न्यायपालिका और सरकार के बीच खींचतान के बीच भारत के प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर ने गुरुवार को कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया ‘‘हाईजैक’’ नहीं की जा सकती और न्यायपालिका स्वतंत्र होनी चाहिए क्योंकि ‘‘निरंकुश शासन’’ के दौरान उसकी अपनी एक भूमिका होती है।
ठाकुर ने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायपालिका न्यायाधीशों के चयन में कार्यपालिका पर निर्भर नहीं रह सकती। उन्होंने कहा कि न्यायिक प्रशासन के मामलों में न्यायपालिका स्वतंत्र होनी चाहिए जिसमें अदालत के भीतर न्यायाधीशों को मामलों को सौंपना शामिल है।
जब तक न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं होगी, संविधान के तहत प्रदत्त अधिकारी ‘‘बेमतलब’’ होंगे। प्रधान न्यायाधीश ठाकुर ने यह टिप्पणी ‘स्वतंत्र न्यायपालिका का गढ़’ विषयक 37वें भीमसेन सचर स्मृति व्याख्यान के दौरान कही।
ठाकुर ने न्यायतंत्र से एकजुट होकर न्यापालिका की स्वतंत्रता को बचाए रखने के लिए एकजुट रहने के लिए कहा। ठाकुर ने कहा कि न्यायपालिका पर अंदर और बाहर से आक्रामकता का खतरा है और न्यायतंत्र को उसका एक सुर में विरोध करना चाहिए।
प्रमुख न्यायाधीश ने कहा कि न्यायपालिका के सामने बाहरी और भीतरी चुनौतियां हैं। वित्तीय मामलों की भी चुनौतियां हैं। जब हम लेकतंत्र की बात करते हैं और आजाद न्यायपालिका की बात नहीं करते तो ये ऐसा है जैसे बिना सूरज के सोलर सिस्टम।
लोकतंत्र की बात आजाद न्यायपालिका के बिना नहीं हो सकती। न्यायपालिका काम करती है क्योंकि जज काम करते हैं. जज भी इंसान हैं, उनकी भी सीमाएं हैं। जज के काम की भी आलोचना होती है।
न्यायपालिका को संस्थानिक आजादी प्राप्त है। न्यायपालिका को अपने प्रशासनिक काम की आजादी होनी चाहिए। कौन से केस कौन जज सुनेंगे ये न्यायपालिका को तय करना होगा।
आप ये नहीं कह सकते कि जजों की नियुक्ति एग्जीक्यूटिव करेंगे। कौन से मामले सुने जाए या ना सुने जाए ये न्यायपालिका तय करे न कि कोई बाहरी. जजों को उनके कार्यकाल में सुरक्षा हो। न्यायपालिका को अपने वित्तीय मामलों में आजादी होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि न्यायिक प्रशासन के मामलों में न्यायपालिका स्वतंत्र होनी चाहिए जिसमें अदालत के भीतर न्यायाधीशों को मामलों को सौंपना शामिल है, जब तक न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं होगी, संविधान के तहत प्रदत्त अधिकारी ‘बेमतलब’ होंगे।