नए मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने रविवार (2 दिसंबर) को अपना पदभार ग्रहण कर लिया। वह निवर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त ओ. पी. रावत का स्थान लिए हैं। आपको बता दें कि निवर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत 1 दिसंबर को अपने पद से रिटायर हो गए और उनकी जगह सुनील अरोड़ा को नए मुख्य चुनाव आयुक्त का पदभार संभाल लिए हैं। इस बीच रावत ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले पर सवाल उठाया है।
समाचार एजेंसी ANI से बातचीत के दौरान ओपी रावत कहा कि नोटबंदी का चुनावों के दौरान कालेधन के इस्तेमाल पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। उन्होंने कहा कि नोटबंदी के बाद अनुमान लगाया जा रहा था कि चुनावों में कालेधन का इस्तेमाल बंद हो जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला। उन्होंने कहा कि पिछले चुनावों की तुलना में इस बार अधिक कालाधन बरामद हुआ है। पूर्व चुनाव आयुक्त ने चुनावों में कालेधन के उपयोग पर चिंता जाहिर की है।
ANI के मुताबिक पूर्व CEC ओपी रावत ने कहा, ‘नोटबंदी के बाद यह कहा गया था कि चुनाव के दौरान पैसे का दुरुपयोग कम हो जाएगा। लेकिन बरामदगी के आंकड़ों के आधार पर यह साबित नहीं हो सका। पिछले चुनावों के मुकाबले उन्हीं राज्य में अधिक कालेधन की बरामदगी हुई है।’
उन्होंने आगे कहा कि ऐसा लगता है कि राजनीतिक वर्ग और उनके फाइनेंसरों को पैसे की कोई कमी नहीं है। इस तरीके से उपयोग किया जाने वाला पैसा आम तौर पर कालाधन होता है। जहां तक चुनाव में कालेधन का इस्तेमाल किया जाता है, वहां कोई जांच नहीं है।
Former Chief Election Commissioner OP Rawat: It seems political class and their financiers have no dearth of money. Money used in this manner, is generally black money. As far as black money used in election is concerned, there was no check on it. https://t.co/l3zrUYW265
— ANI (@ANI) December 3, 2018
आपको बता दें कि 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को प्रचलन से बाहर करने की घोषणा की थी। उस वक्त बाजार में चल रही कुल करेंसी का 86 प्रतिशत हिस्सा यही नोट थे। जानकारों ने तभी नोटबंदी के फैसले के कारण अर्थव्यवस्था की हालत बुरी होने, बेरोजगारी बढ़ने और सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी कम होने की आशंका जताई थी और नोटबंदी के बाद जितने भी रिपोर्ट आए उसमें यह साबित भी हुआ।
ओपी रावत ने पहले अभी हाल ही में देश के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविंद सुब्रमण्यन ने भी पहली बार केंद्र की मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए नोटबंदी को देश के लिए जबरदस्त मौद्रिक झटका करार दिया था, जिससे देश की विकास दर पटरी से उतर गई।
अपनी किताब के एक चैप्टर ‘द टू पज़ल्स ऑफ डिमोनेटाइजेशन- पॉलिटिकल एंड इकॉनोमिक’ में उन्होंने लिखा है, नोटबंदी एक बड़ा, सख्त और मौद्रिक झटका था, इसके बाद बाजार से 86 फीसदी मुद्रा हटा ली गई थी। इस फैसले की वजह से जीडीपी प्रभावित हुई थी। ग्रोथ पहले भी कई बार नीचे गिरी है, लेकिन नोटबंदी के बाद यह एक दम से नीचे आ गई। जब नोटबंदी लागू की गई थी तब अरविंद सुब्रमण्यन भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार थे।
सरकार के दावों की खुली पोल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाइव टेलीकास्ट में अपने संदेश में कहा था कि नोटबंदी लागू करने से काले धन और नकली नोटों पर रोक लगाई जा सकेगी। लेकिन आरबीआई की रिपोर्ट ने सरकार के दावों पोल खोलकर रख दी है। आरबीआई के अनुसार अब तक कुल 15 लाख 31 हजार करोड़ रुपए के पुराने नोट वापस आ गए हैं। जबकि नोटबंदी से पहले कुल 15 लाख 41 हजार करोड़ रुपए की मुद्रा प्रचलन में थी। इसका मतलब है कि बंद नोटों में सिर्फ 10,720 करोड़ रुपये ही बैंकों के पास वापस नहीं आए हैं।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने वित्त वर्ष 2017-18 के एनुअल रिपोर्ट में कहा है कि 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी लागू होने के बाद 1000 और 500 रुपए के पुराने नोट तकरीबन वापस आ गए हैं। आरबीआई के मुताबिक नोटबंदी लागू होने के बाद बंद किए गए 500 और 1,000 रुपये के नोटों का 99.3 प्रतिशत बैंको के पास वापस आ गया है। इसका तात्पर्य है कि बंद नोटों का एक काफी छोटा हिस्सा ही प्रणाली में वापस नहीं आया। देश में इससे पहले 16 जनवरी 1978 को जनता पार्टी की गठबंधन सरकार ने भी इन्हीं कारणों से 1000, 5000 और 10,000 रुपये के नोटों का विमुद्रीकरण किया था।