“70 साल का हिसाब मांगते-मांगते मोदी सरकार कब ‘राष्ट्रवाद’ पर शिफ्ट हो गई पता ही नहीं चला”

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”ये धर्मयुद्ध है हम जीतेंगे” BJP ज्वाइन करते ही मालेगांव बम धमाके में आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने इस बात का ऐलान कर दिया। पिछले 70 साल का हिसाब मांगते-मांगते मौजूदा सरकार (केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार) ने देश के मुद्दों और चुनाव का नैरेटिव बहुत ही ख़ूबसूरती से बदल दिया। चाल, चरित्र और चेहर की राजनीति कब राष्ट्रवाद पर शिफ़्ट हो गई पता ही नहीं चला।

जिस वक़्त ज़मानत पर रिहा प्रज्ञा ठाकुर के BJP में शामिल होने की ख़ुशियां मनाई जा रही थी, उस दौरान JNU के ‘लापता’ छात्र नजीब की अम्मी फ़ातिमा नफ़ीस का भी एक बयान सामने आया कि वो उस पार्टी, उस उम्मीदवार को अपना वोट देंगी जो उनका बेटा लौटा दे। पर अफ़सोस कोई चुनावी वादे के तौर पर ही सही पर देश की कोई भी बड़ी पार्टियां इस मुद्दे को छेड़ना के लिए तैयार नहीं है। पर ऐसा क्यों?

लापता बेटे की आस लिए फ़ातिमा संसद के क़रीब कभी सड़कों पर धरने के लिए बैठीं तो कभी बेरहमी से घसीटी गईं पर उनकी आवाज़ संसद की दीवारों से टकरा कर म्यूट हो गई, लेकिन उन्होंने भी अपने बेटे की तलाश को अपना आंदोलन बना लिया और इसके लिए वो उन तमाम कोशिशों को कर रही हैं जिसकी राह पर चलकर उन्हें अपने जवान बेटे की शक्ल देखने की आस बंधी है।

उन्हें कन्हैया कुमार से बहुत सी उम्मीदें हैं, क्योंकि कन्हैया ना सिर्फ़ उस यूनिवर्सिटी से है जहां उनका बेटा पढ़ता था बल्कि उसके ग़ायब होने के बाद लगातार वो उनका साथ भी दे रहा है। कन्हैया के लिए वो बेगूसराय भी पहुंच गईं पर उन्होंने कन्हैया को दो टूक कह दिया है कि कल को अगर उसने संसद में उन जैसे जुल्म के शिकार लोगों की आवाज़ बुलन्द नहीं कि तो वो उसे डंडे से मारेंगी। पर क्या ऐसी बात किसी और नेता को कही जा सकती है?

फ़ातिमा ना तो ऐसी पहली मां हैं जिनका बेटा इस तरह से ग़ायब हुआ और ना ही आख़िरी… लेकिन क्या चुनाव में हमें इस तरह के मुद्दे दिखाई दिए? मान लीजिए कल को साध्वी प्रज्ञा ही प्रचार के दौरान जब जनता के बीच पहुंचेंगी तो किन मुद्दों पर वोट की अपील करेंगी? और कहीं उनका सामना नजीब की अम्मी फ़ातिमा से हो गया तो क्या वो क्या कहेंगी?

एक तरफ़ कन्हैया जैसा नेता है जिनपर राजद्रोह का आरोप लगा, लेकिन अब तक चार्जशीट पर ही अटका है और दूसरी तरफ़ मालेगांव ब्लास्ट मामले में आरोपी और किसी ज़माने में ABVP से नाता रखने वाली साध्वी प्रज्ञा। जिनका नाम लेते ही ‘भगवा आतंकवाद’ पर बहस छिड़ जाती है। लेकिन इन सबके बीच नए वाले राष्ट्रवाद का पलड़ा भारी कर दिया जाता है।

पर एक राहत की बात ये है कि आज नाथू राम गोडसे ज़िन्दा नहीं है, वर्ना वो भी अपना राष्ट्रवाद समझाने के लिए चुनाव में जगह तलाशने लगता। ख़ैर अभी तो चुनाव की दूसरी ही किश्त पड़ी है आगे-आगे देखिए राजनीतिक पार्टियों के तरकश में बहुत से तुरुप के इक्के हैं जो देश की तकदीर बदलने के लिए उछाले जाएंगे।

(लेखक टीवी पत्रकार हैं। इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं।)

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