हमें नोटबंदी की कोई जरूरत नहीं थी, यह गैरजरूरी रोमांच था: मनमोहन सिंह

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शुक्रवार (22 सितंबर) को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि मौजूदा सरकार द्वारा उठाए गए नोटबंदी के कदम की कोई जरूरत नहीं थी। यह गैरजरूरी रोमांच था। मोहाली के इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी) लीडरशिप समिट में छात्रों को संबोधित करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा, ”मुझे नहीं लगता कि आर्थिक और तकनीकी तौर पर इस रोमांच की जरूरत थी।

सिंह ने कहा कि कुछ लातिन अमेरिकी देशों को छोड़ दें तो किसी भी लोकतांत्रिक देश में नोटबंदी सफल नहीं रही है। तकनीकी और आर्थिक किसी भी नजरिए से यह सही फैसला नहीं था।

जबकि इससे पहले गिरी हुई विकास दर और आर्थिक मंदी पर जारी पूर्व रिर्पोट्स में कहा गया है कि नोटबंदी के चलते भारत में इस प्रकार की परिस्थितियों ने जन्म लिया है। नोटबंदी को मोदी सरकार का गलत फैसला बताते हुए पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था कि सरकार को इसे स्वीकार करने का साहस होना चाहिए।

जबकि इससे पहले पूर्व वित्त मंत्री ने इन्‍हीं आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि नोटबंदी के फैसले से देश को आर्थिक नुकसाना उठाना पड़ा है। पी चिदंबरम के मुताबिक आरबीआई ने कहा कि कुल 1544,000 करोड़ रुपए के 1,000 और 500 रुपए में से 16000 करोड़ रुपए के नोट वापस नहीं लौटे, जो कि लगभग 1 प्रतिशत के बराबर है। ऐसे में आरबीआई को शर्म करनी चाहिए कि उसने नोटबंदी का समर्थन किया।

जबकि ओडिशा के एक कार्यक्रम में बोलते हुए, अमित शाह ने कहा था , नोटबंदी का आर्थिक विकास पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा हैं। अमित शाह ने कहा था ‘नोटबंदी के बाद कई तिमाहियां बीत चुकी हैं। अगर नोटबंदी से कोई गिरावट होनी होती तो वह नोटबंदी की घोषणा के बाद की तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर 2016) में दिखाई दे जाती।’

उन्होंने कहा था, कि आर्थिक मंदी की वजह ‘तकनीकी’ है, नोटबंदी इसका कारण नहीं है। GDP की यह गिरावट अस्थायी और तकनीकी कारणों की वजह से आई है।

आपको बताते इससे पूर्व भारत में आई आर्थिक मंदी पर चिंता व्यक्त करते हुए विश्व बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने जीडीपी के नवीनतम आंकड़ों पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी, जिसमें कहा गया था कि भारत के विकास में गिरावट “बहुत चिंताजनक” हैं। बसु ने कहा नोटबंदी के इस राजनीतिक फैसले की देश को एक भारी कीमत चुकानी होगी जिसका भुगतान देशवासियों को करना पड़ेगा।

बसु ने कहा 2003 से 2011 तक भारत में विकास दर आम तौर पर प्रति वर्ष 8 प्रतिशत से अधिक रही है। वैश्विक संकट के चलते वर्ष, 2008 में, यह संक्षेप में 6.8 प्रतिशत पर गिरी, लेकिन 8 प्रतिशत से अधिक की गिरावट विकास भारत के लिए हैरान कर देने वाली है।

 

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