पश्चिम बंगाल में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा और टीमसी मतदाताओं को लुभाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहीं हैं। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और इस समय मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभा रही भाजपा के बीच जमकर जुबानी जंग जारी है। राजनीतिक दलों की ताकत की आजमाइश के बीच जनता के मूड को भी भांप पाना मुश्किल है। चुनाव में सत्तारूढ तृणमूल कांग्रेस और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी भले ही एक-दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहे, लेकिन इन दोनों में एक बात समान है कि कई महत्वपूर्ण विधानसभा क्षेत्रों में इन दोनों विरोधियों ने दलबदलू नेताओं को टिकट दिया है।
राज्य में दोनों दलों ने दलबदलू नेताओं को टिकट दिये है जिससे इन दलों में पुराने नेताओं और वफादारों में असंतोष है।
तृणमूल कांग्रेस ने अपनी 291 उम्मीदवारों की सूची में से इस बार 16 दलबदलू नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा है। पार्टी ने जिन्हें टिकट दिये हैं, वे या तो अन्य पार्टियों से निर्वाचित प्रतिनिधि थे या पिछले कुछ वर्षों में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए थे।
भाजपा ने इससे एक कदम और आगे बढते हुए अब तक घोषित अपने 122 उम्मीदवारों में से 22 दलबदलुओं को टिकट दिये हैं और इनमें से ज्यादातर वे नेता शामिल हैं जो तृणमूल कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए थे। इन नेताओं में शुभेन्दु अधिकारी और राजीव बनर्जी भी शामिल हैं। हुगली जिले में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि जमीनी स्तर के कार्यकर्ता उनकी उम्मीदवारी से नाराज हैं।
तृणमूल कांग्रेस ने इस बार पांच मंत्रियों समेत 28 मौजूदा विधायकों को टिकट नहीं दिया है और पार्टी को इसे लेकर उनके समर्थकों से विरोध का सामना करना पड़ा है। टिकट नहीं मिलने से नाराज तृणमूल कांग्रेस के सात विधायक पार्टी छोड़कर दूसरे दल में शामिल हो चुके हैं।
नाराजगी के बावजूद दोनों दलों ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि एक उम्मीदवार को उसकी ’जीतने की संभावना’ को ध्यान में रखते हुए टिकट दिया गया है। भाजपा की राज्य इकाई के अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा, ‘‘हमारे पास ऐसे नेता और कार्यकर्ता हैं जिन्होंने बहुत मेहनत की है। हमारी पार्टी पश्चिम बंगाल में आकार में बढ रही है, और यह आवश्यक है कि हम यथासंभव कई प्रमुख चेहरों को समायोजित करें।’’ उन्होंने कहा, ‘हालांकि अन्य दलों से हमारी पार्टी में आए सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों को टिकट नहीं मिल पायेगा, सभी को खुश करना संभव नहीं है।’
भाजपा की 59 उम्मीदवारों की पहली सूची में लगभग आठ दलबदलू हैं जिनमें अधिकारी और माकपा की पूर्व विधायक तापसी मंडल शामिल हैं। इसके अलावा 63 उम्मीदवारों की दूसरी सूची में 12 दलबदलू हैं। टिकट नहीं मिलने से नाराज भाजपा के आठ नेताओं ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन पत्र दाखिल किया है। वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद से तृणमूल कांग्रेस के 26 विधायक और दो सांसद, कांग्रेस तथा माकपा के तीन-तीन विधायक और भाकपा से एक नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं।
तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘‘दलबदलू नेताओं को चुनाव मैदान में तीन कारणों से उतारा गया है- हम पिछले चुनावों में हमारे साथ नहीं जुड़े चेहरों को चुनाव में उतारकर सत्ता विरोधी लहर से निपटना चाहते हैं, कुछ क्षेत्रों में पार्टी के पास प्रमुख चेहरे नहीं थे और हम गुटबाजी को नियंत्रित करना चाहते थे।’’
तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दोनों की ‘‘आयाराम गयाराम’’ राजनीति की आलोचना करते हुए माकपा ने कहा कि दोनों पार्टियां पश्चिम बंगाल की राजनीतिक संस्कृति को नष्ट करने पर उतारू है।
माकपा के नेता सुजान चकवर्ती ने कहा, ‘‘हमने कभी भी अन्य दलों के किसी निर्वाचित प्रतिनिधि को शामिल नहीं किया है। तृणमूल कांग्रेस ने पहले बंगाल की राजनीतिक संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया, और अब भाजपा इसे अगले स्तर पर ले जा रही है। कभी बंगाल ने इतनी बड़ी संख्या में दलबदलू नहीं देखे हैं।’’
294 सदस्यीय बंगाल विधानसभा के लिए 8 चरणों में मतदान होंगे। बंगाल में 27 मार्च से 29 अप्रैल तक वोट डाले जाएंगे। राज्य में पहले चरण के लिए 27 मार्च को 30 विधानसभा सीटों पर वोट डाले जाएंगे। इसके बाद दूसरे चरण की 30 सीटों पर 1 अप्रैल को मतदान होगा। तीसरे चरण में 31 सीटों पर 6 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे।
चौथे चरण में 44 सीटों पर 10 अप्रैल को वोटिंग होगी। पांचवें चरण की 45 सीटों पर 17 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे। छठे चरण में 43 सीटों पर 22 अप्रैल को वोटिंग होगी। बंगाल में आठवें और अंतिम फेज का चुनाव 29 अप्रैल को होगा, जहां 35 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। (इंपुट: भाषा के साथ)