अनुसूचित जाति-जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम मामले में पुनर्विचार याचिका पर केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। सरकार की तरफ से दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला कायम रखा है। मंगलवार (3 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की खुली अदालत में सुनवाई करते हुए कहा है कि एससी-एसटी ऐक्ट के प्रावधान में किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की गई है।
file photoशीर्ष अदालत ने सभी पक्षों को इस मसले पर तीन दिन के भीतर जवाब देने का आदेश देते हुए 10 दिन बाद अगली सुनवाई की बात कही है। इससे पहले खुली अदालत में सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह कानून के खिलाफ नहीं है, लेकिन निर्दोषों को सजा नहीं मिलनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की 20 मार्च के फैसले पर अंतरिम रोक लगाने की गुहार ठुकरा दी। हालांकि कोर्ट ने साफ़ किया कि शिकायत करने वाले पीड़ित एससी एसटी को एफआईआर दर्ज हुए बग़ैर भी अंतरिम मुआवज़ा आदि की तत्काल राहत दी जा सकती है। मामले की अगली सुनवाई अब 10 दिन बाद की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जो लोग सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं उन्होंने हमारा जजमेंट पढ़ा भी नहीं है। हमें उन निर्दोष लोगों की चिंता है जो जेलों में बंद हैं। बता दें कि देश में तनाव के हालात को देखते हुए केंद्र सरकार ने सोमवार को एससी/एसटी एक्ट पर हाल ही में दिए गए सुप्रीम कोर्ट निर्णय के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी।
लेकिन सोमवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले से जुड़ी एक अन्य याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया था। हालांकि दलित आंदोलन के दौरान हुई हिंसाओं के बाद सुप्रीम कोर्ट इस मामले में मंगलवार को त्वरित सुनवाई के लिए राजी हो गया था।
दलित आंदोलनों और विपक्ष के हमलावर होने से बैकफुट पर नजर आ रही केंद्र सरकार इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से फैसले पर रोक की मांग कर रही थी। 20 मार्च को दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग पर सवाल उठाते हुए तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो लोग सडकों पर प्रदर्शन कर रहे हैं शायद उन्होंने हमारे फैसले को पढ़ा नहीं है। सरकार क्यों ये चाहती है कि जांच के बिना ही लोग गिरफ्तार हो। कोर्ट ने कहा कि अगर सरकारी कर्मी पर कोई आरोप लगाए तो वो कैसे काम करेगा। हमने एक्ट को नहीं बल्कि सीआरपीसी की व्याख्या की है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बवाल
बता दें कि 20 मार्च को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम 1989 के तहत अपराध में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए नए दिशा निर्देश जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि ऐसे मामले में अब सरकारी कर्मचारी की तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी। इतना ही नहीं गिरफ्तारी से पहले आरोपों की जांच जरूरी है और गिरफ्तारी से पहले जमानत भी दी जा सकती है।
न्यायमूर्ति आदर्श गोयल और यू यू ललित की पीठ ने कहा कि कानून के कड़े प्रावधानों के तहत दर्ज केस में सरकारी कर्मचारियों को अग्रिम जमानत देने के लिए कोई बाधा नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस एक्ट के तहत कानून का दुरुपयोग हो रहा है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस को सात दिन के भीतर जांच करनी चाहिए और फिर आगे की कार्रवाई का फैसला लेना चाहिए।
अगर अभियुक्त सरकारी कर्मचारी है तो उसकी गिरफ़्तारी के लिए उसे नियुक्त करने वाले अधिकारी की सहमति जरूरी होगी। उन्हें यह लिख कर देना होगा कि उनकी गिरफ्तारी क्यों हो रही है। अगर अभियुक्त सरकारी कर्मचारी नहीं है तो गिरफ्तारी के लिए एसएसपी की सहमति ज़रूरी होगी। बता दे कि इससे पहले ऐसे मामले में आरोपी की सीधे गिरफ्तारी हो जाती थी।
एससी-एसटी एक्ट के प्रावधानों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कुछ मुख्य तथ्य
- आरोपों पर तुरंत नहीं होगी गिरफ्तारी
- पहले आरोपों की जांच जरूरी
- केस दर्ज करने से पहले जांच
- DSP स्तर का अधिकारी जांच करेगा
- गिरफ़्तारी से पहले ज़मानत संभव
- अग्रिम ज़मानत भी मिल सकेगी
- सरकारी अधिकारियों को बड़ी राहत
- सीनियर अधिकारियों की इजाजत के बाद ही होगी गिरफ्तारी