गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की करारी हार के बाद अब केंद्र की नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए एक और बुरी खबर आ रही है। दरअसल, उत्तर प्रदेश में बहराइच से बीजेपी की दलित सांसद सावित्री बाई फुले ने अब अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। फुले का आरोप है कि पार्टी में दलितों-पिछड़ों के साथ इंसाफ नहीं हो रहा इसलिए वह 1 अप्रैल को केंद्र सरकार के खिलाफ लखनऊ में रैली करेंगी।बीजेपी सांसद का कहना है कि केंद्र सरकार की नीतियां अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) के खिलाफ हैं। समाचार एसेंजी ANI के मुताबिक उन्होंने बुधवार (28 मार्च) को यूपी की राजधानी लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ऐलान किया कि वह 1 अप्रैल को केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू करेंगी। साथ ही सांसद ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अगर पार्टी उनके खिलाफ कोई कदम उठाती है तो यह संविधान के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई के बराबर होगा।
BJP MP from Bahraich Savitri Bai Phule to hold a rally in Lucknow on 1st April against 'anti-SC/ST policies of Government of India' pic.twitter.com/H0VZb6PqyF
— ANI UP (@ANINewsUP) March 28, 2018
नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सावित्री बाई फुले ने कहा कि भारत के संविधान और आरक्षण में लगातार समीक्षा की बात हो रही है। सरकार (केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार) आरक्षण समाप्त करने की बात भी कह रही है। वह इसके खिलाफ हैं। आरक्षण को लेकर वह सरकार के खिलाफ भी जाने को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि भारत के संविधान के तहत ही वह बहराइच से सांसद हैं वर्ना शायद उन्हें मौका न मिलता।
बीजेपी सांसद ने आरोप लगाया है कि साजिश के तहत आरक्षण खत्म करने की बात की जा रही है, जबकि संविधान में है कि सभी को बराबरी का हक नहीं मिलता तब तक आरक्षण बढ़ता रहेगा। आरक्षण खत्म होगा तो बहुजन समाज के लोगों को मौका नहीं मिलेगा। बहुजन उनके अधिकार के लिए सड़क से संसद तक लड़ने को तैयार हैं। उधर, यूपी सरकार में सहयोगी दल के मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने भी फिर सरकार के कामकाज से नाराजगी जताई है।
वहीं, बीजेपी सांसद फुले ने रैली के संबंध में ‘नेशनल हेराल्ड’ से बुधवार (28 मार्च) को बातचीत में बताया कि, “एक अप्रैल से वह ‘भारतीय संविधान बचाओ आंदोलन’ नामक रैली का आयोजन करेंगी। यह रैली भारत सरकार की एससी और एसटी नीतियों के खिलाफ होगी। रैली का आयोजन कांशीराम शांति वन में होगा।”
उन्होंने बताया कि, “ऐसा कई बार कहा जाता है कि हम (दलित) संविधान बदलने चले हैं। यह भी कई बार कहा जाता है कि आरक्षण समाप्त कर दिया जाना चाहिए। कभी कहा जाता कि आरक्षण की नीति में हम (सरकार) फेरबदल कर देंगे। अगर आरक्षण और संविधान ही सुरक्षित नहीं है तो फिर बहुजनों के अधिकार कैसे सुरक्षित रहेंगे?”
NDA के दलित सांसदों ने PM मोदी से की मुलाकात
वहीं, एससी-एसटी एक्ट में बदलाव के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर विपक्ष के साथ-साथ सरकार में भी खलबली मची हुई है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की अर्जी को लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के करीब 18 दलित सांसदों ने बुधवार (28 मार्च) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की।
अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के सांसदों के शिष्टमंडल ने केंद्रीय मंत्री एवं लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख राम विलास पासवान और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत के नेतृत्व में प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की। इस दौरान इन सांसदों ने पीएम मोदी से एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चर्चा की।
आउटलुक के मुताबिक मुलाकात के बाद पासवान ने कहा कि एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर प्रधानमंत्री के साथ अच्छी एवं विस्तृत चर्चा हुई। मोदीजी ने हमारी बातों और चिंताओं को ध्यान से सुना। वहीं रिपब्लिकन पार्टी आई इंडिया (ए) के अध्यक्ष रामदास अठावले ने कहा कि उन्होंने दलितों को सामाजिक न्याय सुनिश्चित कराने के विषय पर प्रधानमंत्री को चार सूत्री ज्ञापन सौंपा और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में सभी बिंदुओं पर गंभीरता से विचार करने का आग्रह किया
NDTV के मुताबिक एनडीए के सांसदों के अलावा कांग्रेस भी सरकार से इस फैसले पर पुनर्विचार याचिका देने की मांग कर रही है। वहीं मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर केंद्र सरकार से तत्काल पुनरीक्षण याचिका दायर करने की मांग की है।
माकपा पोलित ब्यूरो की ओर से जारी बयान में सुप्रीम कोर्ट के इस मामले में फैसले को एससी एसटी एक्ट को कमजोर करने वाला बताते हुए मोदी सरकार से इसके खिलाफ यथाशीघ्र पुनरीक्षण याचिका दायर करने का अनुरोध किया है। साथ ही पोलित ब्यूरो ने मामले की सुनवायी के दौरान इस कानून के प्रावधानों को कमजोर करने पर सरकारी वकील द्वारा कोई आपत्ति दर्ज नहीं करने की भी आलोचना की।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बवाल
बता दें कि 20 मार्च को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम 1989 के तहत अपराध में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए नए दिशा निर्देश जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि ऐसे मामले में अब सरकारी कर्मचारी की तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी। इतना ही नहीं गिरफ्तारी से पहले आरोपों की जांच जरूरी है और गिरफ्तारी से पहले जमानत भी दी जा सकती है।
न्यायमूर्ति आदर्श गोयल और यू यू ललित की पीठ ने कहा कि कानून के कड़े प्रावधानों के तहत दर्ज केस में सरकारी कर्मचारियों को अग्रिम जमानत देने के लिए कोई बाधा नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस एक्ट के तहत कानून का दुरुपयोग हो रहा है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस को सात दिन के भीतर जांच करनी चाहिए और फिर आगे की कार्रवाई का फैसला लेना चाहिए।
अगर अभियुक्त सरकारी कर्मचारी है तो उसकी गिरफ़्तारी के लिए उसे नियुक्त करने वाले अधिकारी की सहमति जरूरी होगी। उन्हें यह लिख कर देना होगा कि उनकी गिरफ्तारी क्यों हो रही है। अगर अभियुक्त सरकारी कर्मचारी नहीं है तो गिरफ्तारी के लिए एसएसपी की सहमति ज़रूरी होगी। बता दे कि इससे पहले ऐसे मामले में आरोपी की सीधे गिरफ्तारी हो जाती थी।
एससी-एसटी एक्ट के प्रावधानों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कुछ मुख्य तथ्य
- आरोपों पर तुरंत नहीं होगी गिरफ्तारी
- पहले आरोपों की जांच जरूरी
- केस दर्ज करने से पहले जांच
- DSP स्तर का अधिकारी जांच करेगा
- गिरफ़्तारी से पहले ज़मानत संभव
- अग्रिम ज़मानत भी मिल सकेगी
- सरकारी अधिकारियों को बड़ी राहत
- सीनियर अधिकारियों की इजाजत के बाद ही होगी गिरफ्तारी