अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से जारी विवाद के बीच एससी/एसटी एक्ट पर फैसला देने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस एके गोयल को नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (एनजीटी) का अध्यक्ष बनाए जाने पर केंद्र की मोदी सरकार में शामिल दलित नेताओं ने सवाल उठाए हैं। एनडीए में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर जस्टिस गोयल को पद से बर्खास्त करने की मांग की है।
Photo: Hindustan Timesइसके साथ ही उन्होंने मांग की है कि सरकार एससी/एसटी एक्ट पर अध्यादेश लाए। मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री और एलजेपी अध्यक्ष रामविलास पासवान के सांसद बेटे चिराग पासवान ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर कहा, ”सरकार द्वारा अतिशीघ्र जस्टिस (रिटायर्ड) एके गोयल को एनजीटी चेयरमैन पद से बर्खास्त किया जाए।”
चिराग पासवान ने पीएम मोदी के नाम पत्र लिखकर कहा कि 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के जज एके गोयल ने एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम पर फैसला सुनाया गया था। इससे अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय में असंतोष और आक्रोश हैं। उन्होंने मांग की है कि मोदी सरकार द्वारा अतिशीघ्र जस्टिस (रिटायर्ड) एके गोयल को एनजीटी चेयरमैन पद से बर्खास्त किया जाए।
चिराग ने पत्र में कहा, ”संसद के चालू सत्र में विधेयक लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रभाव से अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के कानूनी सुरक्षा की व्यवस्था को बहाल किया जाए। अगर इसमें कोई अड़चन है तो संसद के चालू सत्र को दो दिन पहले खत्म कर अध्यादेश लाया जाए।” उन्होंने कहा कि सरकार के इन कदमों से एससी/एसटी के बीच विश्वास का माहौल पैदा होगा।
बता दें कि जज एके गोयल इसी साल 6 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए थे और मोदी सरकार ने उसी दिन उन्हें नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का चेयरमैन बना दिया गया था। उन्होंने अपने फेयरवेल भाषण में इस फैसले का समर्थन भी किया था। लेकिन अब गोयल को उनके पद से हटाने की मांग तेज हो गई है।
रामविलास पासवान ने भी जताई नाराजगी
केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने भी सोमवार को कहा कि एनडीए के कई दलित मंत्रियों ने जस्टिस एके गोयल को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) का चेयरपर्सन नियुक्त करने पर चिंता व्यक्त की है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पासवान ने कहा कि गोयल की नियुक्ति करने से समाज में गलत संदेश गया है। उन्होंने ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 के खिलाफ फैसला दिया था।
बता दें कि इसी साल 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की एके गोयल और यूयू ललित की पीठ ने फैसला दिया था कि एससी-एसटी के तहत कथित उत्पीड़न की शिकायत को लेकर तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी और प्रारंभिक जांच के बाद ही कार्रवाई की जाएगी। इस फैसले से नाराज अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के लोगों ने देश भर में भारी विरोध प्रदर्शन किया था। इसी साल 2 अप्रैल को ‘भारत बंद’ का आह्वान किया गया था। ‘भारत बंद’ के दौरान हुई हिंसा में 11 लोगों की मौत हो गई थी।