नई शिक्षा नीति के मुद्दे पर ईसाई सांसद केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री (एचआरडी मिनिस्टर) स्मृति ईरानी के खिलाफ लामबंद होते दिख रहे हैं। भारत में क्रिश्चियन मजहब के सबसे बड़े धर्मगुरु कार्डिनल क्लीमस ने गुरुवार को ईसाई सांसदों की बैठक बुलाई। मीटिंग में यह फैसला लिया गया कि देश भर के क्रिश्चियन एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस से कहा जाएगा कि वे केंद्र सरकार को नई शिक्षा नीति को लेकर सुझाव भेजें। मीटिंग में पहुंचे सांसदों ने ईरानी पर शिक्षा के भगवाकरण का आरोप लगाया।
35 हजार इंस्टीट्यूशंस को भेजेंगे ड्राफ्ट
कार्डिनल क्लीमस ने केंद्र सरकार पर नई शिक्षा नीति बनाने के नाम पर शिक्षा का भगवाकरण करने का आरोप लगाते हुए सांसदों से एक ड्राफ़्ट बनाने को कहा, जिसे देश में मौजूद 35 हज़ार क्रिश्चियन एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस को भेजा जाएगा। ये संस्थाएं खुद तो इस मसौदे को शिक्षा मंत्री को फ़ॉरवर्ड करेंगी ही, साथ ही अपनी फ़ैकल्टी और एक्स-स्टूडेंट्स को भी ऐसा करने को कहेंगी। यह काम 13 अगस्त तक पूरा कर दिया जाएगा। जाहिर है अगर आधी एलुमिनी स्टूडेंट्स भी मेल लिखें तो इसकी संख्या करोड़ से ऊपर पहुंच जाएगी।
कौन से एमपी थे मौजूद?
कार्डिनल क्लीमस के साथ मीटिंग में मौजूद सांसदों में प्रमुख थे- राज्यसभा के उप सभापति पी जे कुरियन, कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री ऑस्कर फ़र्नांडीस, सांसद विंसेंट पाला, एआईएडीएमके के रवि बर्नार्ड, लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष पूर्णो संगमा, नगालैंड के पूर्व मुख्यमंत्री नेफियू रिओ, राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस संसदीय दल के नेता डेरेक ओ’ब्रायन और बीजू जनता दल के सांसद व भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कैप्टन दिलीप टिर्की। कार्डिनल के साथ मीटिंग में ही टीएमसी और एआईएडीएमके के नेताओं ने उन्हें पूर्ण समर्थन देने की घोषणा कर दी जबकि ऑस्कर ने कांग्रेस आला कमान से और टिर्की ने बीजेडी लीडर्स से सलाह लेकर ही जवाब देने को कहा।
सांसदों ने क्या कहा?
इन सांसदों का कहना था कि नई शिक्षा नीति के बारे में एचआरडी मिनिस्टर स्मृति ईरानी सबसे सलाह ले रही है, लेकिन उन्होंने माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशंस में से किसी को नहीं बुलाया। वे साफ़ तौर पर कम उम्र के छात्रों में भगवा शिक्षा भरना चाहती है। यह पूछने पर कि भगवा शिक्षा से उनका मतलब क्या है? उन्हें किस बात का डर है, एक सांसद ने कहा- आरएसएस लगातार प्रचार कर रहा है कि वह 2020 तक भारत को हिंदू राष्ट्र बना देगा और इस सरकार के ज़्यादातर सदस्य या तो खुद आरएसएस से हैं या उसके दबाव और प्रभाव में हैं। उनका यह भी आरोप था कि जल्द ही सरकार माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशन की परिभाषा बदलने जा रही है। अब केवल वे ही इंस्टीट्यूट माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशन कहलाएंगे जिनमें आधे से ज्यादा स्टूडेंट्स अल्पसंख्यक समुदाय से हों। इस परिभाषा पर तो 95-99 फ़ीसदी इंस्टीट्यूट खरे नहीं उतरेंगे।
न बदले सिलेबस
सांसदों का कहना था- हम शिक्षा नीति या सिलेबस में कोई बदलाव नहीं चाहते। इतने सालों से मौजूदा शिक्षा नीति सफलतापूर्वक चली। सफल वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफ़ेसर पैदा किए। इसमें बदलाव की आड़ में यह सरकार शिक्षा का भगवाकरण करना चाहती है।