भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने गुरुवार (8 अक्टूबर) को दिल्ली के निज़ामुद्दीन में तब्लीगी जमात की बैठक के मद्देनज़र कोरोना वायरस महामारी (COVID-19) को लेकर सांप्रदायिक रिपोर्टिंग का आरोप लगाते हुए भारतीय मीडिया के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की खिंचाई की।
लाइव लॉ के अनुसार, सीजेआई बोबडे ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, “हम मिस्टर मेहता को बताना चाह रहे हैं, आप अदालत से इस तरह व्यवहार नहीं कर सकते जिस तरह से आप इस मामले में व्यवहार कर रहे हैं। एक जूनियर अधिकारी द्वारा हलफनामा दायर किया है। हम इसे बहुत ही बुरा पाते हैं और खराब रिपोर्टिंग के बारे में कुछ नहीं बताया गया है। ये कैसे कह सकते हैं कि कोई घटना नहीं है?”
मेहता ने अदालत से कहा कि वह मामले में एक नया हलफनामा दायर करेंगे। जिसपर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि विभाग के सचिव को रिकॉर्ड पर हलफनामा दाखिल करना होगा और उन्हें बताना होगा कि वह इन घटनाओं के बारे में क्या कहते हैं। उन्होंने कहा, “हम उन सभी कृत्यों को भी चाहते हैं जिनके तहत आपने अतीत में समान शक्तियों का प्रयोग किया है।”
#CJI to SG Tushar Mehta: We must tell you Mr. Mehta, you cannot treat the Court the way you are treating it in this case. You have filed an affidavit by a Junior Officer. We find it extremely evasive and mentions nothing about bad reporting. How can you say theres no incident?
— Live Law (@LiveLawIndia) October 8, 2020
दरअसल, जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दिल्ली के निज़ामुद्दीन में तब्लीगी जमात की बैठक के सांप्रदायिकरण करने के लिए मीडिया के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। दलीलों में कहा गया है कि मीडिया के कुछ वर्ग “सांप्रदायिक सुर्खियों” और “कट्टर बयानों” का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि पूरे देश में जानबूझकर कोरोना वायरस फैलाने के लिए पूरे मुस्लिम समुदाय को दोषी ठहराया जा सके, जिससे मुसलमानों के जीवन को खतरा है।
गौरतलब है कि, तब्लीगी जमात के निजामुद्दीन मरकज में इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए 29 विदेशी नागरिकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। प्रो-सरकारी भारतीय टीवी चैनलों ने भारत में कोरोनो वायरस के प्रसार के लिए उन्हें दोषी ठहराते हुए उनके खिलाफ अभियान भी चलाया था।