सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया में हाथरस पीड़िता की तस्वीर प्रकाशित किए जाने को लेकर सवाल उठाने वाली एक याचिका पर सुनवाई करने से बुधवार (दो दिसंबर) को यह कहकर इनकार कर दिया कि अदालत इस पर कानून नहीं बना सकती है और याचिकाकर्ता मामले पर सरकार से निवेदन कर सकता है।
गौरतलब है कि, उत्तर प्रदेश के हाथरस में 14 सितंबर को 19 वर्षीय एक दलित लड़की से चार लोगों ने कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया था। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान 29 सितंबर को लड़की की मौत हो गई थी। इस केस ने पूरे देश को हिला दिया था। प्रशासन ने लड़की के अभिभावकों की सहमति के बिना ही रात में उसका अंतिम संस्कार कर दिया था जिसकी काफी आलोचना हुई थी। याचिका में यौन उत्पीड़न के मामलों में सुनवाई में होने वाली देरी के मुद्दे भी उठाए गए।
इस मामले ने तूल तब पकड़ा जब जिला प्रशासन और पुलिस ने जबरन पीड़िता का शव जला दिया और गांव में मीडिया, नेताओं और अन्य लोगों की एंट्री बैन कर दी। इसके बाद इस घटना को साजिश करार दिया गया। घटना की जांच के लिए एसआईटी गठित की गई। इसके बाद सीबीआई और ईडी की एंट्री हुई। एसआईटी अपनी रिपोर्ट सरकार को दे चुकी है।
याचिका की सुनवाई न्यायमूर्ति एन वी रमन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने की। पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस भी शामिल थे। पीठ ने कहा, ‘‘इन मामलों का कानून से कोई लेना देना नहीं है।’’ पीठ ने कहा, ‘‘यहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। इसके लिए समुचित कानून हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसी घटनाएं होती हैं।’’ शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि हम कानून पर कानून नहीं बना सकते। न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता इस संबंध में सरकार से निवेदन कर सकता है।
शीर्ष अदालत ने 27 अक्टूबर को कहा था कि हाथरस मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जांच की निगरानी इलाहाबाद उच्च न्यायालय करेगा और सीआरपीएफ पीड़िता के परिवार और गवाहों को सुरक्षा मुहैया कराएगा। न्यायालय ने अक्टूबर में कुछ याचिकाओं पर फैसला सुनाया था जिसमें घटना और अंतिम संस्कार के तौर तरीकों को लेकर चिंता व्यक्त की गई थी। (इंपुट: भाषा के साथ)