संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बेचेलेट ने बुधवार (6 मार्च) को भारत की नरेंद्र मोदी सरकार को चेताते हुए आगाह किया है कि ‘बांटने वाली नीतियों’ की वजह से आर्थिक वृद्धि को झटका लग सकता है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बेचेलेट ने कहा है कि भारत में गरीबी कम हुई है, लेकिन उन्होंने साथ ही चेतावनी दी है कि विभाजनकारी नीतियों से देश के आर्थिक विकास में रुकावट आएगी।
जेनेवा में बुधवार को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि ‘गरीबी में समग्र रूप से उल्लेखनीय कमी आई है’, लेकिन ‘असमानता एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है।’उन्होंने कहा कि ‘ऐसा प्रतीत होता है कि संकीर्ण राजनीतिक एजेंडों के कारण कमजोर लोग और अधिक हाशिए पर आ रहे हैं।’ मिशेल ने कहा, “मुझे डर है कि ये विभाजनकारी नीतियां न केवल कई लोगों को नुकसान पहुंचाएंगी, बल्कि भारत के आर्थिक विकास की कहानी को भी कमजोर करेंगी।”
समाचार एजेंसी IANS की रिपोर्ट के मुताबिक, मिशेल ने कहा, “हमें रिपोर्ट्स मिल रही हैं, जो अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुस्लिमों और ऐतिहासिक रूप से वंचित और हाशिए पर रहने वाले लोगों जैसे कि दलितों और आदिवासियों के उत्पीड़न और उन्हें निशाना बनाए जाने का संकेत देती हैं।” उप-महाद्वीप में हालिया घटनाक्रमों को लेकर उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान को “उनके कार्यालय को कश्मीर में जमीनी स्थिति की निगरानी के लिए आमंत्रित करना चाहिए”।
उन्होंने कहा कि वह जम्मू एवं कश्मीर में जारी तनाव को लेकर चिंतित हैं जहां नियंत्रण रेखा के पार गोलीबारी से जाने जा रही हैं और लोग विस्थापित हो रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैं भारत और पाकिस्तान दोनों को जमीनी स्थिति की निगरानी करने के लिए और दोनों देशों को मानवाधिकार को मुद्दों से निपटने के लिए मेरे कार्यालय को आमंत्रित करने के लिए प्रोत्साहित करती हूं।”
चिली की पूर्व राष्ट्रपति बेचेलेट को पिछले सितंबर में महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा मानवाधिकार उच्चायुक्त नियुक्त किया गया था। उन्होंने अपने भाषण में विकसित देशों सहित दुनिया भर में असमानता के प्रभाव पर जोर दिया। उन्होंने अल्पसंख्यकों को प्रभावित करने वाली असमानताओं के लिए खासतौर पर भारत और चीन का जिक्र किया, हालांकि उन्होंने इस मसले पर अमेरिका और ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देशों का नाम नहीं लिया, जहां अल्पसंख्यक असमानताओं से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
बीबीसी के मुताबिक, 2016 में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल की सालाना रिपोर्ट में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की आलोचना की थी। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ग्रीनपीस और फोर्ड फाउंडेशन का हवाला देते हुए एनजीओ और कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने और विदेशी फंड रोकने के लिए मोदी सरकार को जमकर कोसा था।