अपने चुनावी हलफनामे में दो आपराधिक मामलों का कथित तौर पर खुलासा नहीं करने को लेकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही की मांग करने वाली एक अर्जी नागपुर की एक अदालत ने शुक्रवार को बहाल कर दी। यहां की एक मजिस्ट्रेट अदालत ने कहा कि वह (अदालत) चार नवंबर को प्रतिवादी (फड़णवीस) के लिए प्रक्रिया (नोटिस देने) पर आदेश जारी करेगी।
दरअसल, फड़णवीस के खिलाफ 1996 और 1998 में कथित धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े के दो मामले दर्ज किए गए थे लेकिन दोनों मामलों में आरोप तय नहीं किया गया था। शहर के अधिवक्ता सतीश उके ने अदालत में एक अर्जी देकर फड़णवीस के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करने की मांग की थी। मजिस्ट्रेट अदालत ने 2015 में यही मांग करने वाली उके की अर्जी खारिज कर दी थी। इसके बाद उके ने सत्र अदालत का रुख किया, जिसने 2016 में अर्जी स्वीकार कर ली। जिस पर, देवेंद्र फडणवीस ने सत्र अदालत के आदेश को बंबई उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
समाचार एजेंसी भाषा की रिपोर्ट के मुताबिक, उच्च न्यायालय ने सत्र अदालत के आदेश को रद्द कर दिया और अर्जी खारिज करने के मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को कायम रखा। उके ने एक अक्टूबर को उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की, जिस पर शीर्ष न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त कर दिया। शीर्ष न्यायालय ने इस बात का जिक्र किया कि भाजपा नेता के खिलाफ प्रथम दृष्टया जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 125 (जानकारी छिपाने या चुनावी हलफनामे में झूठी जानकारी देने) के तहत एक मामला बनता है। साथ ही, न्यायालय ने मजिस्ट्रेट अदालत को उके की अर्जी पर आगे बढ़ने का निर्देश दिया।
उके ने शुक्रवार को कहा कि वह महाराष्ट्र के राज्यपाल के समक्ष भी एक अर्जी देकर यह अनुरोध करेंगे कि फड़णवीस को (21 अक्टूबर के विधानसभा चुनाव के बाद) मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि उनके खिलाफ मामला मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा सुना जा रहा है। उके ने दलील दी कि मुख्यमंत्री ने 2014 में एक झूठा हलफनामा दाखिल कर अपने खिलाफ दर्ज दो लंबित आपराधिक मामलों का खुलासा नहीं किया था।