किसान आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता, कहा- स्थिति में अभी कोई सुधार नहीं हुआ

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि तीन कृषि कानूनों की वैधता को चुनौती देने वाली और दिल्ली सीमा पर किसानों के आन्दोलन से संबंधित याचिकाओं पर 11 जनवरी को सुनवाई की जाएगी। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने टिप्पणी की कि किसानों के आन्दोलन के मसले पर जमीनी स्तर पर कोई सुधार नहीं हुआ है। केन्द्र ने पीठ को सूचित किया कि सरकार और किसानों के बीच इन मसलों पर ‘स्वस्थ विचार विमर्श’ जारी है।

किसान आंदोलन
(फाइल फोटो: सिंधु बॉर्डर, जनता का रिपोर्टर/ सुरेश कुमार)

अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि निकट भविष्य में संबंधित पक्षों के किसी नतीजे पर पहुंचने की काफी उम्मीद है और नए कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केन्द्र का जवाब दाखिल होने की स्थिति में किसानों और सरकार के बीच बातचीत बंद हो सकती है। सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को सूचित किया कि सरकार और किसानों के बीच स्वस्थ वातावरण में बातचीत जारी है और इस मामले को आठ जनवरी को सूचीबद्ध नहीं किया जाना चाहिए। इस पर पीठ ने कहा, ‘‘हम स्थिति को समझते हैं और सलाह मशविरे को प्रोत्साहन देते हैं। अगर आप बातचीत की प्रक्रिया के बारे में कहते हैं तो हम इस मामले को सोमवार 11 जनवरी के लिए स्थगित कर सकते हैं।’’

शीर्ष अदालत अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। शर्मा ने भी तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दे रखी है। पीठ ने शर्मा की याचिका पर केन्द्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। शर्मा का तर्क है कि केन्द्र को संविधान के तहत इन कानूनों को बनाने का अधिकार नहीं है। वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, ‘‘ये किसानों से संबंधित मामले हैं। दूसरे मामले कहां हैं? वे कब सूचीबद्ध हैं? हम सारे मामलों की एक साथ सुनवाई करेंगे।’’

पीठ ने मेहता से कहा कि दूसरे मामलों की स्थिति के बारे मे पता करें कि वे कब सूचीबद्ध हैं। मेहता ने कहा कि इन याचिकाओं पर सुनवाई के लिए पहले कोई निश्चित तारीख नहीं दी गयी थी। पीठ ने कहा, ‘‘हम इस याचिका (शर्मा की) को शुक्रवार को सुनवाई के लिए रख रहे हैं और इस बीच संशोधित याचिका को रिकार्ड पर लेने की अनुमति दे रहे हैं।’’ पीठ ने कहा, ‘‘एम एल शर्मा हमेशा ही चौंकाने वाली याचिकायें दायर करते हैं और वह कहते हैं कि केन्द्र को कानून बनाने का अधिकार नहीं है।’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस याचिका पर पहले से लंबित सारे मामलों के साथ विचार करेगी क्योंकि ‘‘हमे लगता है कि स्थिति में अभी कोई सुधार नहीं हुआ है।’’

मेहता ने जब यह कहा कि बातचीत स्वस्थ माहौल में हो रही है, पीठ ने कहा कि वह इन मामलों पर 11 जनवरी को सुनवाई करेगी। शीर्ष अदालत ने नये कृषि कानूनों- कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून, 2020, कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) कानून, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 12 अक्टूबर को केन्द्र को नोटिस जारी किया था।

न्यायालय ने पिछले साल 17 दिसंबर को दिल्ली की सीमा पर किसानों के आंदोलन को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहा था कि किसानों के प्रदर्शन को ‘‘बिना किसी अवरोध’’ के जारी रखने देना चाहिए और शीर्ष अदालत इसमें ‘‘दखल’’ नहीं देगी क्योंकि विरोध का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। न्यायालय ने किसानों के अहिंसक विरोध प्रदर्शन के अधिकार को स्वीकारते हुए कहा था कि उनके विरोध प्रकट करने के मौलिक अधिकार से दूसरे लोगों के निर्बाध तरीके से आवागमन और आवश्यक वस्तुयें प्राप्त करने के मौलिक अधिकार का अतिक्रमण नहीं होना चाहिए क्योंकि विरोध प्रदर्शन करने के अधिकार का मतलब पूरे शहर को अवरूद्ध कर देना नहीं हो सकता।

गौरतलब है कि, पंजाब, हरियाणा और देश के कुछ अन्य हिस्सों से आए हजारों किसान कड़ाके की ठंड के बावजूद एक महीने से अधिक समय से राष्ट्रीय राजधानी की विभिन्न सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं।उनकी मांग है कि तीनों कृषि कानूनों को निरस्त किया जाए और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी दी जाए। (इंपुट: भाषा के साथ)

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