गिरी हुई विकास दर और आर्थिक मंदी पर जारी पूर्व रिर्पोट्स में कहा गया है कि नोटबंदी के चलते भारत में इस प्रकार की परिस्थितियों ने जन्म लिया है। नोटबंदी को मोदी सरकार का गलत फैसला बताते हुए पूर्व वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार को इसे स्वीकार करने का साहस होना चाहिए।
जबकि भारतीय रिजर्व बैंक की और से नोटबंदी के बाद पुराने नोटों के सरकारी बैंकों में वापस आने से जुड़े आंकड़े बताए जाने के बाद पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था कि क्या नोटबंदी काले धन को सफेद करने की योजना थी?
#DeMonetisation was a wrong decision and the government should have the courage to accept it: P.Chidambaram pic.twitter.com/lelZzbpuSi
— ANI (@ANI) September 9, 2017
99% notes legally exchanged! Was demonetisation a scheme designed to convert black money into white?
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) August 30, 2017
आपको बताते इससे पूर्व भारत में आई आर्थिक मंदी पर चिंता व्यक्त करते हुए विश्व बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने जीडीपी के नवीनतम आंकड़ों पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी, जिसमें कहा गया था कि भारत के विकास में गिरावट “बहुत चिंताजनक” हैं। बसु ने कहा नोटबंदी के इस राजनीतिक फैसले की देश को एक भारी कीमत चुकानी होगी जिसका भुगतान देशवासियों को करना पड़ेगा।
ओडिशा में बोलते हुए, शाह ने कहा, नोटबंदी का आर्थिक विकास पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा हैं। अमित शाह ने कहा ‘नोटबंदी के बाद कई तिमाहियां बीत चुकी हैं। अगर नोटबंदी से कोई गिरावट होनी होती तो वह नोटबंदी की घोषणा के बाद की तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर 2016) में दिखाई दे जाती।’
उन्होंने कहा, कि आर्थिक मंदी की वजह ‘तकनीकी’ है, नोटबंदी इसका कारण नहीं है। GDP की यह गिरावट अस्थायी और तकनीकी कारणों की वजह से आई है।
जबकि इस बारें में अमेरिकी अर्थशास्त्री स्टीव एच. हांके ने कहा कि भारत में ‘नकदी पर हमले’ से जैसी उम्मीद थी, इसने अर्थव्यवस्था को मंदी के रास्ते पर धकेल दिया। अमेरिकी राज्य मैरीलैंड के बाल्टीमोर स्थित जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्री हांके ने कहा, ‘नकद रकम के खिलाफ जंग छेड़ने से मोदी ने सरकारी तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था को मंदी के रास्ते पर धकेल दिया। मोदी के नोटबंदी के फैसले के बाद मैं यही सोच रहा था कि ऐसा होगा।’