ज्ञानपीठ और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हिंदी की प्रख्यात लेखिका कृष्णा सोबती का निधन

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ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिंदी की प्रख्यात लेखिका कृष्णा सोबती का शुक्रवार (25 जनवरी) को नई दिल्ली के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वह 94 वर्ष की थीं। वह पिछले कुछ समय से बीमार थीं। हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि एवं संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी ने बताया कि सोबती का शुक्रवार सुबह साढ़े आठ एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वह काफी दिनों से बीमार चल रही थीं।

(फोटो साभार: ranjana-bisht.blogspot.in)

पाकिस्तान के पंजाब के गुजरात में 18 फरवरी 1925 को जन्मी श्रीमती सोबती को 1980 में उनके उपन्यास ‘जिंदगीनामा’ के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ मिल चुका है। वह साहित्य अकादमी की फेलो भी रह चुकी हैं। उन्हें के के बिरला फाउंडेशन का ‘व्यास सम्मान’ भी मिला था, हालांकि उन्होंने उसे स्वीकार नही किया। सोबती ने दिल्ली अकादमी का ‘शलाका सम्मान’ भी लौटा दिया था।

कृष्णा सोबती को साल 2017 का साहित्य के क्षेत्र में दिया जाने वाला देश का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। बीते साल उन्हें जब ज्ञानपीठ सम्मान दिया जा रहा था तब भी वे आयोजन की जगह अस्पताल में थीं। वहीं, 2015 में देश में असहिष्णुता के माहौल से नाराज होकर सोबती ने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस लौटा दिया था

अशोक वाजपेयी ने वार्ता से कहा, ‘‘इतनी उम्र में अस्वस्थ होने के कारण उन्हें बीच-बीच मे अस्पताल में भर्ती कराया जाता था और वह कई बार स्वस्थ होकर घर आ जाती थीं। उनका निधन हिंदी साहित्य के लिए अपूरणीय क्षति है।’’ उनका अंतिम संस्कार शुक्रवार शाम चार बजे निगम बोध घाट के विद्युत शवदाह गृह में किया जाएगा।

वह पचास के दशक में ‘बादलों के घेरे’ कहानी और उपन्यास ‘मित्रों मरजानी’ से चर्चा में आई थीं। उन्होंने कई बेहतरीन कहानियों और उपन्यासों की रचना की। डार से बिछुड़ी, मित्रों मरजानी, यारों के यार, तिन पहाड़, बादलों के घेरे, सूरजमुखी अंधेरे के, जिंदगीनामा, ऐ लड़की, दिलो-दानिश, हम हशमत, समय सगरम आदि उनकी प्रमुख कृतियां हैं।

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