न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच मतभेदों का सिलसिला अभी भी जारी है। प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने एक बार फिर आज उच्च न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में न्यायाधीशों की कमी का मामला उठाया जबकि विधि एवं न्याय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने जोरदार तरीके से इससे असहमति व्यक्त की।
चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्र सरकार सरकार का ध्यान अवगत् कराने हेतू कहा था कि हाई कोर्ट में 500 जजों के पद खाली हैं, कोर्ट रूम खाली हैं, लेकिन जज नहीं हैं। सरकार से उम्मीद है कि जल्द ही जजों के रिक्त पदों को भरा जाएगा। यह चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर का कहना था।
लेकिन शनिवार को कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने चीफ जस्टिस की बात पर पलटवार किया तो न्यायपालिका और सरकार के बीच मतभेद एक बार फिर उजागर हो गए। अटॉर्नी जनरल ने मुकुल रोहतगी ने यहां तक कहा कि न्यायपालिका और तमाम संस्थानों के लिए एक लक्ष्मण रेखा तय है, इसके लिए उन्हें आत्मावलोकन करना चाहिए।
रोहतगी के लक्ष्मण रेखा वाले बयान को सरकार के बयान के तौर पर देखा जा रहा है। चीफ जस्टिस ठाकुर की बात पर कानून मंत्री का असहमति जताना भी इस ओर इशारा कर रहा है।
Everyone including the judiciary must remain in 'Lakshman Rekha': AG Mukul Rohatgi on CJI TS Thakur's statement on judges appointments
— ANI (@ANI) November 26, 2016
आपको बता दे कि पिछले दिनों एक कार्यक्रम के दौरान बोलते हुए ठाकुर ने अपने भाषण में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के जज रिटायर्ड होने के बाद किसी भी ट्रिब्यूनल का हेड बनने के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि सरकार उन्हें न्यूनतम सुविधा के तौर पर एक आवास तक मुहैया नहीं करवा पा रही है।
उन्होंने कहा कि कोर्ट रूम है, लेकिन जज नहीं। नए ट्रिब्यूनल के बनने से न्यायपालिका को कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि वे अदालतों का बोझ कम करते हैं, लेकिन इनमें मूलभूत सुविधाएं तो होनी ही चाहिए। क्यों कई ट्रिब्यूनल खाली हैं? गौरतलब है कि इससे पहले भी जस्टिस ठाकुर कोर्ट में जजों की कमी का मुद्दा उठा चुके हैं।