7 साल बाद शुक्रवार(11 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी विवाद पर सुनवाई शुरू हुई। हालांकि आज इस मामले में कुछ खास नहीं हुआ है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि अभी दस्तावेजों का ट्रांसलेशन नहीं हो पाया है, इसलिए इन्हें पेश नहीं किया जा सकता। इस पर कोर्ट ने ट्रांसलेशन के लिए तीन महीने का वक्त दे दिया।
Ayodhya Matter: Supreme Court fixed the matter for further hearing till December 5
— ANI (@ANI) August 11, 2017
ख़बरों के मुताबिक, इस केस से जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेज अरबी, उर्दू, फारसी और संस्कृत में हैं। कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 5 दिसंबर तय की है।
Ayodhya Matter: Sunni Waqf board tells SC that the original historic documents are in Sanskrit, Parsi, Urdu, Arabic and other languages.
— ANI (@ANI) August 11, 2017
बता दें कि जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर की स्पेशल बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 में आए फैसले के बाद, पिछले करीब 7 साल से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है।
बता दें कि कुछ दिन पहले ही शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायरा कर खुद को पक्ष बनाने के लिए कहा था, साथ ही दावा किया था कि बाबरी ढांचा उसकी संपत्ति थी।
शिया वक्फ बोर्ड ने ये भी कहा था कि वो मामले का शांतिपूर्ण हल चाहता है और इसके लिए वो विवादित श्रीरामलला जन्मभूमि की मुख्य जगह से इतर किसी मुस्लिम बहुल इलाके में मस्जिद बनाने को तैयार है।
जानिए क्या है अयोध्या भूमि विवाद
हिन्दू पक्ष ये दावा करता रहा है कि अयोध्या में विवादित जगह भगवान राम का जन्म स्थान है. जिसे बाबर के सेनापति मीर बाकी ने 1530 में गिरा कर वहां मस्ज़िद बनाई. मस्ज़िद की जगह पर कब्जे को लेकर हिन्दू-मुस्लिम पक्षों में विवाद चलता रहा. दिसंबर 1949, मस्जिद के अंदर राम लला और सीता की मूर्तियां रखी गयीं.
जनवरी 1950 में फैजाबाद कोर्ट में पहला मुकदमा दाखिल हुआ. गोपाल सिंह विशारद ने पूजा की अनुमति मांगी. दिसंबर 1950 में दूसरा मुकदमा दाखिल हुआ. राम जन्मभूमि न्यास की तरफ से महंत परमहंस रामचंद्र दास ने भी पूजा की अनुमति मांगी