मोदी सरकार ने कथित तौर पर आलोचनात्मक रिपोर्टिंग के कारण तीन नामी अखबारों को सरकारी विज्ञापन देना बंद किया, BJP ने दी प्रतिक्रिया

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केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने कथित तौर पर देश के तीन नामी अखबारों के सरकारी विज्ञापन बंद कर दिए हैं। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, ये समूह हैं द टाइम्स ऑफ इंडिया जैसे कई बड़े प्रकाशन चलाने वाला टाइम्स ग्रुप, द टेलीग्राफ का प्रकाशक एबीपी ग्रुप और द हिंदू अखबार। आलोचक लगातार कहते रहे हैं कि साल 2014 में सत्ता संभालने के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में मीडिया की स्वतंत्रता खतरे में है। वहीं, कई पत्रकारों की यह शिकायत रही है कि आलोचनात्मक रिपोर्ट लिखने के कारण उन्हें डराया-धमकाया जाता है।

एजेंसी के मुताबिक, लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि उसने आलोचनात्मक रिपोर्टिंग के कारण द हिंदू, टाइम्स ऑफ इंडिया और एबीपी ग्रुप के द टेलीग्राफ जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के सरकारी विज्ञापन बंद कर दिए हैं। बुधवार को चौधरी ने संसद में कहा था, ‘सरकारी विज्ञापन रोकने की अलोकतांत्रिक और अहंकारी प्रवृत्ति इस सरकार का मीडिया को उसकी लाइन बदलने के लिए एक संदेश है।’

विज्ञापन बंद करने की कार्रवाई भाजपा के सत्ता में दोबारा लौटने के बाद की गई है। जिन अखबारों को विज्ञापन रोके गए हैं उनकी रीडरशिप 2.6 करोड़ से ज्यादा है। बेनेट कोलमैन कंपनी के अखबार ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ और ‘द इकॉनमिक टाइम्स’ जैसे बड़े अखबारों की रिपोर्टिंग से नाखुश होकर यह फैसला लिया गया है, ऐसा इस कंपनी के एक एक्जक्यूटिव का कहना है। टाइम्स ग्रुप के 15 प्रतिशत विज्ञापन सरकार की तरफ से ही आते हैं जो सरकारी टेंडर और लोगों के लिए सरकारी योजनाओं के विज्ञापन होते हैं।

इसके अलावा मोदी सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा से लेकर बेरोजगारी तक तमाम मुद्दों पर घेरने वाले एबीपी ग्रुप के द टेलीग्राफ अखबार के सरकारी विज्ञापनों में भी इसी तरह पिछले लगभग छह महीनों में 15 फीसदी की गिरावट आई है। एबीपी ग्रुप के दो अधिकारियों ने यह बात कही। एबीपी ग्रुप के एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर कहा, ‘जब आप सरकार के खिलाफ कुछ भी लिखते हैं, तो जाहिर है कि वे आपको किसी न किसी तरह से नुकसान पहुंचाएंगे ही।’

वहीं, एबीपी के दूसरे अधिकारी ने कहा कि सरकार से अब तक इस मामले को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई है। कंपनी घाटे के अंतर को कम करने के लिए अन्य स्रोतों को देख रही है। अधिकारी ने कहा, ‘प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखा जाना चाहिए और इन चीजों के बावजूद इसे बनाए रखा जाएगा।’ इस मामले पर सरकारी विज्ञापनों के लिए जिम्मेदार एजेंसी, आउटरीच एंड कम्युनिकेशन ब्यूरो के डायरेक्टर जनरल सत्येंद्र प्रकाश ने रॉयटर्स के ईमेल या फोन कॉल का जवाब नहीं दिया है।

द हिंदू के साथ भी कुछ ऐसा ही है। कंपनी के एक अधिकारी के मुताबिक, राफेल विमान की खरीद से जुड़ी रिपोर्ट्स प्रकाशित करने के बाद दि हिंदू अखबार को मिलने वाले सरकारी विज्ञापनों में गिरावट आई है। कंपनी के एक अधिकारी ने कहा कि फ्रांस के दसॉ से राफेल जेट की खरीद से जुड़ी रिपोर्ट्स प्रकाशित करने के बाद द हिंदू अखबार को मिलने वाले सरकारी विज्ञापनों में भारी कमी देखी गई है। इन रिपोर्ट्स में सरकार को दोषी ठहराया गया था। हालांकि, सरकार ने द हिंदू की रिपोर्ट्स में लगाए गएआरोपों को खारिज कर दिया था।

हालांकि, केंद्र में सत्ताधारी एनडीए की अगुवा बीजेपी के एक प्रवक्ता ने कहा कि भारत में प्रेस पूरी तरह से स्वतंत्र है।भाजपा प्रवक्ता नलीन कोहली ने कहा कि भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पूरी तरह से बरकरार है। उन्होंने कहा, ‘अखबारों और टीवी चैनलों पर सत्ताधारी पार्टी की अच्छी-खासी आलोचना की जाती है। ये अलोचनाएं ही अभिव्यक्ति की आजादी की गवाह हैं। उन्होंने कहा कि यह हास्यास्पद है कि भाजपा प्रेस की आजादी को दबा रही है।

गौरतलब है कि भारत 2019 विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 180 में से 140 वें स्थान पर रहा, जो अफगानिस्तान, म्यांमार और फिलीपींस जैसे देशों से कम है। यह 2002 में सूचकांक शुरू होने पर सर्वेक्षण किए गए 139 देशों में से 80 वें स्थान पर था।

 

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