सोशल मीडिया पर पत्रकारों और विपक्षी नेताओं द्वारा आलोचनाओं के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘फेक न्यूज’ चलाने पर कार्रवाई करने वाली केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के मंत्रालय द्वारा जारी विवादित आदेश को वापस लेने को कहा है। उन्होंने फेक न्यूज के मामले में आरोपी पत्रकारों पर कार्रवाई का जिम्मा प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) पर छोड़ दिया गया है। बता दें कि सरकार ने ‘फेक न्यूज़ यानी फर्जी खबरों’ को लेकर बड़ा फैसला लेते हुए प्रेस अधिमान्यता नियमों में बड़ा बदलाव किया है, जिसके तहत अब फेक न्यूज़ देने पर स्थाई रूप से पत्रकारों की मान्यता जा सकती है।
File Photo: AFPबता दें कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से जारी किए गए नोटिफिकेश की विपक्षी दलों के नेताओं ने यह कहते हुए निंदा की थी कि सेंसरशिप गलत है। विवाद बढ़ता देख फेक न्यूज करने पर पत्रकारों की मान्यता रद्द करने के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के फैसले को प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने वापस लेने को कहा है। पीएमओ ने कहा कि यह पूरा मसला प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और प्रेस संगठनों पर छोड़ देना चाहिए।
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से जारी गाइडलाइन के मुताबिक, फर्जी खबरों पर अंकुश लगाने के उपाय के तहत सरकार ने सोमवार (2 अप्रैल) को कहा कि अगर कोई पत्रकार फर्जी खबरें करता हुआ या इनका दुष्प्रचार करते हुए पाया जाता है तो उसकी मान्यता स्थायी रूप से रद्द की जा सकती है। इस फैसले का सोशल मीडिया पर जमकर विरोध हो रहा है। जिसके मद्देनजर पीएम मोदी ने खुद इस विवादित आदेश को वापस लेने का आदेश दिया है।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने वापस लिया फैसला
प्रधानमंत्री कार्यालय से मिले निर्देशों के आधार पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने फेक न्यूज पर जारी अपनी विवादित प्रेस विज्ञप्ति को वापस ले लिया है। संक्षिप्त बयान में मंत्रालय ने कहा है, ‘‘फेक न्यूज को नियमित करने के संबंध में दो अप्रैल, 2018 को पत्र सूचना कार्यालय से‘‘ पत्रकारों के मान्यता पत्र के लिए संशोधित दिशा-निर्देश’’ शीर्षक से जारी प्रेस विज्ञप्ति वापस ली जाती है।’’
कई ओर से आलोचना होने के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने मंत्रालय को विज्ञप्ति वापस लेने का आदेश देते हुए कहा कि फेकन्यूज से निपटने की जिम्मेदारी पीसीआई और एनबीए जैसी संस्थाओं की होनी चाहिए। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री कार्यालय को भी लगता है कि सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, फेक न्यूज या फर्जी खबरों पर अंकुश लगाने के उपाय के तहत सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने सोमवार (2 अप्रैल) को कहा था कि अगर कोई पत्रकार फर्जी खबरें करता हुआ या इनका दुष्प्रचार करते हुए पाया जाता है तो उसकी मान्यता स्थायी रूप से रद्द की जा सकती है।
मंत्रालय ने जारी उस एक विज्ञप्ति में कहा था कि पत्रकारों की मान्यता के लिये संशोधित दिशा-निर्देशों के मुताबिक अगर फर्जी खबर के प्रकाशन या प्रसारण की पुष्टि होती है तो पहली बार ऐसा करते पाये जाने पर पत्रकार की मान्यता छह महीने के लिये निलंबित की जाएगी और दूसरी बार ऐसा करते पाये जाने पर उसकी मान्यता एक साल के लिए निलंबित की जाएगी।
इसके अनुसार, अगर तीसरी बार उल्लंघन करते पाये जाने पर पत्रकार (महिला/पुरूष) की मान्यता स्थायी रूप से रद्द कर दी जाएगी। मंत्रालय ने कहा था कि अगर फर्जी खबर के मामले प्रिंट मीडिया से संबद्ध हैं तो इसकी कोई भी शिकायत भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) को भेजी जाएगी और अगर यह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से संबद्ध पाया जाता है तो शिकायत न्यूज ब्रॉडकास्टर एसोसिएशन (एनबीए) को भेजी जाएगी ताकि यह निर्धारित हो सके कि खबर फर्जी है या नहीं। मंत्रालय ने कहा था कि इन एजेंसियों को 15 दिन के अंदर खबर के फर्जी होने का निर्धारण करना होगा।
पत्रकारों और विपक्ष ने किया विरोध
हालांकि सरकार के इस आदेश का विरोध भी शुरू हो गया है। कई पत्रकारों और विपक्ष के नेताओं ने ट्वीट कर नाराजगी व्यक्त की है। कांग्रेस नेता और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल ने ट्वीट कर कहा कि, ”मैं फेक न्यूज पर अंकुश के प्रयास की सराहना करता हूं, लेकिन मेरे मन में कई सवाल उठ रहे हैं। 1. क्या गारंटी है कि इस नियम का इस्तेमाल ईमानदार पत्रकारों को प्रताड़ित करने के लिए नहीं किया जाएगा? 2. यह कौन तय करेगा कि क्या फेक न्यूज है?”
कांग्रेस नेता ने तीसरा सवाल केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से पूछा कि, ”क्या यह संभव नहीं है कि जानबूझ कर किसी के खिलाफ शिकायत की जाए, ताकि जांच जारी रहने तक उसकी मान्यता निलंबित हो जाए? वहीं चौथा सवाल करते हुए कहा कि, इसकी क्या गारंटी है कि ऐसे गाइडलाइन से फेक न्यूज पर रोक लगेगी, कहीं यह सही पत्रकारों को सत्ता के खिलाफ असहज खबरें जारी करने से रोकने की कोशिश तो नहीं?”
वहीं, सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने अहमद पटेल को जवाब देते हुए कहा कि, ”यह बताना उचित होगा कि फेक न्यूज के मामले पीसीआई और एनबीए के द्वारा तय किए जाएंगे, दोनों एजेंसियां भारत सरकार के द्वारा रेगुलेट या ऑपरेट नहीं की जाती हैं।”
Glad to see you awake @ahmedpatel ji whether a News article / broadcast is fake or not will be determined by PCI & NBA; both of whom I’m sure you know are not controlled/ operated by GOI.
— Smriti Z Irani (@smritiirani) April 2, 2018
वहीं, पत्रकार भी इस पर विचार करने के लिए एक बैठक करने और विरोध की तैयारी कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नए नियम की समीक्षा के लिए पत्रकारों ने आज शाम 4 बजे इमरजेंसी बैठक बुलाई है। कुछ पत्रकारों का कहना है कि यह ‘मीडिया का गला घोंटने की कोशिश के तहत लाया जा रहा सरकार का अलोकतांत्रिक कदम है।’
वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता सरकार के इस कदम का विरोध करते हुए ट्वीट करते हैं, ‘ऐसी गलती न करें। यह मुख्यधारा की मीडिया पर असाधारण हमला है। यह वैसा ही है जैसा राजीव गांधी का एंटी डेफमेशन बिल था। समूची मीडिया को अपने मतभेद भुलाकर इसका विरोध करना चाहिए।’
Make no mistake: this is a breathtaking assault on mainstream media. It’s a moment like Rajiv Gandhi’s anti-defamation bill. All media shd bury their differences and resist this. https://t.co/pyvgymhIkF
— Shekhar Gupta (@ShekharGupta) April 2, 2018
जबकि वरिष्ठ पत्रकार सुहासिनी हैदर ने ट्वीट कर कहा कि, ‘सरकार के आज के आदेश के मुताबिक सजा सिर्फ उन्हें मिलेगी जो मान्यता प्राप्त हैं। उन्हें सिर्फ शिकायत के आधार पर ही दंड दे दिया जाएगा, अंतिम निर्णय की प्रतीक्षा नहीं की जाएगी। मुझे नहीं लगता कि यह उचित है मैम।’
Committee comprising of senior officers , reps of PCI, NBA, IBF set up for regulations/ policy for digital broadcasting & News portals. Till such time the regulation is not implemented rules cannot be enforced for news portals by industry.
— Smriti Z Irani (@smritiirani) April 2, 2018
इस पर सफाई देते हुए स्मृति ईरानी ने कहा कि, ‘कमिटी में वरिष्ठ अधिकारी, पीसीआई, एनबीए और आईबीएफ के प्रतिनिधि होंगे। जब तक कोई रेगुलेशन नहीं आ जाता, न्यूज पोर्टल्स के लिए नियम लागू नहीं किए जा सकते।’ बता दें कि हाल ही में फेक न्यूज़ फैलाने के आरोप में बेंगलुरू पुलिस ने पोस्टकार्ड न्यूज़ वेबसाइट के एडिटर महेश विक्रम हेगड़े को गिरफ्तार किया था। महेश की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी ने कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार पर निशाना साधा था।