प्रताप भानु मेहता के इस्तीफे को लेकर दुनियाभर के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के 150 से अधिक अकादमिक विद्वानों ने अशोका यूनिवर्सिटी को लिखा खुला पत्र

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दुनियाभर के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के 150 से अधिक अकादमिक विद्वानों ने अशोका विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पद से राजनीतिक टिप्पणीकार प्रताप भानु मेहता के इस्तीफे देने पर चिंता जताई है। उन्होंने इस संबंध में विश्वविद्यालय को खुला पत्र लिखा है, जिसमें मेहता के इस्तीफे की वजह राजनीतिक दबाव बताया है।

अशोका यूनिवर्सिटी

गौरतलब है कि, हरियाणा के सोनीपत में स्थित अशोका विश्वविद्यालय मेहता के इस्तीफे के बाद इस सप्ताह की शुरुआत में विवाद का केन्द्र बन गया था। मेहता ने दो साल पहले विश्वविद्यालय के कुलपति के पद से और हाल ही में प्रोफेसर के ओहदे से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने इस्तीफा देते हुए कहा था कि विश्वविद्यालय के संस्थापकों ने ”बिल्कुल स्पष्ट” रूप से कहा है कि संस्थान के साथ उनका संबंध “राजनीतिक बोझ” था।

वहीं, उसके दो दिन बाद पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने भी मेहता के प्रति एकजुटता दिखाते हुए विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पद से इस्तीफा दे दिया था। वहीं, विश्वविद्यालय के छात्र, पूर्व छात्र और संकाय सदस्य भी इस मामले लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उनकी मांग है कि प्रशासन जवाब दे कि क्या मेहता को इसलिए निकाला गया क्योंकि वह जन बुद्धिजीवी और सरकार के आलोचक रहे हैं।

रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी शनिवार को सोशल मीडिया का रुख करते हुए कहा कि मेहता और सुब्रमण्यम के इस्तीफे ”स्वतंत्र अभिव्यक्ति के लिये करारे झटके हैं और संस्थापकों ने विश्वविद्यालय की आत्मा के साथ सौदा कर दिया।”

समाचार एजेंसी पीटीआई (भाषा) की रिपोर्ट के मुताबिक, अकादमिक विद्वानों ने अपने खुले पत्र में लिखा है, ”राजनीतिक दबाव के चलते अशोका विश्वविद्यालय से प्रताप भानु मेहता के इस्तीफा के बारे में जानकर हमें दुख हुआ। भारत की मौजूदा सरकार के जाने-माने आलोचक तथा अकादमिक स्वतंत्रता के रक्षक मेहता को उनके लेखों के चलते निशाना बनाया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि अशोका विश्वविद्यालय के न्यासियों ने उनका बचाव करने के बजाय उनपर इस्तीफा देने का दबाव डाला।”

इस पत्र पर न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, ऑक्सफॉर्ड विश्वविद्यालय, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय, प्रिंस्टन विश्वविद्यालय, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय और कैलिफॉर्निया समेत अन्य विश्वविद्यालयों के अकादमिक विद्वानों के हस्ताक्षर हैं। पत्र में कहा गया है, ”स्वतंत्र वाद-विवाद, सहनशीलता तथा समान नागरिकता की लोकतांत्रिक भावना राजनीतिक जीवन का हिस्सा होते हैं। जब भी किसी विद्वान को आम जनता के मुद्दों पर बोलने की सजा दी जाती है, तो ये मूल्य खतरे में पड़ जाते हैं।”

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