार अजित अंजुम ने मुकुल रॉय और हेमंत बिस्वा की एक खबर शेयर करते हुए लिखा है, “पाला बदलने से काला भी सफेद हो सकता है… कांग्रेस में रहते तो पकड़े जाते…टीएमसी में रहते तो जेल जाते” वहीं, सामाजिक और आरटीआई कार्यकर्ता आनंद रॉय ने तंज कसते हुए लिखा है, “क्या आप CBI, ED, कोर्ट कचहरी से परेशान है? तो आइए भाजपा में शामिल हो जाइए…”

मुकुल रॉय और हेमंत शर्मा से हो चुकी है पूछताछ

बता दें कि वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मुकुल रॉय और हेमंत बिस्वा शर्मा के खिलाफ सीबीआई की जांच शुरू हुई। रॉय से 30 जनवरी 2015 को पूछताछ भी की गई। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सारदा चिट-फंड घोटाले में मुकुल रॉय पर कंपनी के चेयरमैन सुदीप्त सेन के साथ कथित तौर पर मिलीभगत का आरोप था। लेकिन रॉय नवंबर 2017 में बीजेपी में शामिल हो गए, इसके बाद रॉय पर लगे आरोपों को लेकर देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी नरम पड़ गई।

वहीं, हेमंत बिस्वा शर्मा से भी सीबीआई ने 26 नवंबर, 2014 को पूछताछ की थी। इसके ठीक दो महीने पहले ही सीबीआई ने गुवाहाटी स्थित उनकी पत्नी के न्यूज चैनल और उनके घर पर छापेमारी की थी। आरोपों के मुताबिक, हेमंत शर्मा पर सारदा कंपनी से हर महीने 20 लाख रुपये लेने के आरोप लगे। हालांकि, जांच एजेंसी ने उनके खिलाफ कोई चार्जशीट दाखिल नहीं की। अगस्त, 2015 में असम में कांग्रेस के विधायक रहे हेमंत बिस्वा शर्मा भी बीजेपी में शामिल हो गए और उसके बाद से आज तक उन्हें भी सीबीआई ने पूछताछ के लिए नहीं बुलाया।

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