सोशल मीडिया: ‘रक्षा मंत्री देश की रक्षा करने की बजाय अंबानी की राफ़ेल सौदे में दलाली की रक्षा करने में लगी हुई हैं’

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राफेल सौदे को लेकर मोदी सरकार के फैसले पर उठाए जा रहे सवालों के बीच एक और सनसनीखेज खुलासे में ये बात साबित हो गई है कि राफेल सौदे के लिए उद्योगपति अनिल अंबानी के साथ समझौते को अनिवार्य किया गया था। इस बात का खुलासा फ्रांस की खोजी खबरों की वेबसाइट ‘मीडियापार्ट’ ने किया है। ‘मीडियापार्ट’ वेबसाइट ने अपने हाथ लगे दसॉल्ट के एक दस्तावेज के हवाले से दावा किया है कि राफेल सौदे के बदले दसॉल्ट को रिलायंस से डील करने को कहा गया। आपको बता दें कि 59 हजार करोड़ रुपये के 36 राफेल लड़ाकू विमान के सौदे में रिलायंस दसॉ की मुख्य ऑफसेट पार्टनर है।

ताजा रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दसॉ ने अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस से गठजोड़ दिखाकर राफेल सौदा हासिल किया था। रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया है कि फ्रेंच कंपनी दसॉ के सामने अनिल अंबानी के कंपनी रिलायंस के साथ राफेल सौदा करने की शर्त रखी गई थी और इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं दिया गया था। राफेल सौदे को हासिल करने के लिए दसॉ को अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस से गठजोड़ दिखाना पड़ा था।

आपको बता दें कि मीडियापार्ट ने ही पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के भी उस दावे को प्रकाशित किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि राफेल सौदे के लिए भारत सरकार ने ही अनिल अंबानी की रिलायंस का नाम प्रस्तावित किया था और दसॉ एविएशन कंपनी के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। जिसके बाद से राफेल डील को लेकर भारत में राजनीतिक विवाद भी खड़ा हो गया है।

कंपनी ने दी सफाई

मीडियापार्ट के नए खुलासे के बाद फ्रेंच एविएशन कंपनी दसॉ की प्रतिक्रिया सामने आ गई है। भारत को राफेल विमान देने वाली इस कंपनी ने मीडियापार्ट की रिपोर्ट को खारिज करते हुए बताया है कि उसने जॉइंट वेंचर के पार्टनर के रूप में खुद से ही रिलायंस कंपनी का चुनाव किया था। अपनी सफाई में दसॉ ने कहा है कि कंपनी ने “स्वतंत्र” रूप से भारतीय कंपनी रिलायंस के साथ मिलकर दसॉ रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (DRAL) बनाया था। फ्रेंच एविएशन कंपनी दसॉ ने साफ किया कि उसने रिलायंस ग्रुप को अपनी मर्जी से ऑफसेट पार्टनर चुना था।

राहुल गांधी ने पीएम मोदी को बताया ‘भ्रष्ट’

इस नए खुलासे के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुरुवार (11 अक्टूबर) को प्रेस कॉन्फेंस कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर हमला किया। राहुल गांधी ने पीएम मोदी को ‘भ्रष्ट’ करार देते हुए मामले में जांच की मांग की। उन्होंने कहा कि मैं देश के युवाओं से कहना चाहता हूं कि हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री भ्रष्ट हैं। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि अनिल अंबानी जी 45 हजार करोड़ रुपये के कर्जे में हैं। 10 दिन पहले कंपनी खोली और प्रधानमंत्री जी ने 30 हजार करोड़ रुपया हिन्दुस्तान की जनता का पैसा, एयरफोर्स का पैसा अनिल अंबानी की जेब में डाल दिया।

सोशल मीडिया पर घिरी मोदी सरकार

राफेल डील को लेकर नए खुलासे के बाद मोदी सरकार घिरती नजर आ रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के हमले के बाद मोदी सरकार सोशल मीडिया यूजर्स के निशाने पर भी आ गई है। बुधवार रात को हुए नए खुलासे के बाद से ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक और ट्विटर पर राफेल सौदे को लेकर नए सिरे से बहस शुरू हो गई है। देखिए यूजर्स की प्रतिक्रियाएं:-

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से राफेल की खरीद प्रक्रिया का मांगा ब्योरा

आपको बता दें कि इससे पहले बुधवार (10 अक्टूबर) को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के संबंध में निर्णय लेने की प्रक्रिया का ब्योरा मांगा था। राफेल करार के मुद्दे पर जारी राजनीतिक विवाद के बीच  न्यायालय ने बुधवार को मोदी सरकार से कहा कि वह फ्रांस सरकार के साथ हुए राफेल सौदे में निर्णय लेने की प्रक्रिया का विवरण सीलबंद लिफाफे में 29 अक्टूबर तक पेश करे। साथ ही न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसे इसकी कीमत और तकनीकी विवरण के बारे में जानकारी नहीं चाहिए।

इस बीच, सरकार ने राफेल करार के मुद्दे पर दायर जनहित याचिकाएं खारिज करने की मांग करते हुए कहा कि वे ‘‘राजनीतिक याचिकाएं’’ हैं। दो याचिकाओं में दी गई दलीलों को ‘‘अपर्याप्त’’ करार देते हुए प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने यह भी कहा कि वह केंद्र को औपचारिक नोटिस जारी नहीं कर रही है क्योंकि उसने दो वकीलों द्वारा अलग-अलग दायर जनहित याचिकाओं में कथित भ्रष्टाचार के आरोपों पर विचार नहीं किया है।न्यायालय इस मामले में अब 31 अक्टूबर को आगे विचार करेगा।

ओलांद के बयान से राजनीतिक भूचाल

आपको बता दें कि राफेल विमानों की खरीद को लेकर फ्रांसीसी अखबार ‘मीडियापार्ट’ में छपी फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के एक बयान ने भारत में राजनीतिक भूचाल ला दिया है। दरअसल, फ्रांसीसी मीडिया के मुताबिक ओलांद ने कथित तौर पर कहा है कि भारत सरकार ने 58,000 करोड़ रुपए के राफेल विमान सौदे में फ्रांस की विमान बनाने वाली कंपनी दसाल्ट एविएशन के ऑफसेट साझेदार के तौर पर अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस का नाम प्रस्तावित किया था और ऐसे में फ्रांस के पास कोई विकल्प नहीं था।

ओलांद के सनसनीखेज बयान से इस विवाद में एक नया मोड़ आ गया है, क्योंकि उनके हवाले से किया गया यह दावा मोदी सरकार के बयान से उलट है। भारत सरकार कहती रही है कि फ्रांसीसी कंपनी दसाल्ट एविएशन ने खुद अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस का चुनाव किया था। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार अब तक यही कहती रही है कि उसे आधिकारिक रुप से इस बात की जानकारी नहीं थी कि दसाल्ट एविएशन ने इस करार की ऑफसेट शर्त को पूरा करने के लिए भारतीय साझेदार के तौर पर किसे चुना है।

राफेल विमान सौदे पर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के सनसनीखेज दावे के बाद भारत में सियासी घमासान जारी है। राफेल सौदे में ‘ऑफसेट साझेदार’ के संदर्भ में फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के कथित बयान को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विपक्ष लगातार हमला बोल रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी राफेल मामले की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच की मांग कर रहे हैं। उनका आरोप है कि यह ‘स्पष्ट रूप से भ्रष्टाचार का मामला’ है।

मुश्किल में फंसी मोदी सरकार

ओलांद का बयान सामने आने के बाद से ही विपक्षी पार्टियों ने राफेल करार को लेकर मोदी सरकार पर हमले तेज कर दिए हैं। वे करार में भारी अनियमितता और रिलायंस डिफेंस लिमिटेड को फायदा पहुंचाने के आरोप लगाते रहे हैं। उनका कहना है कि एयरोस्पेस क्षेत्र में रिलायंस डिफेंस लिमिटेड को कोई अनुभव नहीं है, लेकिन फिर भी सरकार ने अनुबंध उसे दे दिया। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अप्रैल 2015 को पेरिस में तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद से बातचीत के बाद 36 राफेल विमानों की खरीद का ऐलान किया था। करार पर अंतिम मुहर 23 सितंबर 2016 को लगी थी।

कांग्रेस का आरोप है कि सरकार इस सौदे के माध्यम से रिलायंस डिफेंस को फायदा पहुंचा रही है। रिलायंस डिफेंस ने इस सौदे की ऑफसेट जरुरतों को पूरा करने के लिए दसाल्ट एविएशन के साथ संयुक्त उपक्रम स्थापित किया है। विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया है कि रिलायंस डिफेंस 10 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से राफेल करार की घोषणा किए जाने से महज 12 दिन पहले बनाई गई। हालांकि, रिलायंस ग्रुप ने आरोपों को नकारा है। इन विमानों की आपूर्ति सितंबर 2019 से शुरू होने वाली है।

‘जनता का रिपोर्टर’ ने किया था खुलासा

गौरतलब है कि ‘जनता का रिपोर्टर’ ने राफेल सौदे को लेकर तीन भागों (पढ़िए पार्ट 1पार्ट 2 और पार्ट 3 में क्या हुआ था खुलासा) में बड़ा खुलासा किया था। जिसके बाद कांग्रेस और राहुल गांधी यह आरोप लगाते आ रहे हैं कि मोदी सरकार ने फ्रांस की कंपनी दसाल्ट से 36 राफेल लड़ाकू विमान की खरीद का जो सौदा किया है, उसका मूल्य पूर्ववर्ती यूपीए सरकार में विमानों की दर को लेकर बनी सहमति की तुलना में बहुत अधिक है। इससे सरकारी खजाने को हजारों करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।

कांग्रेस का आरोप है कि सरकार हर विमान को 1670 करोड़ रुपये से अधिक की कीमत पर खरीद रही है, जबकि संप्रग सरकार के दौरान 526 करोड़ रुपये प्रति विमान की दर से 126 राफेल विमानों की खरीद की बात चल रही थी। साथ ही पार्टी ने यह भी दावा किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सौदे को बदलवाया जिससे सरकारी उपक्रम हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) से ठेका लेकर रिलायंस डिफेंस को दिया गया।

 

 

 

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