नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में आरएसएस से संबद्ध एबीवीपी और वाम समर्थित आइसा के बीच जारी गतिरोध के बीच गुरुवार(2 मार्च) को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि देश में असहिष्णुता के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। उन्होंने विश्वविद्यालय परिसरों में स्वतंत्र चिंतन की वकालत करते हुए कहा कि यहां अशांति की संस्कृति बढ़ाने के बजाए तार्किक बहस होनी चाहिए।
मुखर्जी ने कहा कि अशांति की संस्कृति का प्रचार करने के बदले छात्रों और शिक्षकों को चर्चा व बहस में शामिल होना चाहिए। उन्होंने कहा कि छात्रों को अशांति और हिंसा के भंवर में फंसा देखना दुखद है। राष्ट्रपति ने कहा कि देश में ‘असहिष्णु भारतीय’ के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह राष्ट्र प्राचीन काल से ही स्वतंत्र विचार, अभिव्यक्ति और भाषण का गढ़ रहा है।
मुखर्जी ने कहा कि अभिव्यक्ति और बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार हमारे संविधान द्वारा प्रदत्त सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मौलिक अधिकारों में से एक है। साथ ही मुखर्जी ने कहा कि वैध आलोचना और असहमति के लिए हमेशा स्थान होना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि हमारी महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा राष्ट्रीय स्तर पर प्राथमिकता में होनी चाहिए। किसी भी समाज की कसौटी महिलाओं और बच्चों के प्रति उसका रुख होती है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत को इस कसौटी पर नाकाम नहीं रहना चाहिए। मुखर्जी ने कहा कि वह ऐसी किसी समाज या राज्य को सभ्य नहीं मानते, अगर उसके नागरिकों का आचरण महिलाओं के प्रति असभ्य हो। उन्होंने कहा कि जब हम किसी महिला के साथ बर्बर आचरण करते हैं तो अपनी सभ्यता की आत्मा को घायल करते हैं। न सिर्फ हमारा संविधान महिलाओं को समान अधिकार प्रदान करता है बल्कि हमारी संस्कृति और परंपरा में भी नारियों को देवी माना जाता है।
मुखर्जी ने कहा कि देश को इस तथ्य के प्रति सजग रहना चाहिए कि लोकतंत्र के लिए लगातार पोषण की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि जो लोग हिंसा फैलाते हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि बुद्ध, अशोक और अकबर इतिहास में नायकों के रूप में याद किए जाते हैं न कि हिटलर और चंगेज खान।