जम्मू कश्मीर के शोपियां में पिछले दिनों हुई गोलीबारी की घटना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (12 फरवरी) को मेजर आदित्य कुमार के खिलाफ कार्रवाई पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत ने मेजर आदित्य के खिलाफ दर्ज FIR पर अंतरिम रोक लगाते हुए केंद्र और जम्मू-कश्मीर सरकार से नोटिस जारी करते हुए 2 हफ्तों में जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ निर्देश दिया है कि अगली सुनवाई तक उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।
file photoबता दें कि जम्मू-कश्मीर पुलिस ने शोपियां फायरिंग मामले में 10 गढ़वाल राइफल्स के मेजर आदित्य कुमार के खिलाफ केस दर्ज किया था। मेजर आदित्य के पिता लेफ्टिनेंट कर्नल करमवीर सिंह (रिटायर्ड) ने सेना के खिलाफ FIR को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। पिता की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया है।
लेफ्टिनेंट कर्नल करमवीर सिंह ने दाखिल अपनी याचिका में कहा है कि उनके मेजर बेटे का इस घटना की प्राथमिकी में ‘‘गलत तरीके से और मनमाने ढंग’’ से नाम दर्ज किया गया। यह घटना अफस्पा के तहत इलाके में सैन्य ड्यूटी पर तैनात सेना के एक काफिले से जुड़ी है, जिस पर अनियंत्रित भीड़ ने पथराव किया जिससे सैन्य वाहनों को नुकसान पहुंचा।
क्या है पूरा मामला?
बता दें कि 27 जनवरी को शोपियां के गनोवपुरा गांव में पथराव कर रही भीड़ पर सैन्य कर्मियों की गोलीबारी में दो नागरिक मारे गए थे, जिससे मुख्यमंत्री ने इस घटना की जांच का निर्देश दिया था। मेजर कुमार समेत 10 गढ़वाल राइफल्स के जवानों के खिलाफ रणबीर दंड संहिता की धारा 302 और 307 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है।
याचिकाकर्ता ने सैनिकों के अधिकारों की रक्षा करने और पर्याप्त मुआवजे का दिशा निर्देश देने के लिए आदेश देने की मांग की ताकि अपनी ड्यूटी पर कार्रवाई करने के लिए किसी भी सैन्यकर्मी को आपराधिक कार्यवाही शुरू करके उत्पीड़ित ना किया जा सकें। साथ ही उन्होंने सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाली आतंकवादी गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की भी मांग की।
करमवीर सिंह ने अपनी याचिका में कहा कि उनके बेटे का इरादा सेना के जवानों और संपत्ति को बचाना था तथा ‘‘आतंकवादी गतिविधि में शामिल हिंसक भीड़ तथा आतंकवादियों को सुरक्षित भगाने के लिए ही’’ आग भड़काई गई।याचिका में कहा गया है कि अनियंत्रित भीड़ को सेना के काम में बाधा ना डालने, सरकारी संपति को नुकसान ना पहुंचाने और वहां से जाने के लिए कहा गया लेकिन जब स्थिति काबू से बाहर हो गई तो भीड़ को तितर बितर करने के लिए चेतावनी दी गई।
इसमें कहा गया है कि ‘‘अवैध रूप से एकत्रित हुए लोग’’ उग्र हो गए और उन्होंने एक जूनियर कमिशंड अधिकारी को पकड़ लिया। उग्र भीड़ अधिकारी की पीट पीटकर हत्या करने वाली थी तभी उन्हें खदेड़ने तथा सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करने के लिए चेतावनी के रूप में गोलियां चलाई गई।
सिंह ने शीर्ष न्यायालय को राज्य की स्थिति के बारे में बताने के लिए पिछले साल डीएसपी मोहम्म्द अयूब पंडित की उग्र भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हुई हत्या की घटना का भी हवाला दिया। साथ ही उन्होंने न्यायालय को यह भी बताया कि कश्मीर में उग्र भीड़ को नियंत्रित करने के लिए सैन्य अधिकारी किन स्थितियों में काम करते हैं।
याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता असल में अत्यधिक प्रतिकूल स्थिति के मद्देनजर इस न्यायालय के समक्ष सीधे तौर पर प्राथमिकी रद्द करने की याचिका पेश करने के लिए विवश है। इसमें कहा गय है कि जिस तरीके से राजनीतिक नेतृत्व और प्रशासन इस प्राथमिकी को दिखा रहा है वह राज्य में अत्यधिक द्वेषपूर्ण माहौल को दर्शाता है।