छात्र कार्यकर्ताओं ने तिहाड़ जेल से रिहा होने के बाद संघर्ष जारी रखने का लिया संकल्प, आसिफ इकबाल तन्हा के फेस मास्क पर लिखा था- “No CAA, No NRC, No NPR”

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दिल्ली हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद गुरुवार को दिल्ली की तिहाड़ जेल से रिहा हुए छात्र कार्यकर्ताओं ने अपना संघर्ष जारी रखने का संकल्प लिया है। जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय की छात्राओं नताशा नरवाल, देवांगना कालिता और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगे के एक मामले में गिरफ्तार किए जाने के एक साल से अधिक समय बाद जेल से रिहा किया गया। जेल से उनके बाहर आने के कुछ ही घंटे पहले एक अदालत ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगा ‘‘साजिश’’ मामले में तुरंत उनकी रिहाई का आदेश दिया था।

छात्र कार्यकर्ताओं

दो दिन पहले, दिल्ली हाई कोर्ट ने गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (यूएपीए) के तहत पिछले साल मई में गिरफ्तार नरवाल, कालिता और तनहा को जमानत दे दी थी। छात्र कार्यकर्ताओं के मित्र और परिवार के सदस्य उनकी रिहाई से पहले जेल के बाहर एकत्र थे। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की छात्राएं नरवाल और कालिता ने जेल में साल भर रहने के दौरान मिले समर्थन को लेकर अपने मित्रों ओर शुभचिंतकों का शुक्रिया अदा किया। इनमें से कई लोग उनकी रिहाई के मौके पर जेल के बाहर एकत्र थे।

समाचार एजेंसी पीटीआई (भाषा) की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘पिंजरा तोड़’ मुहिम की दोनों कार्यकर्ताओं के तिहाड़ से बाहर आते ही ‘लाल सलाम’, ‘नताशा जिंदाबाद’, ‘देवांगना जिंदाबाद’ के नारों के साथ उनका अभिवादन किया गया। नताशा के पिता महावीर नरवाल की याद में भी नारे लगाए गए, जिनकी पिछले महीने कोरोना वायरस (कोविड-19) के कारण मृत्यु हो गई थी।

मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा जेल के एक अलग द्वार से बाहर आए। जामिया मिल्लिया इस्लामिया के इस छात्र ने मास्क पहन रखा था, जिसपर ‘‘नो सीएए, नो एनआरसी, नो एनपीआर’’ लिखा था। तनहा ने जेल से बाहर आने पर कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि एक दिन वह रिहा हो जाएंगे। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि सीएए, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ लड़ाई जारी रहेगी।

जेल के बाहर एकत्र छात्र बैनर लिए हुए थे, जिन पर जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद सहित अन्य राजनीतिक कैदियों को रिहा करने तथा यूएपीए को रद्द करने की मांग की गई थी। इसकी कानून के तहत तीनों छात्र कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था। नरवाल ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हमें जेल के अंदर जबरदस्त समर्थन मिला है और हम अपना संघर्ष जारी रखेंगे। ’’

जमानत देने के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हुए पिंजरा तोड़ मुहिम की कार्यकर्ता नरवाल ने कहा कि जब उन्हें गिरफ्तार किया गया था, तब उन्हें यह यकीन करने में कई महीने लग गये कि वे इस तरह के कठोर आरोपों में जेल में कैद हैं। मामले के अब तक न्यायालय में विचाराधीन होने का जिक्र करते हुए कालिता ने कहा, ‘‘…हम जिस चीज में यकीन रखते हैं उसे कायम रखने के लिए हम दिल्ली उच्च न्यायालय का शुक्रिया अदा करना चाहेंगे। इस तरह का कोई प्रदर्शन जो हमने किया है, आतंकवाद नहीं है। यह महिलाओं के नेतृत्व में एक लोकतांत्रिक प्रदर्शन था। ’’

सरकार पर प्रहार करते हुए कालिता ने कहा कि अपनी आवाज उठाने को लेकर लोग जेल में कैद हैं। उन्होंने कहा, ‘‘यह सरकार की हताशा को प्रदर्शित करता है…हम ऐसी महिलाएं हैं जो उससे नहीं डरते हैं। वे (सरकार) लोगों की आवाज और असहमति को दबाने की कोशिश कर रहे हैं। हमें लोगों से अपार समर्थन मिला, जिसने हमें जेल के अंदर जीवित रहने में मदद की।’’

मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा ने एक बयान में कहा, मैं सर्वशक्तिमान अल्लाह का आभारी हूं और सभी समर्थकों, मेरे वकीलों और दूसरों की आजादी के लिए लड़ने वाले सभी लोगों को धन्यवाद देता हूं। उन्हें उम्मीद थी कि एक दिन वह रिहा हो जाएंगे। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि सीएए, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ लड़ाई जारी रहेगी। मुझे खुशी है कि माननीय अदालत ने कहा कि हमारे शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक प्रदर्शन का दंगों से कोई लेना देना नहीं था। मुझे उम्मीद है कि सुनवाई त्वरित तरीके से होगी और हम जल्द ही बरी हो जाएंगे।’’ तनहा स्टूडेंट्स इस्लामिक आर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया के सदस्य हैं। अन्य कैदियों की रिहाई की मांग करते हुए उन्होंने सरकार से जेल में कोविड से जुड़ी स्थिति में सुधार करने की भी अपील की।

उच्च न्यायालय से जमानत मिलने के बाद रिहाई में देर होने पर कालिता ने कहा कि यह अविश्सनीय है क्योंकि उन्हें दो तीन दिन पहले जमानत मिल गई थी। उन्होंने कहा, ‘‘…अब तक हम जेल में थे। मैं हमेशा ही उम्मीद करती रही कि कुछ पुलिस अधिकारी आएंगे और मुझे गिरफ्तार करेंगे।’’

जेल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कालिता और नरवाल को शाम सात बजे और तनहा को साढ़े सात बजे रिहा किया गया। तीनों छात्र कार्यकर्ताओं के पते और मुचलके के सत्यापन में देरी के कारण जेल से उनकी रिहाई में देरी हो रही थी। दिल्ली की एक अदालत ने तीनों की तुरंत रिहाई का आदेश देते हुए कहा कि पुलिस द्वारा सत्यापन प्रक्रिया में देरी आरोपियों को जेल में रखने की स्वीकार्य वजह नहीं हो सकती। उच्च न्यायालय से जमानत लेने के बाद कार्यकर्ताओं ने जेल से तुरंत रिहाई के लिए निचली अदालत का रुख किया था।

गौरतलब है कि, 24 फरवरी 2020 को उत्तर-पूर्व दिल्ली में संशोधित नागरिकता कानून के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा भड़क गई थी, जिसने सांप्रदायिक टकराव का रूप ले लिया था। हिंसा में कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई थी तथा करीब 200 लोग घायल हो गए थे।

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