गुजरात: किताब में ईसा मसीह को ‘हैवान’ बताए जाने पर राज्यपाल ने जताया दुख

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नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल पी बी आचार्य ने गुजरात बोर्ड द्वारा प्रकाशित नौवीं कक्षा की हिंदी भाषा की पाठ्यपुस्तक में जीसस क्राइस्ट के नाम के आगे ‘हैवान’ शब्द के इस्तेमाल पर हैरानी और दुख प्रकट किया है। गुजरात के राज्यपाल ओ पी कोहली को लिखे पत्र में राज्यपाल आचार्य ने कहा कि गैरजिम्मेदाराना कर्मचारियों की ऐसी गलत कार्रवाई न केवल भावनाओं को आहत करती है, बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द को भी बिगाड़ती है।राजभवन की एक विज्ञाप्ति के अनुसार आचार्य ने पत्र के माध्यम से जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और सजा की मांग की। विज्ञाप्ति के मुताबिक राज्यपाल ने मामले की गंभीरता को देखते हुए गुजरात के राज्यपाल से बात भी की।राजभवन के अधिकारियों ने कहा कि कोहली ने अफसोस जताया और आचार्य को आश्वासन दिया कि गुजरात के शिक्षा मंत्री के साथ मामले को फौरन उठाएंगे और संबंधित लोगों के खिलाफ कार्रवाई कराएंगे।

बता दें कि गुजरात बोर्ड द्वारा प्रकाशित नौवीं कक्षा की हिंदी भाषा की पुस्तक के एक अध्याय में जीसस क्राइस्ट के नाम के आगे भगवान शब्द के बजाय हैवान शब्द का इस्तेमाल करके बड़ी त्रुटि की गयी है। इससे ईसाई समुदाय के बीच नाराजगी देखने को मिली।

पुस्तक के प्रकाशक गुजरात राज्य स्कूली पाठ्यपुस्तक बोर्ड (जीएसएसटीबी) ने अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध पुस्तक के ऑनलाइन संस्करण में इस त्रुटि को सुधारकर विवादास्पद शब्द को हटा दिया है। जीएसएसटीबी के कार्यकारी अध्यक्ष नितिन पेठानी ने आंतरिक जांच का आश्वासन देते हुए कहा कि यह छपाई की त्रुटि है।

पुस्तक के 16वें पन्ने पर भारतीय संस्कृति में शिक्षक-छात्र संबंधे शीर्षक वाले अध्याय में यह त्रुटि है। गुजरात बोर्ड की हिंदी की किताब के 16वें पन्ने पर ‘भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य संबंध’ के मुताबिक, ‘इस संबंध में हैवान ईसा का एक कथन सदा स्मरणीय है।’ जिस कथन की बात कही गई है वह है, ‘मेरे अनुयायी मुझसे महान हैं और मैं उनके जूतों में रहने के लायक भी नहीं।’

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, गुजरात कैथलिक चर्च के प्रवक्ता फादर विनायक जाधव ने कहा कि इस गलती की ओर GSSTB के अध्यक्ष को एक महीने पहले ही जानकारी दी जा चुकी है। फादर ने कहा कि शुरुआती जांच में ऐसा लगता है कि ‘हैवान’ शब्द गलत टाइपिंग की वजह से रह गया होगा और हम उसे फौरन सुधारे जाने की मांग कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि लेकिन जब इस बाबत हमें बोर्ड की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला तो हम ममाला यूनाइटेड क्रिश्चन फोरम के पास लेकर गए और राज्य शिक्षा मंत्री से इसपर अपना रुख स्पष्ट कराए जाने की मांग का फैसला किया। साथ ही उन्होंने कहा कि यह मामला किसी धर्म से जुड़ी बात नहीं है, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता का सवाल है।

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