“मैं तुम्हारे साथ हूं वसीम”: टीम इंडिया के अपने पूर्व साथी वसीम जाफर के समर्थन में आए अनिल कुंबले

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उत्तराखंड क्रिकेट संघ से मतभेदों के कारण कोच के पद से इस्तीफा देने वाले भारत के पूर्व सलामी बल्लेबाज वसीम जाफर ने बुधवार को प्रदेश संघ के इन आरोपों को खारिज किया कि उन्होंने टीम में मजहब के आधार पर चयन की कोशिश की। उनके बयान के बाद अब पूर्व भारतीय क्रिकेटर अनिल कुंबले अपने पूर्व साथी वसीम जाफर के समर्थन में आ गए हैं।

वसीम जाफर

गौरतलब है कि, टीम इंडिया के पूर्व खिलाड़ी वसीम जाफर ने मंगलवार को चयन में दखल और चयनकर्ताओं तथा संघ के सचिव के पक्षपातपूर्ण रवैए को लेकर उत्तराखंड क्रिकेट टीम के कोच पद से इस्तीफा दे दिया था। वसीम जाफर पर मजहब के आधार पर टीम में खिलाड़ियों को रखने का आरोप लगाया गया था जिसपर वसीम जाफर ने प्रतिक्रिया भी दी थी। अब इस पूरे मामले में वसीम जाफर को दिग्गज क्रिकेटर अनिल कुंबले, डोडा गणेश, मनोज तिवारी का साथ मिला है।

अनिल कुंबले ने वसीम जाफर के पोस्ट पर कमेंट कर लिखा, ‘मैं तुम्हारे साथ हूं वसीम। तुमनें सही काम किया। दुर्भाग्य से वह खिलाड़ी अब तुम्हारी मेंटरशिप को मिस करेंगे।’

वहीं, डोडा गणेश ने अपने ट्वीट में लिखा, “डियर वसीम जाफ़र, आप खेल के महान राजदूत रहे हैं और गर्व के साथ भारत का प्रतिनिधित्व किया है। विश्वास नहीं हो रहा कि यह आपके जैसे किसी व्यक्ति के साथ ऐसा हो सकता है। आप एक क्रिकेटर और मानव के भाई हैं, भाई क्रिकेट की दुनिया आपको और आपकी ईमानदारी को जानती है।”

वहीं, मनोज तिवारी ने अपने ट्वीट में लिखा, “मैं उत्तराखंड के मुख्यमंत्री (भाजपा) श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से अनुरोध करूंगा कि वे इस मुद्दे पर तुरंत ध्यान दें, जिसमें हमारे राष्ट्रीय नायक वसीम भाई को क्रिकेट एसोसिएशन में साम्प्रदायिक करार दिया गया था। “nd 2 आवश्यक कार्रवाई करें। समय पर एक उदाहरण सेट करें। वसीम जाफर

बता दें कि, सांप्रदायिकता के आरोपों पर वसीम जाफर ने ट्वीट कर सफाई दी थी। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, “मैंने जय बिस्ट की कप्तानी की सिफारिश की थी। इकबाल की नहीं लेकिन सीएयू के अधिकारियों ने इकबाल का समर्थन किया।”

वसीम जाफर ने अपने ट्वीट में आगे लिखा, “मैंने मौलवियों को आमंत्रित नहीं किया था। मैंने गैर-योग्य खिलाड़ियों के चयन के चलते इस्तीफा दिया है। हमारी टीम में कुछ खिलाड़ी सिख समुदाय से हैं और वह ‘रानी माता साचे दरबार की जय’ कहते थे। मैंने बस इसपर सुझाव दिया था कि हमें ‘गो उत्तराखंड’ या ‘कम ऑन उत्तराखंड’ कहना चाहिए।”

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