महाराष्ट्र की बीजेपी शासित फडणवीस सरकार ने मंत्रियों की छवि को चमकाने के लिए सरकारी खर्चे पर ‘प्राइवेट पीआर’ यानी निजी जनसंपर्क अधिकारियों की भर्ती करने का फैसला लिया है। राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग से इस बारे में शासनादेश जारी हो चुका है।
न्यूज एजेंसी भाषा के हवाले से नवभारत टाइम्स में छपि रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी खर्चे पर मंत्रियों की छवि चमकाने के लिए 30 निजी पीआर की भर्ती करने की बात शासनादेश में कही गई है। इनमें से हर एक को 25 हजार रुपये सैलरी मिलेगी। ‘प्राइवेट पीआर’ की नियुक्ति 2 वर्ष या सरकार के रहने तक वैध रहेगी। यानी अगले दो साल में सरकार इन पर 2 करोड़ रुपये खर्च करने जा रही है।
‘प्राइवेट पीआर’ के पास सिर्फ दो ही काम होंगे पहला काम होगा मंत्री और मंत्रालय की छवि चमकाना और दूसरा काम होगा मंत्री और मंत्रालय के खिलाफ छपने वाली खबरों का खंडन करना। मंत्रियों की छवि को चमकाने का यह खर्चीला फैसला सरकारी तंत्र को ठेंगा दिखाते हुए लिया गया है।
बता दें कि राज्य सरकार का अपना जनसंपर्क विभाग है। जिसमें पहले से ही दर्जनों लोग नियमित सरकारी सैलरी पर काम कर रहे हैं। सरकारी जनसंपर्क विभाग की तरफ से हर मंत्री को एक ‘जनसंपर्क अधिकारी’ दिया गया है, जो मंत्रियों के सरकारी कार्यक्रमों की रिपोर्ट तैयार करता है।
उसे सरकार की वेबसाइट पर अपलोड करता है। तमाम पत्रकारों और अखबारों को भेजता है, लेकिन सरकार के ‘प्राइवेट पीआर’ नियुक्त करने के फैसले से सरकारी जनसंपर्क अधिकारी भी दुखी हैं। उन्हें लग रहा है कि सरकार ने ‘प्राइवेट पीआर’ नियुक्त करने का फैसला लेकर उनके और उनके काम के प्रति अविश्वास प्रकट किया है।
हालांकि, विपक्ष का आरोप है कि दरअसल यह सरकारी पैसे पर बीजेपी की चुनावी कसरत है। डेढ़ साल में राज्य में चुनाव होने हैं। सरकारी खर्चे पर मंत्रियों को यह सुविधा पहले से ही उपलब्ध करा दी गई है, जो चुनाव खत्म होने तक चलेगी। अगर चुनाव के बाद इसी सरकार की सत्ता में वापसी होती है, तो सरकारी खजाने पर यह बोझ बना रहेगा।
बीजेपी सरकार में लगभग हर कैबिनेट मंत्री ने अपने दफ्तर में अपने भरोसेमंद लोगों को सरकारी खर्चे पर ओएसडी यानी ‘ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी’ बना रखा है। मंत्रियों के यह ओएसडी सरकारी कर्मचारियों से ज्यादा ‘पावरफुल’ हैं और सरकारी अफसरों पर हुकुम चलाते हैं। चूंकि यह मंत्री के खासमखास लोग हैं इसलिए सरकारी कर्मचारी इनके खिलाफ खुलकर नहीं बोल पाते। हालांकि सरकारी कर्मचारी अपनी यूनियन में इसके खिलाफ शिकायत कर चुके हैं।