भारत के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनीत किए जाने के बाद वह सबके निशाने पर आ गए है। भाजपा के पूर्व नेताओं समेत कई विपक्षी पार्टियां और नेता रंजन गोगोई को राजसभा के लिए नामित करने पर सवाल उठा रहे है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज भी खुलकर सामने आ गए है। इस बीच, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने भी भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर निशाना साधा।
जस्टिस काटजू ने मंगलवार (17 मार्च) की रात को अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा, “मैं 20 साल के लिए वकील और दूसरे 20 के लिए जज रहा हूं। मैंने कई अच्छे जजों और कई बुरे जजों को जाना। लेकिन मैं भारतीय न्यायपालिका में किसी भी न्यायाधीश को इस यौन विकृत रंजन गोगोई के जितना बेशर्म और अपमानजनक नहीं जानता। शायद ही कोई दोष है जो इस आदमी में नहीं था।”
जस्टिस काटजू का यह ट्वीट अब सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है, उनके इस ट्वीट पर यूजर्स भी जमकर अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। ख़बर लिखे जाने तक उनके इस ट्वीट को 5 हजार से अधिक रीट्वीट और 16 हजार से ज्यादा लोग लाइक्स कर चुके है।
I have been a lawyer for 20 yrs and a judge for another 20. I hv known many good judges & many bad judges. But I have never known any judge in the Indian judiciary as shameless & disgraceful as this sexual pervert Ranjan Gogoi. There was hardly any vice which was not in this man
— Markandey Katju (@mkatju) March 17, 2020
वहीं, गोगोई ने मंगलवार को इस बारे में मीडिया के सामने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। समाचार एजेंसी ANI के मुताबिक उन्होंने कहा कि, “मैं शायद कल दिल्ली जाऊंगा। पहले मुझे शपथ लेने दीजिए फिर मैं विस्तार से मीडिया से बात करूंगा कि मैंने यह क्यों स्वीकार किया और मैं राज्यसभा क्यों जा रहा हूं।” बता दें कि, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोमवार को भारत के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई का नाम राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है।
उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसफ सहित पूर्व न्यायाधीशों ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के राज्यसभा में मनोनयन की कड़ी आलोचना की और कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद पद लेना न्यायपालिका की स्वतंता को ‘‘कमतर’’ करता है। जोसफ ने गोगोई और दो अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों जे. चेलमेश्वर और मदन बी. लोकुर (अब सभी सेवानिवृत्त) के साथ 12 जनवरी 2018 को संवाददाता सम्मेलन करके तत्कालीन सीजेआई के तहत उच्चतम न्यायालय की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए थे।
जोसफ ने कहा कि गोगोई ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता के ‘‘सिद्धांतों से समझौता’’ किया है। उन्होंने हैरानी जताई और कहा कि गोगोई द्वारा इस मनोनयन को स्वीकार किए जाने ने न्यायापालिका में आम आदमी के विश्वास को हिला कर रख दिया है। पत्रकारों ने जब जोसफ से इस बारे में प्रतिक्रिया मांगी तो उन्होंने आरोप लगाया कि गोगोई ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता व निष्पक्षता के ‘पवित्र सिद्धांतों से समझौता’ किया। पूर्व न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मेरे मुताबिक, राज्यसभा के सदस्य के तौर पर मनोनयन को पूर्व प्रधान न्यायाधीश द्वारा स्वीकार किये जाने ने निश्चित रूप से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आम आदमी के भरोसे को झकझोर दिया है।’’
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका भारत के संविधान के मूल आधार में से एक है। जोसफ ने इस संवाददाता सम्मेलन के संदर्भ में कहा, ‘‘मैं हैरान हूं कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिये कभी ऐसा दृढ़ साहस दिखाने वाले न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने कैसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के पवित्र सिद्धांत से समझौता किया है।’’
दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए पी शाह और उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आर एस सोढ़ी ने भी सरकार द्वारा गोगोई के नामांकन पर तीखी प्रतिक्रिया जताई। न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सोढ़ी ने कहा कि न्यायाधीश को कभी भी सेवानिवृत्त नहीं होना चाहिए या सेवानिवृत्ति के बाद कभी भी पद नहीं लेना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘मेरा हमेशा विचार रहा है कि न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद कभी भी नौकरी स्वीकार नहीं करनी चाहिए। न्यायाधीशों को इतना मजबूत होना चाहिए कि अपनी स्वतंत्रता को बचाए रखें ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता कमतर नहीं हो।’’ न्यायमूर्ति सोढ़ी ने कहा, ‘‘समाधान आपकी अपनी ईमानदारी है। न्यायाधीश को कभी सेवानिवृत्त नहीं होना चाहिए। सेवानिवृत्ति के बाद लाभ स्वीकार करने का सवाल ही नहीं है।’’
दरअसल, राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने सोमवार (16 मार्च) को पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई का नाम राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है। रंजन गोगोई 17 नवंबर 2019 को उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। उनके सेवानिवृत्त होने से कुछ दिनों पहले इन्हीं की अध्यक्षता में बनी पीठ ने अयोध्या मामले में फैसला सुनाया था।रंजन गोगोई की अगुआई वाली बेंच ने ही राम मंदिर मामले में फैसला सुनाया था। उन्होंने इस मामले में लगातार 40 दिनों तक सुनवाई कर केस का निपटारा किया था। न्यायमूर्ति गोगोई देश के 46वें प्रधान न्यायाधीश रहे। उन्होंने देश के प्रधान न्यायाधीश का पद तीन अक्टूबर 2018 से 17 नंवबर 2019 तक संभाला। (इंपुट: भाषा के साथ)