उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गुरुवार (12 जुलाई) को अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि मंदिरों के पुजारी दूसरी जाति के लोगों को मंदिर में पूजा-पाठ करने से मना नहीं कर सकते। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि तथाकथित ऊंची जाति के पुजारी और पंडित अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को पूजा करने से नहीं रोक सकते। अदालत ने यह भी साफ किया कि मंदिर का पुजारी बनने के लिए किसी खास जाति या तबके से ताल्लुक रखना जरूरी नही है।
प्रतीकात्मक तस्वीरसमाचार एजेंसी PTI के मुताबिक हाई कोर्ट ने कहा है कि योग्यता पूरी करने वाला किसी भी जाति का व्यक्ति मंदिर का पुजारी बन सकता है और मंदिर में नियुक्त ‘ऊंची’ जाति का कोई पुजारी अनुसूचित जाति या जनजाति के किसी भक्त को पूजा करने से रोक नहीं सकता है। न्यायमूर्ति राजीव शर्मा की अदालत ने ये आदेश अनुसूचित जाति और जनजातियों के व्यक्तियों के मंदिरों में जाने और धार्मिक गतिविधियों के अधिकारों से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 18 जुलाई की तारीख नियत करते हुए गढ़वाल आयुक्त को व्यक्तिगत रूप से सुनवाई के दौरान अदालत में मौजूद रहने के भी निर्देश दिए। याचिका में कहा गया है कि हरिद्वार में ‘ऊंची’ जातिवाले पुजारी ‘निचली’ जातिवाले भक्तों से भेदभाव करते हैं और उनकी तरफ से धार्मिक गतिविधियां करने से मना करते हैं।
अदालत ने ‘ऊंची’ जाति वाले पुजारियों से सभी मंदिरों में ‘निचली’ जातियों के सदस्यों की तरफ से पूजा समारोह कराने से इनकार न करने के निर्देश दिए। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पूरे प्रदेश में किसी भी जाति से संबंधित सभी व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के मंदिर में जाने की अनुमति है और सही तरीके से प्रशिक्षित और योग्य किसी भी जाति का व्यक्ति मंदिरों में पुजारी हो सकता है।