सु्प्रीम कोर्ट द्वारा एक बार में तीन तलाक को लेकर ऐतिहासिक निर्णय दिये जाने के मद्देनजर उत्तर प्रदेश के बरेलवी मुसलमानों की आस्था के सबसे बड़े केंद्र दरगाह आला हजरत ने अपने मसलक के मदरसों के पाठ्यक्रम में तलाक का विषय शामिल करने का फैसला किया है।
न्यूज एजेंसी भाषा के मुताबिक, दरगाह आला हजरत के दारुल इफ्ता मंजरे-ए-इस्लाम के अध्यक्ष मुफ्ती सैयद कफील हाशमी ने मंगलवार(29 अगस्त) को बताया कि तलाक को लेकर शरीयत में कई तरह की शर्तें हैं, लेकिन तलाक के ज्यादातर मामलों में इनकी अनदेखी की जाती है। लोगों में तलाक के बारे में सही जानकारी ना होना भी गड़बड़ी की बड़ी वजह है।
उन्होंने कहा कि अब मदरसों के छात्रों को तलाक का सही तरीका बताया जाएगा, जो कुरान और हदीस के हिसाब से होगा। दरगाह आला हजरत की तरफ से देशभर के बरेलवी मदरसों के लिए जल्द ही इस सिलसिले में आदेश जारी किया जाएगा।
भाषा के अनुसार, हाशमी ने बताया कि मदरसों में तलाक का सही तरीका जानने के बाद छात्र अपने आसपास के इलाकों में तलाक को लेकर परामर्श भी देंगे। मदरसों में होने वाली पैरेंट्स-टीचर मीटिंग पीटीएम में भी तलाक का सुन्नत तरीका बताया जाएगा।
उन्होंने बताया कि दरगाह आला हजरत ने दुनियाभर के उलमा का उर्स और जलसों की तकरीरों में भी शरीयत की रोशनी में तलाक के सही तरीकों की जानकारी देने का आह्वान किया है। हाशमी ने बताया कि दरगाह आला हजरत द्वारा तलाक के सुन्नत तरीकों की जानकारी के लिए हेल्पलाइन नंबर भी जारी किए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को किया खत्म
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 22 अगस्त को बहुमत से फैसला सुनाते हुए मुस्लिम समुदाय में प्रचलित एक बार में तीन तलाक कहकर पत्नी को तलाक देने की प्रथा अवैध, गैर कानूनी और असंवैधानिक करार देते हुए खत्म कर दिया। न्यायालय ने कहा कि तीन तलाक की यह प्रथा कुरान के मूल सिद्धांत के खिलाफ है। साथ ही शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से इस संबंध में छह महीने के अंदर कानून बनाने का आदेश दिया था।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे. एस. खेहर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने 18 माह की सुनवाई के बाद 3-2 के बहुमत से तीन तलाक को बराबरी के अधिकार वाले संविधान के अनुच्छेद 14, 15 के तहत असंवैधानिक घोषित कर दिया। तीनों जजों ने कहा कि 1937 के मुस्लिम शरीयत कानून के तहत तलाक को धारा 2 में मान्यता दी गई है और उसकी विधि बताई गई है।
संविधान के सिद्धांतों को देखते हुए तीन तलाक स्पष्ट रूप से मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ है, इसलिए इसे सिरे से रद्द किया जाता है। बहुमत के फैसले से अलग मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस अब्दुल नजीर ने अल्पमत फैसले में तीन तलाक को गलत माना, लेकिन इसे रद्द करने से इनकार दिया।
प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर ने तीन तलाक की इस प्रथा पर छह महीने की रोक लगाने की हिमायत करते हुये सरकार से कहा कि वह इस संबंध में कानून बनाए। सीजेआई ने कहा कि मुस्लिम देशों में भी तीन तलाक खत्म कर दिया गया है, ऐसे में हम क्यों पीछे रहें?